बेटियों की परवरिश और शादी में हुए खर्च का कर्ज चुकाते-चुकाते कंगाल हुए पिता की कहानी,औलाद ने पहचानने से किया इंकार, अब ऐसे गुजरती है उनकी जिंदगी

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तमिलनाडुः हर पिता अपने संतान के सुनहरी भविष्य के लिए कामना करता है। सबकुछ करना चाहता है। अपने संतान के लिए पिता के बहुत से अरमान होते है। लेकिन कई समाज में ऐसी कहानियां सुननेे और देखने को मिलती है। जिसमें एक संतान अपने ही पिता को पहचानने से इनकार कर देती है। ऐसा ही एक मामला तमिलनाडु से सामने आया है। जहां एक बेटी ने अपने पिता को रखने से मना कर दिया। दरअसल, यहां के तेनकासी इलाके के रहने वाले 61 साल के के. मदासामी ने अपने दो बेटियों की शादी के लिए अपना सबकुछ बेच दिया और कर्ज़ भी लिया। वहीं कर्ज का पैसे चुकाने के लिए उन्होनें ने अपना घर बेच दिया। जिसके कारण वो आज अलंगुलम तालुक के अनैयप्पपुरम गांव के बस स्टैंड में रहते है। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी का पांच साल पहले स्वर्गवास हो गया,मदासामी इसके बाद आंखों से आंसू पोछते हुए बताते है कि आज उनके पास कुछ नहीं है। बस कुछ कपड़े और एक टिफिन बॉक्स है। वो बताते है कि दिन में खेतों में काम करते है। कई बार उनको काम नहीं मिलता तो वे लोगों से खाना मांगते है। आज वो अपने पुराने दिनों को याद कर बताते है कि वो पहले गांव में लोक गायक थे और कार्यक्रमों गाना भी गाते थे।

मदासामी बताते हैं कि उनकी किस्मत ने ऐसी करवट ली है। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि कर्ज के लिए उन्हें अपना घर तक बेचना होगा। यहां तक कि उनकी संतान ने भी उनकी कोई परवाह नहीं की। जबकि उन्होंने यह जरूर बताया कि उनकी बेटियों के कुछ रिश्तेदार उनकी मदद के लिए जरूर आगे आए। बुढ़ापे में वो अकेले ही जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं।
अपनी पीड़ा बताते हुए मदासामी ने कहा, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत मैं काम पर नहीं जा सकता हूं क्योंकि मेरे पास बैंक खाता खोलने और इस योजना में शामिल होने के लिए आवश्यक अन्य दस्तावेज प्राप्त करने के लिए एक वैध पता नहीं है। घर नहीं होने के कारण मैं वृद्धावस्था पेंशन के लिए आवेदन भी नहीं कर सकता हूं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा और मुझे इस बस स्टैंड में शरण लेने को मजबूर होना पड़ेगा।