भोपाल / रायपुर : – समाज सेवा का ”मेवा” कैसे लूटा जाता है, छत्तीसगढ़ के समाज कल्याण विभाग के काले कारनामों को देखकर इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। सरकारी तिजोरी की लूट का इससे बेहतर नमूना देश के किसी भी राज्य में सामने नहीं आया है। समाज कल्याण विभाग शारीरिक रूप से कमजोर, अपंग, विकलांग और बेसहारा बच्चो के कल्याण के लिए कई योजनाए संचालित करता है, लेकिन आदिवासी और आर्थिक रूप से पिछड़े इस राज्य में शीर्ष नौकरशाही आखिर किस तरह से घोटालों को अंजाम दे रही है, इसकी पुष्टि करोडो के घोटालों को अंजाम देने के लिए उपयोग में लाए गए दस्तावेजी प्रमाणों और कागजी घोड़ो को देखकर हो रही है। फर्जी बिलों को देखकर, एजेंसिया दांतो तले ऊँगली दबा रही है। जबकि ऐसे बिलो की बानगी देखकर कई NGO और पीड़ित सख्ते में है।

समाज कल्याण विभाग की योजनाओं और पीड़ितों के हितार्थ जुड़े कार्यक्रमों के फर्जी बिल हैरान करने वाले बताये जाते है। इसमें राष्ट्रीय दिवसों के मौंके पर आयोजित कार्यक्रमों के आयोजनों पर लाखो का बिल दर्शाया गया है। जबकि पीड़ित तस्दीक करते है कि ऐसा कोई भी सांस्कृतिक कार्यक्रम उनके संस्थान में आयोजित ही नहीं किया गया था। इधर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बिल भी टैक्सी संचालकों की कम्पनी के दर्ज बताये जाते है।

सूत्रों के मुताबिक ऐसे बिलों में टैक्सी के नाम पर मोटर – बाइक के नंबर दर्ज है, जबकि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के भुगतान भी टैक्सी प्रदाता कंपनियों के नाम किया गया है। पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड और समाज कल्याण विभाग के वरिष्ठ अधिकारी राजेश तिवारी के माध्यम से इतने बड़े घोटाले की नींव रखी गई थी। अब लगभग आधा दर्जन आईएएस अधिकारी इसके लपेटे में है।

छत्तीसगढ़ के 1 हजार करोड़ के समाज कल्याण विभाग घोटाले की परते लगातार उजागर हो रही है, आप जानकर हैरान हो जायेंगे कि पूर्व मुख्य सचिव और तत्कालीन विभाग के ”सुपर डायरेक्टर” की सांठ – गांठ से रोजाना लाखो की कमाई की जाती थी। भ्रष्टाचार के ”रंगा बिल्ला” ढांड – तिवारी की जोड़ी ने विभिन्न बैंको में सैकड़ो बैंक एकाउंट खुलवाए थे, इन खातों में कई लोगों के नाम पर वेतन आहरण किया जाता था। बताया जाता है कि योजनाओं की कामयाबी के लिए सरकार से मिलने वाली वित्तीय सहायता सीधे तौर पर ढांड – तिवारी की तिजोरी का रुख कर लेती थी। विभिन्न NGO और ग्रामीण अंचलों में सैकड़ों कर्मचारियों की सिर्फ कागजों में नियुक्ति की गई थी। उनके बैंको की पासबुक, चेक एवं डिजिटल भुगतान का ब्यौरा ”सुपर डायरेक्टर”राजेश तिवारी ही मेंटेन किया करते थे। इन कर्मचारियों के वेतन – भत्तों को आहरण कर तिवारी अपने हिस्से के कमीशन की रकम काटकर शेष रकम विवेक ढांड के हाथो में सौंपा करता था। प्रतिमाह भुगतान की जाने वाली यह नगदी लाखों की बताई जाती है।

समाज सेवा के नाम पर सैकड़ो कर्मचारियों की नियुक्ति में कमीशन के अलावा विभिन्न NGO को मुहैया कराई जाने वाली करोडो की रकम का अलग से हिसाब – किताब किया जाता था। कमीशन की यह रकम भी मासिक अदायगी के रूप में करोडो की बताई जाती है। यह भी बताया जाता है कि विवेक ढांड की तर्ज पर राजेश तिवारी ने भी रायपुर से लेकर मध्यप्रदेश के सागर जिले तक ब्लैकमनी का पहाड़ स्थापित किया था। इसमें सैकड़ो एकड़ खेतिहर और आवासीय जमीने, फार्महाउस, नाते – रिश्तेदारों के नाम पर आवासीय परिसर और महंगे वाहन शामिल बताये जाते है। समाज कल्याण विभाग के इस स्कैम में सबसे बड़ा किरदार कई NGO की पर्दे के पीछे से कमान संभाल रहे डिप्टी डायरेक्टर राजेश तिवारी का बताया जाता है।

जानकारी के मुताबिक तिवारी के हस्ताक्षर से NGO के खातों में बिना रोक-टोक सैकड़ों करोड़ की रक़म ट्रांसफर होती थी। BJP सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2004 से 2018 तक महिला एवं बाल विकास विभाग में विवेक ढांड का सिक्का चलता था। बताया जाता है कि इन वर्षो में तीन मंत्री क्रमशः रेणुका सिंह, लता उसेंडी और रमशीला साहू ने इस विभाग का कार्यभार संभाला था। बताया जा रहा है कि इस स्कैम को इतने सुनियोजित तौर पर अंजाम दिया गया कि घोटाले के बारे में इन मंत्रियों को 15 सालों में भी भनक तक नहीं लगी। हालांकि घोटाले में राज्य की पूर्व समाज कल्याण मंत्री रेणुका सिंह का नाम भी लाभार्थी NGO फाउंडर की भूमिका में सामने आया है। NGO स्कैम में सबसे बड़ा सवाल यही है कि 15 साल में 3 मंत्री बदले, लेकिन NGO से जुड़ी फाइल आखिर क्यों मंत्रियों के टेबल पर नहीं पहुंची ? इस स्वीकृति की मंत्रियों को भनक तक नहीं लगी। आमतौर पर किसी भी सरकारी विभाग की स्कीम, बजट या खर्च का अंतिम अनुमोदन मंत्री स्तर पर होता है, लेकिन यहां अफसरों ने पूरी तरह बंद दरवाजे के भीतर भ्रष्टाचार का खेल खेला था।

जानकारी के मुताबिक मुख्य संदेही राजेश तिवारी लगभग 13 साल तक SRC NGO के एक क्षत्र कार्यकारी निदेशक की कुर्सी पर जमे रहे। उन्होंने शासन की बिना अनुमति के विभिन्न NGO के नाम पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में खाता खुलवाया था। कैशबुक, स्टॉक पंजीयन और वित्तीय दस्तावेज वे अपने ही पास रखा करते थे। एक शिकायत की जाँच के दौरान 1 करोड़ 35 लाख की प्राथमिक गड़बड़ी सामने आने पर इनके खिलाफ समाज कल्याण विभाग ने वर्ष 2019 में नोटिस जारी किया था। लेकिन पूर्व मुख्य सचिव ढांड के हस्तक्षेप से यह कार्यवाही शून्य कर दी गई थी। यह भी बताया जाता है कि मई 2018 के पूर्व जब ढांड और तिवारी के काले कारनामों की लगातार शिकायतें आने लगीं, तब समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन सचिव आर. प्रसन्ना ने SRC के निदेशक राजेश तिवारी को बाकायदा कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस नोटिस के जवाब को रफा – दफा करने के लिए राजेश तिवारी ने 14 साल का ऑडिट एक ही झटके में करवा कर फाइल क्लोज करवा दी थी। जबकि नियम के मुताबिक ऐसे NGO और संस्थाओं का सालाना ऑडिट होना अनिवार्य है। सूत्र तस्दीक करते है कि ढांड के खास राजदार राजेश तिवारी को संविदा पर नियुक्त रहते हुए भी कई अहम पदों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पूर्व मुख्य सचिव की वरदहस्ती में गैरकानूनी रूप से राजेश तिवारी को 32 साल की सेवा की पेंशन भी स्वीकृत की गई थी।

जानकारी के मुताबिक एक अन्य संदेही पंकज वर्मा भी NGO रजिस्ट्रेशन के बाद से कार्यकारी निदेशक बनाये गए थे। प्राथमिक जाँच के दौरान इन पर 10 करोड़ 80 लाख रुपए की गड़बड़ी के गंभीर आरोप पाए गए थे। तिवारी की तर्ज पर तत्कालीन विशेष सचिव आर प्रसन्ना ने वर्ष 2019 में वर्मा को नोटिस जारी किया था, लेकिन उन्होंने शासन को कोई जवाब नहीं दिया और न ही उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की गई थी। दस्तावेजों के अनुसार, समाज कल्याण विभाग से अलग-अलग मदों की राशि सीधे एसआरसी एनजीओ के खाते में ट्रांसफर की गई थी। इसमें त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को सहायता, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण निधि, ग्राम पंचायतों को सहायता, अतिरिक्त केंद्रीय सहायता, राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना और अन्य योजनाओं की राशि शामिल बताई जाती है।

हैरानी की बात ये है कि ये रकम पहले समाज कल्याण विभाग से शासकीय दृष्टिबाधित एवं श्रवण बाधितार्थ विद्यालय को भेजी जाती थी। वहां से सीधे SRC के खाते में डाल दी जाती थी। यह रकम टुकड़ो में अर्थात 29 लाख, 20 लाख, 7 लाख, 9 लाख, 8 लाख, 9 लाख, 6 लाख और 4 लाख जैसी राशि भी अलग-अलग मदों ट्रांसफर होती रही। दस्तावेजों के मुताबिक 2004 से 2018 तक न तो NGO की प्रबंध समिति की कोई बैठक हुई, न ही किसी मंत्री के पास इसका फाइल रिकॉर्ड पहुंचा था। ढांड के निर्देश पर विभागीय अधिकारी हर बार सामान्य नोटशीट पर दस्तखत करवाकर घोटाले की फाइलें इस टेबल से उस टेबल दौड़ा रहे थे। जानकार तस्दीक करते है कि ढांड और तिवारी की काली कमाई का पहाड़ मूक – बधिरों और विकलांगों की दीनहीन माली हालत के लिए भी जिम्मेदार है। फ़िलहाल CBI ने तमाम आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज कर अपनी विवेचना शुरू कर दी है। समाज कल्याण विभाग से पूर्व में जब्त दस्तावेजों को खंगाला जा रहा है। सीबीआई की टीम तमाम आरोपियों की आय से अधिक संपत्ति पर भी अपनी निगाह लगाए हुए है।
