छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार संरक्षण ब्यूरो, EOW के छापों से सरकार की मंशा पर फिरा पानी, सूचना लीक का मामला जांच के दायरे में…?

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में 2200 करोड़ के शराब घोटाले की जांच को लेकर एक बड़ी खबर सामने आ रही है। जानकारी के मुताबिक EOW के छापों की खबर घंटों पहले लीक हो गई थी। इसके चलते तमाम संदेहियों ने शराब घोटाले का काला चिट्ठा अपने ठिकानों से समय रहते हटा लिया था। वे पूरी तरह सुरक्षित होने के बाद EOW की टीम की राह तक रहे थे। सूत्रों का दावा है कि EOW मुख्यालय से सर्च वारेंट संबंधी प्रक्रिया जैसे ही अनुमति के लिए कोर्ट पहुंची, वैसे ही तमाम संदेहियों को छापेमारी की खबर मिल गई थी।

सूत्र बताते हैं कि घोटालेबाज पूरी तरह से सतर्क होकर EOW का इंतजार कर रहे थे। बताया जाता है कि जैसे ही EOW की टीम ने संदेहियों के ठिकाने पर दस्तक दी, वैसे ही उनकी आवभगत शुरू हो गई थी ।तमाम संदेही मय परिवार EOW की टीम का पलक पावड़े बिछा कर इंतजार कर रहे थे। जैसे ही उनके ठिकानों पर EOW स्टॉफ नजर आया, वैसे ही संदेहियो की बांछे खिल गई थी।बताते हैं कि शराब घोटाले का मास्टरमाइंड प्रमोटी IAS अनिल टुटेजा के निवास पर तो EOW कर्मियों का उपहास उड़ाते हुए सबके बीच लड्डू बांटे गए थे।

यही हाल पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड के बंगले का था। यहां भी EOW स्टॉफ को सीरियसली नही लिया गया। सूत्र बताते हैं कि इस बंगले से छत्तीसगढ़ की गरीब जनता की जान-माल से जुड़े सभी दस्तावेज और फाइलें घंटो पहले साफ की जा चुकी थी। जब्ती के नाम पर यहां भी”सिर्फ औपचारिकता” की कवायत होते रही। हालाकि शराब कारोबारी अनवर ढेबर के ठिकानो में पहले से ही काफी सतर्कता बरती जा रही थी। लिहाजा यहां भी शराब घोटाले से संबंधित कागज तक का एक टुकड़ा नही मिला। बताते हैं कि हालिया छापेमारी में दस्तावेजों की औपचारिकता निभाने के बाद EOW की ज्यादातर टीम वापस अपने मुख्यालय पहुंच गई है। यह भी बताया जाता है कि एक टीम ने सोमवार को कोरबा में सहायक आबकारी आयुक्त सौरभ बक्शी के बंगले में धावा बोला है।

कुल मिलाकर EOW की छापेमारी फ्लॉप बताई जा रही है। हालाकि जानकार बताते हैं कि विभाग को वो जरूरी दस्तावेज हाथ लग गए हैं, जो अपराध की प्रमाणिकता के लिए काफी महत्त्वपूर्ण बताए जाते हैं।छापेमारी में बरामद दस्तावेजों और अन्य सामग्रियों को लेकर EOW की ओर से कोई अधिकृत बयान अभी तक सामने नही आया है। हालाकि नाम ना छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि कुछ संदेहियों के ठिकानों से कंप्यूटर, लैपटॉप, पेन ड्राइव और कुछ अन्य दस्तावेज मिले हैं। यह जांच का विषय है कि इसमें शराब घोटाले से जुड़ी कितनी जानकारी सुरक्षित है?

उधर EOW रेड की गोपनीयता भंग होने का मामला सुर्खियों में है। सूत्र बताते हैं कि EOW में तैनात एक तिहाई से ज्यादा स्टॉफ भू-पे सरकार के द्वारा तैनात किया गया था। इनकी कार्यप्रणाली संदेह के दायरे में है।बताते हैं कि कई सालों से यहां इंस्पेक्टर और DSP के पदों को भू-पे सरकार ने मौजूदा सरकार के कार्यकाल में संरक्षित करके रखा है। इनमे कई अफसर आरोपी अनिल टुटेजा और विवेक ढांड से उपकृत है। दागी अफसरों से जुड़ी चैटिंग भी चर्चा में रही है। बताते हैं कि EOW की रेड की प्रक्रिया शुरू होते ही कुछ दागी अफसरों ने मुख्यालय से छापेमारी की सूचना लीक कर दी थी। इससे संदेहियों को सतर्क होने के लिए भरपूर मौका मिल गया था।

EOW सूत्र बताते हैं कि विभाग में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर वो अधिकारी तैनात हैं जिनकी नियुक्ती पूर्व EOW चीफ शेख आरिफ ने की थी। इन अफसरों ने सरकार की मंशा पर पानी फेरने के लिए कोई कसर बाकी नही छोड़ी है। सूत्र यह भी बताते हैं कि कुछ प्रभावशील संदेही तो छापेमारी के दौरान भी EOW के घर के भेदीयों के संपर्क में थे। नतीजतन एक ओर ईमानदार अफसरों का जमावड़ा था,जो अपने कर्तव्यों के प्रति सजग नजर आ रहे थे तो दूसरी ओर मुठ्ठी भर दागी अफसर ताजा छापेमारी के दौरान सरकार और EOW पर भारी पड़ रहे थे।यह भी बताते हैं कि भू-पे सरकार के कार्यकाल के दौरान पदस्थ किए गए कुछ प्रभावशील अफसरों को मौजूदा बीजेपी सरकार के कार्यकाल में भी महत्त्वपूर्ण कार्यों में तैनात रखने के चलते विभाग को बड़ा खामियाजा भोगना पड़ा है, अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि इनकी वजह से हालिया रेड फ्लॉप साबित हो सकती है।

जानकारी के मुताबिक EOW में दर्ज महत्त्वपूर्ण मामलों की जांच को प्रभावित होने से बचाने के लिए बीजेपी के कई नेताओं ने संदेही अफसरों को फौरन हटाने के लिए सरकार को शिकायती पत्र भी सौंपा था, लेकिन उसे भी नजरंदाज कर दिया गया था। काफी समय पूर्व यह शिकायती सामाजिक कार्यकर्त्ता ने सरकार के संज्ञान में लाया था। बताया जाता है कि EOW में पदस्थ कई अफसरों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। बताते हैं कि यहां इंस्पेक्टर और DSP के पदों पर तैनात कुछ अफसरों की कार्यप्रणाली से भ्रष्टाचार को भी संरक्षण मिल रहा है। इससे विभाग की छवि भ्रष्टाचार संरक्षण ब्यूरो की बन गई है। दरअसल भू-पे राज में EOW में दर्ज कई महत्त्वपूर्ण मामलों को सबूत होने के बावजूद खत्म कर दिया गया था। इसके एवज में भ्रष्टाचारियों से मोटी रकम वसूली गई थी।

फिलहाल शराब घोटाले की छापेमारी कितनी कारगर साबित होगी यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन निष्पक्ष कारवाई होगी या नही? इस ओर प्रदेश की जनता की निगाहें टिकी हुई हैं। जनता मोदी गारंटी को याद कर रही है।लोगों का मानना है कि राज्य की विष्णुदेव साय सरकार भ्रष्टाचार के मामलों में जिस तरह से जीरो टॉलरेंस नीति अपना रही है, उससे दागियों का बच निकलना मुश्किल है। बताते हैं कि बीजेपी सरकार की मंशा “भ्रष्टाचार मुक्त” छत्तीसगढ़ गढ़ने की है।