संगीत की धरोहर लता जी की एक इच्छा रही अधूरी, लोक गायन की पंडवानी शैली नही सीख पायीं

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रायपुर| स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने 30 हजार से भी ज्यादा गाने गए|हिंदी, मराठी, बंगाली, गुजरती, दक्षिण भारत की भाषाओँ के अलावा कई और भाषाओँ में उनका सुगम संगीत दिल मोह लेता हैं| लोक गायन के प्रति भी लता जी की गहरी रूचि थी| वो छत्तीसगढ़ की पंडवानी शैली से काफी प्रभावित थीं, कुछ मौको पर तो उन्होंने लोक गायन को लेकर पंडवानी शैली की काफी प्रशंसा भी की थी| वो इसे भी आत्मसात करना चाहती थी इसके लिए  दो बार मशहूर लोक गायिका तीजन बाई से उनका संपर्क भी हुआ था| लेकिन लता जी की व्यस्तता के चलते बात आगे नही बढ़ पाई|

फिर गिरते स्वस्थ के चलते लता जी ने खुद को काफी सिमित कर लिया| नतीजतन पंडवानी सिखने की हसरत पूरी नही हो पाई | पद्मश्री तीजन बाई को इसका मलाल हैं| लता जी को याद करते हुए तीजन बाई कहतीं हैं की काश उनकी ये हसरत भी पूरी हो पाती|

सुर कोकिला लता मंगेशकर के निधन के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई. निधन की खबर के बाद फिल्म, कला व संगीत से जुड़े लोग लता दीदी से जुड़ी यादों को संजोने लगे. छत्तीसगढ़ से भी लता मंगेशकर का गहरा नाता है.

जी हाँ लता मंगेशकर ने साल 2005 में आई छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘भकला’ के लिए ‘छूट जाई अंगना अटारी’ गीत गाया था. ये गीत आज भी बेटियों की विदाई के वक्त सुनाई पड़ जाता है. छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में संचालित इंदिरा कला व संगीत विश्वविद्यालय से भी लता मंगेशकर का गहरा नाता है. 9 फरवरी 1980 को इस विश्वविद्यालय से उन्हें डी-लिट की उपाधी से नवाजा गया था.

छत्तीसगढ़ की मशहूर पंडवानी गायिका पद्मभूषण तीजन बाई से लता जी पंडवानी सीखना चाहती थीं. तीजन बाई  कहती हैं कि ‘लता जी से मेरी मुलाकात नहीं हुई, लेकिन 2 बार उन्होंने टेलीफोन से मुझसे बात कीं और पंडवानी सीखने की इच्छा जताई. उनकी ये इच्छा अधूरी ही रह गई.’