हिमाचल प्रदेश, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, आज पर्यावरणीय संकट की दहलीज पर खड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ चेतावनी दी है कि यदि राज्य में अनियंत्रित पर्यटन और अवैज्ञानिक निर्माण कार्यों पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया, तो यह खूबसूरत पहाड़ी राज्य देश के नक्शे से गायब हो सकता है।
जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि हाल के वर्षों में हिमाचल में आई बाढ़, भूस्खलन और मकानों के ध्वस्त होने जैसी घटनाएं प्रकृति की नहीं, बल्कि इंसानी लालच और लापरवाही की देन हैं। अदालत ने सरकारों को याद दिलाया कि राजस्व अर्जन ही विकास नहीं होता, और पर्यावरण की कीमत पर विकास करना विनाश को न्योता देने जैसा है।
पीठ ने कहा कि हिमाचल को प्रकृति ने अपार सौंदर्य दिया है, लेकिन इस सौंदर्य के दोहन के नाम पर भारी मशीनों से पहाड़ों की कटाई और विस्फोटकों का प्रयोग किया गया, जिससे प्राकृतिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ गया। खासकर बिना वैज्ञानिक सोच के की गई निर्माण गतिविधियां, ढलानों को काटना, जलधाराओं को मोड़ना, और स्थायित्व उपायों की कमी जैसे कारण राज्य को आपदा की ओर धकेल रहे हैं।
2023 और 2025 की बारिश से हुई तबाही को अदालत ने मानवजनित आपदा करार दिया और अफसोस जताया कि राज्य के लोग खुद अपने घर को विकास के नाम पर बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं।
