छत्तीसगढ़ विधानसभा में लोक-लेखा समिति की आलमारी में कैद रिपोर्ट आई सामने, 20 साल बाद फिर निकला आरा मिल घोटाले का जिन्न, मुख्यमंत्री साय अब इसे बोतल में फिर कैद करेंगे या फिर होगी बड़ी कार्यवाही ? सुर्ख़ियों में कैंपा राव…

0
7

रायपुर: छत्तीसगढ़ आरा मिल घोटाले की जांच रिपोर्ट एक बार फिर सामने आने के बाद वन एवं जलवायु विभाग में गहमा-गहमी तेज हो गई है। कई वरिष्ठ आईएफएस अधिकारियों ने विभागीय गतिविधियों में भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार से गंभीर रुख अपनाने की गुहार लगाई है। पीड़ित अफसरों ने अदालत को भी मामले से रूबरू कराया है। ऐसे में वन और पर्यावरण विभाग के मुखिया कैंपा राव की संदिग्ध कार्यप्रणाली और विभागीय गतिविधियां राज्य की बीजेपी सरकार के गले की फंस बन सकती है। कई वरिष्ठ विभागीय अधिकारी महकमे का कार्य पटरी पर लाने के लिए जोर-आजमाइश में जुटे है। इस बीच एक ताज़ा मामले में कैट ने राज्य सरकार को तलब कर लिया है। हालांकि सरकार की ओर से अदालत में जवाब देने के लिए हीला-हवाली बरती जा रही है।

प्रदेश की तत्कालीन अजित जोगी सरकार के कार्यकाल में वन विभाग में चर्चा में आये आरा मिल घोटाले से जुड़ी अवैधानिक गतिविधियों को लेकर विधानसभा की लोक-लेखा समिति की वो रिपोर्ट अब सामने आई है, जिसे करीब 20 वर्ष पहले दागी अफसरों ने आलमारी में कैद कर दिया था। सूत्र तस्दीक करते है कि यह फाइल विभागीय प्रमुख कैंपा राव ने अपनी देख-रेख में दफ्तर के किसी गुप्त स्थान पर रखा था। लेकिन हालिया एक अदालती प्रकरण में आरा मिल घोटाले से जुड़े साक्ष्य पेश करने पर वर्षों से दबी-छिपी यह फाइल सामने आई है। 
जानकारी के मुताबिक कैट जबलपुर में लंबित एक प्रकरण में दो नोटिसों के बावजूद ना तो राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब दाखिल किया गया है, और ना ही वन विभाग के मौजूदा मुखिया ने मामले को सरकार के संज्ञान में लाया है।

नतीजतन, कैट में छत्तीसगढ़ शासन की भद्द पिटने के चलते साय सरकार की साख दांव पर है। बताया जाता है कि आरा मिल घोटाले से जुड़ी एक विचाराधीन याचिका के तथ्यों को लेकर कैट ने जांच के निर्देश दिए थे। इस प्रकरण में राज्य सरकार को भी पार्टी बनाया गया था। मामला, पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल में कई योग्य एवं वरिष्ठ अधिकारीयों को दरकिनार कर 1990 बैच के जूनियर आईएफएस श्रीनिवास राव को गैर-क़ानूनी रूप से वन विभाग में हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स से नवाज़े जाने से जुड़ा है।

इस मामले में कैट को तत्कालीन विधानसभा की लोक-लेखा समिति की रिपोर्ट से अवगत कराया गया है। इसके साथ ही एडिशनल PCCF की अध्यक्षता वाली एक कमेटी की जांच रिपोर्ट भी कैट में संलग्न की गई है। इसमें साफ़ कर दिया गया है कि सालों पुराना आरा मिल घोटाला एक सुनियोजित साजिश के तहत अंजाम दिया गया था। इससे सरकार तिजोरी में लाखों की चपत लगी थी।

यही नहीं राजनैतिक दबाव और दागी अफसरों की ऊंची पहुंच के चलते इस वित्तीय घोटाले को रफा-दफा करने के लिए तत्कालीन जांच अधिकारियों ने जो प्रयास किये थे, उसकी वैधानिक स्थिति भी इसमें साफ कर दी गई है। ताजा रिपोर्ट में आरा मिल घोटाला वित्तीय त्रुटि ना होते हुए एक आपराधिक प्रकरण साबित किया गया है। जानकारी के मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री अजित जोगी के बाद डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में मामले की जांच निर्णायक मोड़ पर बताई जा रही थी। लेकिन घोटाले में लिप्त पाए गए किसी भी दागी आरोपित अधिकारी ने तत्कालीन जांच अधिकारियों द्वारा जारी किसी भी कारण बताओं नोटिस का जवाब नहीं दिया था।

इसके साथ ही खानापूर्ति कर दोषी पाए गए अधिकारियों को सजा मुक्त कर दिया गया था। इस दौरान सरकारी तिजोरी में लगी लगभग 90 लाख की रकम की वापसी को लेकर कोई कार्यवाही नहीं की गई थी। यह मामला एक बार फिर अदालत में सुर्खियां बटोर रहा है। दरअसल, आरा मिल घोटाले में अन्य अभियुक्तों के साथ तत्कालीन DFO श्रीनिवास राव का नाम बतौर आरोपी चार्जशीट में शामिल किया गया था।

इस दौरान उनके खिलाफ कई आरोप मय दस्तावेज बतौर साक्ष्य जांच रिपोर्ट में शामिल किये गए थे। इस प्रकरण में चर्चित और कार्यवाही के दायरें में बताये जा रहे, श्रीनिवास राव अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और पूर्व वन मंत्री अकबर के करीबी बताये जाते है। ऐसे में यह भी कयास लगाए जा रहे है कि राजनैतिक रूप से उपकृत इस दागी अधिकारी को उसके अपराधों से बचाने के प्रयास अभी भी जोर-शोर से जारी है। 

इस बीच पूर्ववर्ती जोगी सरकार के कार्यकाल में वन विभाग में अंजाम दिए गए आरा मिल घोटाले में अब जा कर बड़ी कार्यवाही के आसार जाहिर किये जा रहे है। बताया जाता है कि कांग्रेस राज  के तमाम घोटालों में राज्य की बीजेपी सरकार न्यायोंचित कार्यवाही के पक्ष में है। दागियों को संरक्षण देने का कतई इरादा ना तो सरकार का है, और ना ही पार्टी का। एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र के मुताबिक राज्य सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति पर अडिग है, नौकरशाह कितना भी प्रभावशील क्यों ना हो, सबूत पाए जाने पर कठोर कार्यवाही होगी। बहरहाल, उम्मीद की जा रही है कि आरा मिल घोटाले के अलावा कैंपा राव की अवैधानिक कार्यप्रणाली से जुड़े अन्य प्रकरणों पर भी सरकार गंभीर रुख अपना सकती है।