छत्तीसगढ़ में नौकरशाहों की वरिष्ठता-अहर्ता रद्दी की टोकरी में, कमाऊ-पुत सरकार की पहली पसंद, बीजेपी के सुशासन में भ्रष्टाचार में लिप्त जूनियर अधिकारियों की पौ-बारह, प्रशासनिक गतिरोध चरम पर….

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नई दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ की साल-भर पुरानी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में कांग्रेस के भूपे राज की तर्ज पर जूनियर अधिकारियों की तूती बोल रही है। खासतौर पर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल द्वारा उपकृत और गिरोहबाज के रूप में अपनी कार्य-शैली का दम-खम भरने वाले नौकरशाहों की बीजेपी सरकार में भी पौ-बारह है। सालभर बाद भी राज्य की बीजेपी सरकार को ऐसे अधिकारियों से छुटकारा नहीं मिल पाया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपे के रंग में रंगे ऐसे दागी आईएएस,आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों की मनमानी के चलते प्रदेश में बीते 5 सालों में सर्वाधिक घोटाले किये गए थे। उनकी कार्यप्रणाली से ना केवल सरकार की तिजोरी पर दिन दहाड़े डाका डाला गया था, अपितु राज्य में गरीबी और विकास में बाधा जैसी मुसीबतों को छत्तीसगढ़ शासन के गले में डाल दिया गया है।

जनता हैरत में है, क्योंकि सुशासन और भ्रष्टाचार को लेकर ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ का दावा करने वाली मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार सालभर बीत जाने के बावजूद दागी अफसरों का कोई विकल्प नहीं खोज पाई है। यही नहीं प्रदेश की जनता के सपनों को चूर-चूर करने वाले सरकारी सेवकों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही को लेकर भी बीजेपी के मंसूबों पर सवालियां निशान लगने लगा है। ताजा मामला आल इंडिया सर्विस के उन अधिकारियों की मनमानी से जुड़ा हुआ है, जिन्हे भूपे राज के बाद बीजेपी सरकार में भी चांदी काटने का मौका मिल रहा है।   
छत्तीसगढ़ में इन दिनों नौकरशाही की बानगी देश में एक नई मिसाल पेश कर रही है। मामला, आल इंडिया सर्विस के उन अधिकारियों से जुड़ा हुआ है, जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भूपे का चोला ओढ़ कर जनता की सेवा में जुटे थे।

ऐसे अधिकारियों में राज्य के चीफ सेक्रेटरी, डीजीपी और फारेस्ट चीफ का नाम अव्वल नंबर पर बताया जाता है। आमतौर पर सत्ता परिवर्तन होने पर बेलगाम अधिकारियों की अदला-बदली आम प्रक्रिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में सालभर बाद भी इसका पालन सुनिश्चित नहीं हो पाया है। नतीजतन राज्य में नौकरशाही पूर्ववर्ती भूपे राज की तर्ज पर एक बार फिर अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी है। प्रदेश के कई जिलों में कानून व्यवस्था को लेकर सवालियां निशान लगाने वाले कांग्रेस के धरना-प्रदर्शन आम हो चुके है। राज्य की बीजेपी सरकार कानून व्यवस्था को पुरजोर बनाने की लगातार कोशिशे भी कर रही है। लेकिन कांग्रेस को बीजेपी के खिलाफ आये दिन मुद्दे हाथ लग रहे है। इससे नौकरशाही में गतिरोध भी देखा जा रहा है। 

जानकारों के मुताबिक सालभर बाद भी प्रशासनिक हलकों में नई टीम गठित नहीं होने के चलते पुलिस से लेकर सरकारी दफ्तरों तक कोहराम मचा है। इसका कारण, उन उच्चाधिकारियों की कार्यप्रणाली में सुस्ती बताई जाती है, जिनकी प्रशासनिक व्यवस्था में प्रमुख भूमिका है। ऐसे उच्चाधिकारियों में आल इंडिया सर्विस के दर्जनों अधिकारियों का नाम शुमार बताया जाता है, जो अभी भी भूपे राज की ‘सोच’ के आधार पर मुख्यमंत्री साय सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जनता की सेवा में जुटे है। जानकारी के मुताबिक कई वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर नौकरशाही में उन चलते पुर्जों को संरक्षण प्राप्त हो रहा है, जो राजनेताओं के लिए कमाऊ पुत साबित हो रहे है। ऐसे महकमों में वन विभाग और पुलिस मुख्यालय सुर्ख़ियों में है। 

छत्तीसगढ़ में नौकरशाही के शीर्ष वरिष्ठता क्रम में गोलमाल और नजरअंदाजी राज्य की विष्णुदेव साय सरकार पर भारी पड़ रही है। घोटालों को लेकर सबसे ज्यादा चर्चित वन विभाग की कमान 1989 बैच के आईएफएस श्रीनिवास राव को बीजेपी सरकार में भी जस की तस बरक़रार रखा गया है। पूर्ववर्ती भूपे सरकार ने इस अफसर को फारेस्ट चीफ के पद पर उपकृत करने के लिए 7 वरिष्ठ अधिकारियों की योग्यता और क्षमता को दरकिनार कर दिया था।

भूपे सरकार में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा मिट्टी मोल बताई जाती थी। इसके चलते इस आईएफएस अफसर को रातों-रात तत्कालीन वन मंत्री मोहम्मद अकबर की सिफारिश पर प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन बल प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी दी गई थी। वनों की सुरक्षा और जन-भागीदारी से जुड़े कैंपा फंड में करोड़ों का गोलमाल और योजनाओं की कागजी उपलब्धि को लेकर चर्चित इस अफसर को सालभर से बीजेपी सरकार आखिर क्यों ढो रही है, चर्चा का विषय बना हुआ है। 

जानकारी के मुताबिक वन विभाग की कमान 1989 बैच के ‘श्रीनिवास राव’ जैसे एक जूनियर अधिकारी के हाथों सौंपने के लिए तत्कालीन भूपे सरकार ने छत्तीसगढ़ के मूल निवासी और माटी-पुत्र 1986 बैच के आईएफएस सुधीर अग्रवाल की वरिष्ठता एवं योग्यता को नजरअंदाज कर दिया गया था। इसी तर्ज पर साफ-सुथरी छवि के अहर्ता पूर्ण करने वाले वरिष्ठ आईएफएस अधिकारियों क्रमशः 1986 बैच के अतुल शुक्ला, 1988 बैच के आशीष भट्ट, 1989 बैच के तपेश झा, 1990 बैच के अनिल राय, 1989 बैच के संजय ओझा और 1990 बैच के अनिल साहू की उपलब्धियों को भी  किनारे कर दिया गया था।  

राजनीति के जानकारों के मुताबिक भूपे सरकार के कमाऊ पुतों में श्रीनिवास राव का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। पीसीसीएफ जैसे महत्वपूर्ण पद को तश्तरी में परोस कर दिए जाने से करोड़ो के कैंपा प्रोजेक्ट से जुड़े दर्जनों कार्यों में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सीधे तौर पर इस अधिकारी के सिर माथे मढ़े जा रहे है। प्रदेश में जंगलों का बंटाधार हो रहा है, यहाँ से गैर-क़ानूनी कोयला और अन्य खनिज पदार्थों का रोजाना दोहन हो रहा है। बावजूद इसके एक जूनियर अधिकारी के हाथों वन विभाग की कमान बीजेपी सरकार के सुशासन को मुँह चिढ़ा रही है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में सितंबर माह-वर्ष 2022 में इस महत्वपूर्ण पद पर काबिज होने के बाद श्रीनिवास राव अब बीजेपी सरकार की भी पहली पसंद बन गए है। उनका विकल्प बीजेपी सरकार अब तक नहीं ढूंढ पाई है।  

जानकारी के मुताबिक भूपे सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन सुपर सीएम अनिल टुटेजा के खास करीबी जूनियर आईएफएस अधिकारी वी माथेशरन को उद्यानिकी विभाग के एमडी के पद के अलावा बीज निगम और मंडी का अतिरिक्त प्रभार सालों तक सौंपा गया था। इस अधिकारी पर भी टुटेजा एंड कंपनी को अनुचित लाभ दिलाने के कई गंभीर आरोप है। उनकी कार्यप्रणाली के चलते केंद्र और राज्य की किसानों से जुड़ी दर्जनों योजनाओं की प्रगति सिर्फ कागजों पर ही सिमट कर रह गई थी। दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश भर के कई किसानों और शिकायतकर्ताओं की गुहार को नजरअंदाज कर तत्कालीन भूपे सरकार के इस कमाऊ-पुत कों मौजूदा बीजेपी सरकार के कार्यकाल में अंबिकापुर का ‘सीएफ’ बनाया गया है। आईएफएस की तर्ज पर आईपीएस अधिकारियों का एक वर्ग भी मौजूदा बीजेपी सरकार पर अपनी पकड़ बना चूका है। पुलिस मुख्यालय के कई फैसले बीजेपी सरकार की गले की फ़ांस बन रहे है।

पूर्ववर्ती भूपे सरकार की तर्ज पर मौजूदा बीजेपी सरकार में महीनों पूर्व रिटायर्ड डीजीपी को अभी भी ढोया जा रहा है। जबकि कांग्रेस राज में बतौर मुख्यमंत्री की पसंद के रूप में डीजीपी की नियुक्ति की गई थी। बीजेपी सरकार के आने के बाद भी मौजूदा डीजीपी को उपकृत करने का दौर जारी है। इस सूचि में प्रदेश के डीजीपी अशोक जुनेजा का नाम अव्वल नंबर पर है। 11 नवंबर 2021 को डीजीपी डीएम अवस्थी को रातों-रात अचानक हटाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे बघेल ने अशोक जुनेजा को छत्तीसगढ़ का प्रभारी डीजीपी बनाया था।

इसके 10 महीने बाद राज्य की भूपे सरकार ने 5 अगस्त 2022 को उन्हें पूर्णकालिक डीजीपी बना दिया था। 4 जुलाई 2024 कों रिटायरमेंट के पहले ही अशोक जुनेजा को मौजूदा बीजेपी सरकार ने भी उपकृत करने में देरी नहीं की। जानकारी के मुताबिक डीजीपी अशोक जुनेजा को बीजेपी सरकार के आशीर्वाद से केंद्र सरकार के मार्फ़त 6 महीने का एक्सटेंशन प्राप्त हो गया है। हालांकि नए डीजीपी की नियुक्ति को लेकर भी रस्सा-कस्सी का दौर जारी है। 

जानकारी के मुताबिक डीजीपी अशोक जुनेजा को रिटायरमेंट के बाद भी पद पर बनाये रखने से वरिष्ठता क्रम को लेकर पुलिस महकमे में कोहराम मचा है। प्रदेश में कानून व्यवस्था को लेकर उठ रहे सवालों की जिम्मेदारी पुलिस मुख्यालय के कंधों पर है। लेकिन सेवानिवृत्त अधिकारी को डीजीपी जैसे महत्वपूर्ण पद की कमान सौंपने से पुलिस के अफसर ही मायूस बताये जाते है। जबकि इस पद के लिए अगले पायदान पर अहर्ता और वरिष्ठता पूर्ण करने वालों में 1992 बैच के आईपीएस अफसर अरुण देव गौतम की अनदेखी सुर्ख़ियों में है। प्रशासनिक क्षमता के धनी इस वरिष्ठ अफसर की नजरअंदाजी से पुलिस में बेहतर छवि, अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा और जन-सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मामलों में उपलब्धि सिर्फ बेमानी साबित हो रही है।

योग्य अफसरों को डीजीपी जैसे प्रमुख पद से हाथ धोना पड़ रहा है। बताते है कि नए डीजीपी की नियुक्ति को लेकर सरकार के पाले में एक बार फिर वरिष्ठता क्रम को नजरअंदाज करने की बयार बह रही है। डीजीपी पद के अगले दावेदारों में 1992 बैच के आईपीएस पवन देव, 1994 बैच के हिमांशु गुप्ता, 1994 बैच के एसआरपी कल्लूरी का नाम शामिल है। ये सभी अफसर भी योग्यता और अहर्ता पूरी करने के बावजूद अपने भविष्य को लेकर आशंकित बताये जाते है। बहरहाल नौकरशाही के शीर्ष स्तरों में बदलाव से बचाव राज्य की बीजेपी सरकार पर भारी पड़ रहा है। यह देखना गौरतलब होगा कि पूर्ववर्ती भूपे सरकार की तर्ज पर कमाऊ-पुतों को उचित स्थान दिलवाने के लिए मौजूदा बीजेपी सरकार में भी वरिष्ठता के ‘मायने’ बदल दिए जायेंगे ? कई वरिष्ठ अफसर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे है।