दिल्ली वेब डेस्क / देश में आजादी का बिगुल फूकने वाले और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का पहली बार शंखनाद करने वाले अमर शहीद मंगल पांडेय की 19 जुलाई 2020 को 193वीं जयंती है | आज का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। लेकिन इस पर गौर करने वालों की संख्या मुट्ठी भर भी नहीं है | नेता हो या जनता के पैरोंकार किसी ने उन्हें याद तक नहीं किया | देश में लोकतंत्र की जय -जय कार करने का दावा करने वाला मीडिया भी इससे अनभिज्ञ रहा | चैनलों ने उन्हें लेकर एक खबर तक नहीं चलाई | साफ है खबर चलाने पर इन्हे टीआरपी की गारंटी नहीं थी | लेकिन बता दे, अमर शहीद मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था।
एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले मंगल पांडेय ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की थी | वे अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले बगावती तेवर अपनाने वाले नायक थे | उन्होंने 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में अंग्रेजों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था। हालांकि वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे | लेकिन अंग्रेजों की असलियत सामने आने के बाद वे उनके विरोधी हो गए | ब्रिटिश अफसरों की भारतीयों के प्रति क्रूरता को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था।
इतिहास बताता है कि मंगल पांडेय कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 थे। उन्होंने बगावत कर अंग्रेजी अफसरों पर गोली चलाई थी | उन पर हमला करने के आरोप में मंगल पांडेय को फांसी की सजा सुनाई गई थी | अंग्रेज उनकी बगावत से इतने भयभीत थे कि तय तिथि से दस दिन पहले ही उन्हें फांसी दे दी गई।
इतिहास बताता है कि 18 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय को फांसी दी जानी थी, लेकिन इसके पहले ही उन्हें फांसी के तख़्त पर लटका दिया गया | ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर के सभी जल्लादों ने मंगल पांडेय को फांसी देने से इनकार कर दिया था। जल्लादों ने अपने हाथ मंगल पांडेय के खून से न रंगे जाने की बात कहते हुए अंग्रेजी हुकूमत को फांसी देने से इनकार कर दिया था |
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने फ़ौरन कलकत्ता से चार जल्लादों को बुलाया। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि मंगल पांडेय की फांसी दी जाने की खबर सुनने के बाद कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुस्सा भड़क गया था | बगावत से बचने के लिए ब्रिटिश राज ने मंगल पांडेय को फांसी 18 अप्रैल को न देकर दस दिन पहले आठ अप्रैल को ही दे दी थी।
ब्रिटिश इतिहासकार रोजी लिलवेलन जोंस की किताब ‘द ग्रेट अपराइजिंग इन इंडिया, 1857-58 अनटोल्ड स्टोरीज, इंडियन एंड ब्रिटिश में मंगल पांडेय को लेकर कई रोचक जानकारी दी गई है | इसमें बताया गया है कि 29 मार्च की शाम मंगल पांडेय यूरोपीय सैनिकों के बैरकपुर आने की खबर को सुनकर काफी बैचेन थे।
मंगल पांडेय को लगा कि ये सैनिक भारतीय सैनिकों की जान लेने आ रहे हैं | इसके बाद मंगल पांडेय ने अपने साथियों के साथ ब्रिटिश अफसरों पर हमला बोल दिया। ऐसा कहा जाता है कि 1857 की क्रांति के पीछे यही चर्चा थी कि बड़ी संख्या में यूरोपीय सैनिक भारतीय सैनिकों को मारने आ रहे हैं।
एक अन्य इतिहासकार किम ए वैगनर ने अपनी किताब ‘द ग्रेट फियर ऑफ 1857 – रयूमर्स, कॉन्सपिरेसीज़ एंड मेकिंग ऑफ द इंडियन अपराइजिंग’ में लिखा है कि सिपाहियों के मन में डर बैठा था। उनके डर को जानते हुए मेजर जनरल जेबी हिअरसी ने यूरोपीय सैनिकों के हिंदुस्तानी सिपाहियों पर हमला बोलने की बात को अफवाह करार दिया, लेकिन ये संभव है कि हिअरसी ने सिपाहियों तक पहुंच चुकी इन अफवाहों की पुष्टि करते हुए स्थिति को बिगाड़ दिया था।
वैगनर लिखते हैं कि मंगल पांडेय ने इस दौरान ‘मारो फिरंगी को’ का नारा दिया था, ऐसा कहा जाता है कि फिरंगियों के खिलाफ सबसे पहला नारा मंगल पांडेय के मुंह से ही निकला था। यही वजह है कि मंगल पांडेय को स्वतंत्रता संग्राम का पहला क्रांतिकारी माना जाता है। जानकारी के मुताबिक ब्रिटिश अधिकारियों ने जब मंगल पांडेय को काबू करने की कोशिश की तो पांडेय ने सार्जेंट मेजर ह्वीसन और अडज्यूटेंट लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग पर हमला कर दिया। इसके बाद जनरल ने मंगल पांडेय की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया | इस दौरान शेख पल्टू के अलावा सभी साथियों ने मंगल पांडेय की गिरफ्तारी का विरोध किया था।
इतिहास बताता है कि 29 मार्च 1857 के दिन ही मंगल पांडेय ने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। वैगनर लिखते हैं कि शाम के चार बजे थे और मंगल पांडेय अपने तंबू में बैठे बंदूक साफ कर रहे थे। तभी मंगल पांडेय को यूरोपीय सैनिकों के आने के बारे में जानकारी मिली थी।
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इसके बाद मंगल पांडेय को एकदम बैचेनी सी महसूस होने लगी, उन्हें लगा कि ये सारे यूरोपीय सैनिक भारतीय सैनिकों को मारने यहां आ रहे हैं। तभी मंगल पांडेय अपनी ऑफिशियल जैकेट, टोपी और धोती पहनकर तंबू से बाहर निकले और क्वार्टर गार्ड बिल्डिंग के करीब परेड ग्राउंड की ओर दौड़ पड़े। फिर उन्होंने अंग्रेज फौजी अफसरों पर फायरिंग कर दी | न्यूज़ टुडे नेटवर्क की ओर से आजादी के सपूत को हमारा शत शत नमन |