
रायपुर: छत्तीसगढ़ में सुशासन की जी-तोड़ कोशिशे सरकारी दफ्तरों में आ कर दम तोड़ रही है। ताजा मामला PWD विभाग का है, यहाँ भूपे राज में स्थापित भ्रष्टाचार के मापदंड मौजूदा बीजेपी शासन काल में भी सरकार के मुँह बांये खड़े है। PWD समेत कई सरकारी विभागों में निर्माण कार्यों में वास्तविकता से परे हट कर तैयार किये जा रहे प्रोजेक्ट और उनकी स्वीकृति से वित्त विभाग की निष्ठा और सरकारी तिजोरी पर चूना लगाने की वारदाते थामे नहीं थम रही है। जानकारी के मुताबिक PWD विभाग में 47 करोड़ के एक टेंडर में कमीशनखोरी का खेल इस कदर हावी है कि दो आधे-अधूरे हॉस्टल के निर्माण में ठेकेदार ने इंजीनियरों के साथ मिलकर मोटी रकम पर हाथ साफ कर दिया है। टेंडर के मुताबिक कार्य ना करने के बावजूद उस पर पैनाल्टी लगाने के बजाय पूर्व नियोजित 25 करोड़ रुपए की स्वीकृति को लेकर ठेकेदार ने पुनः विभाग में अपने पैर पसार लिए है। उधर, PWD के चलनशील अधिकारी अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए ठेकेदार के मनमाफिक गैर-कानूनी रकम की अदायगी को लेकर पूरी तरह से सक्रिय बताये जा रहे है।

PWD सूत्रों के मुताबिक राजधानी रायपुर में सरकारी मेडिकल कॉलेज में नव निर्माण कार्यों को कुछ चुनिंदा विभागीय अधिकारियों ने अपनी अवैध आय का जरिया बना लिया है। विभिन्न प्रोजेक्ट में लागत राशि वास्तविकता से परे हट कर आंकलन की जा रही है, खर्चों और लागत को दरकिनार कर विभिन्न प्रोजेक्ट में ठेकेदारों की मनमर्जी के मुताबिक विकास के नाम पर सरकारी तिजोरी से मोटी रकम स्वीकृत करा कर कमीशनखोरी का बड़ा मामला सामने आया है। एक शिकायत में बताया गया है कि मेडिकल कॉलेज में निर्माणाधीन भवनों में मात्र 15 करोड़ के निर्माण कार्य की लागत को सुनियोजित रूप से पहले 38 करोड़ पहुंचाया गया था। लेकिन बीजेपी के सत्ता में आते ही प्रोजेक्ट की लागत 47 करोड़ तक जा पहुंचा दी गई है। जबकि तत्कालीन अधिकारियों ने सरकारी रकम हड़पने के लिए AC कमरे में बैठ कर लागत की रकम की बढ़ोत्तरी का फुलप्रूफ प्लान तैयार किया था।

बताते है कि इस बड़े घोटाले में भूपे राज में चलनशील तत्कालीन विभागीय मंत्री और इंजिनियर एवं कथित SDO की महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह भी बताया जा रहा है कि मामले की शिकायत के बाद तत्कालीन अधिकारियों ने ठेकेदार से सांठगांठ कर उच्च स्तरीय जांच से बचने के लिए निर्माण कार्य पर ही रोक लगा दी थी। कांग्रेस सरकार के दोबारा सत्ता में आने की उम्मीद के चलते दागी अफसर मात्र 38 करोड़ ही रफादफा कर पाए थे। लेकिन अब उनके हौसले बुलंद बताये जा रहे है। ठप प्रोजेक्ट को पटरी में लाने के लिए एक बार फिर मूल लागत को धत्ता बताते हुए इस प्रोजेक्ट में 25 करोड़ की बढ़ोत्तरी करते हुए विभागीय अफसरों ने बीजेपी सरकार के सामने नया प्रस्ताव भेज दिया है, अब लाभान्वित होने वाले अफसर सरकार की स्वीकृति का इंतजार कर रहे है। भ्रष्टाचार का यह मामला गंभीर जांच के दायरे में बताया जा रहा है।

जानकारी के मुताबिक प्रदेश में बीजेपी के सत्ता में आने के साथ ही रायपुर में जेल रोड स्थित मेडिकल कॉलेज में निर्माणाधीन इमारतों का कार्य बगैर किसी ठोस कारण के अचानक बंद कर दिया गया था। बताते है कि यह प्रोजेक्ट भूपे राज में दिन दुगुनी रात चौगुनी प्रगति पर था। लेकिन राज्य में कांग्रेस सरकार की रवानगी के बाद ही ठेकेदार एजेंसी को ऐसा सांप सुंघा की उसने अचानक निर्माण कार्यों से पल्ला झाड़ लिया। यह भी बताया जाता है कि मोटा कमीशन और तत्कालीन सरकार पर लाखों खर्च करने के बाद भी बीजेपी के सत्तारूढ़ होने से ठेकेदार एजेंसी के अरमानों पर पानी फिर गया था। लेकिन लगभग डेढ़ साल बाद इस ठप प्रोजेक्ट को सक्रिय बनाने के लिए लाभान्वित होने वाले ठेकेदारों समेत कई अधिकारी जोर-शोर से जुट गए है। सूत्र तस्दीक करते है कि लाभान्वित होने वाली ठेकेदार एजेंसी ने मौजूदा बीजेपी सरकार कों 25 करोड़ के अतिरिक्त भुगतान की फाइल सौंप दी है। यह फाइल घोटालों की तस्दीक से जुड़ी बताई जा रही है।
विभागीय सूत्रों द्वारा बताया जाता है कि मंत्री समेत उच्चाधिकारियों को गुमराह कर एक बार फिर ठेकेदार एजेंसी ने मोटी रकम पर हाथ मारने की तैयारी कर ली है। विभिन्न टेबलों से गुजरते हुए यह फाइल अंतिम पड़ाव में बताई जा रही है, कहा जा रहा है कि जरुरी दस्तावेजों में सिर्फ विभागीय मंत्री के हस्ताक्षर होने बाकि है, इसका बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज परिसर में निर्माणधीन प्रोजेक्ट की उच्च स्तरीय जांच के लिए महकमे के कई जिम्मेदार अफसर भी जोर दे रहे है। उनके मुताबिक सरकारी रकम का बेजा इस्तेमाल करने में लिप्त दोषियों पर वैधानिक कार्यवाही करने के बजाय एक बार फिर सरकार को चूना लगाने के प्रयासों की विभाग में जय-जयकार हो रही है। वे तस्दीक करते है कि घोटालों की जांच का इंतजार कर रही अवैध धन राशि की स्वीकृति वाली यह फाइल विभाग में इस टेबल से उस टेबल का सफर रोजाना तय कर रही है।

जानकारी के मुताबिक बीजेपी के सत्ता में आते ही मेडिकल कॉलेज परिसर में छात्रों के हॉस्टल और डॉक्टरों के निर्माणाधीन फ्लैट का प्रोजेक्ट अचानक ठप कर दिया गया था। इसके बाद ठेकेदार ने कभी लोकेशन का रुख ही नहीं किया। यह प्रोजेक्ट पिछले लगभग डेढ़ साल से बंद बताया जाता है। यह भी बताया जाता है कि भूपे राज में पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन अधिकारियों ने मात्र 15 करोड़ की लागत से इस प्रोजेक्ट की 3 इमारतों का खांका खींचा था। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के साथ विचार-विमर्श के बाद अचानक प्रोजेक्ट की लागत 38 करोड़ निर्धारित कर दी गई। आनन-फानन में इसकी वित्तीय स्वीकृति प्रदान कर योजना को मूलरूप दिया गया।

आईआईटी रुड़की से अनुमोदित प्रोजेक्ट से निर्माण एजेंसी को रूबरू भी कराया गया था। पूर्ववर्ती सरकार के दौर में इस प्रोजेक्ट के 38 करोड़ रातों-रात खर्च कर दिए गए। बताया जाता है कि इस प्रोजेक्ट की लागत और स्वीकृत दर मौजूदा बाजार दरों और अन्य निर्माण एजेंसियों की तुलना में दोगुने से काफी अधिक बताई जा रही है। एक शिकायत में कहा गया है कि ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए विभागीय अधिकारियों ने प्रोजेक्ट की नक़्शे-डिजाइन में विलंब को आधार बनाते हुए नए सिरे से अनुमानित लागत 25 करोड़ दर्शाकर वरिष्ठ अधिकारियों को गुमराह करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

विभागीय जानकार तस्दीक करते है कि 38 करोड़ के बाद 25 की प्रशासकीय स्वीकृती से जुड़ी फाइल एक बार फिर शासन के पास विचाराधीन है। उनके मुताबिक भूपे राज में यह प्रोजेक्ट पहले ही घोटाले की भेट चढ़ चूका है, अब नए सिरे से 25 करोड़ के भ्रष्टाचार को शिष्टाचार में स्वीकृत किये जाने की फाइल सरकारी प्रक्रिया में आ गई है। जानकारों के मुताबिक कांग्रेस राज में एक शिकायत पर बवाल मचने के बाद यह प्रोजेक्ट 38 करोड़ में ही स्वीकृत होकर नव निर्माण के तरफ बढ़ गया था। टेंडर निविदा की शर्तों के मुताबिक एजेंसी को तीन मंजिल, चार मंजिल और पांच मंजिल की तीन इमारतों का निर्माण तय नाप-नक़्शे और डिजाइन के अनुरूप करना था। इसका हवाला ठेकेदार को उस समय दिया गया था, जब मात्र 15 करोड़ के कार्य की निविदा-टेंडर स्वीकृति 38 करोड़ तक जा पहुंचाई गई थी। जानकार तस्दीक करते है कि टेंडर की शतों में पहले 10,300 क्यूबिक मीटर और फिर बवाल मचने के बाद ठेकेदार से 15 हजार क्यूबिक मीटर के निर्माण की विशेष शर्त विभागीय तौर पर शामिल की गई थी।

निर्माण के दौरान ईमारत में कांक्रीट की थिकनेस भी 90 सेंटीमीटर से बढ़ाकर 150 सेंटीमीटर तय की गई थी। शिकायत के मुताबिक राजनैतिक संरक्षण प्राप्त ठेकेदार द्वारा इस प्रोजेक्ट को ना तो समय पर पूरा किया गया और ना ही इस प्रोजेक्ट की निविदा-शर्तों का पालन सुनिश्चित किया गया। ठेकेदार के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही के बजाय उसे 25 करोड़ की रकम से उपकृत किये जाने का मामला उच्च स्तरीय जांच के दायरे में बताया जा रहा है। शिकायत में यह भी बताया गया है कि पूर्ववर्ती भूपे सरकार की तर्ज पर टेंडर निविदा के बाद विभिन्न प्रोजेक्ट की लागत नए सिरे से बढ़ाकर मोटी रकम पर हाथ साफ करने की रिवायत अभी भी जस की तस चली आ रही है। शिकायत के मुताबिक PWD विभाग में तय बजट के अनुरूप निर्माण कार्यों में निविदा टेंडर की शर्तों का पालन सुनिश्चित नहीं होने से बजट का बेजा इस्तेमाल आम हो गया है। शिकायतकर्ता के मुताबिक इस प्रोजेक्ट में भी ठेकेदार एजेंसी ने बजट खत्म होते ही निर्माण कार्यों को बंद कर दिया था। मौजूदा दौर में ठेका एजेंसी मेडिकल कॉलेज परिसर में सिर्फ एक मंजिला हॉस्टल और दोनों बिल्डिंगों के दो मंजिल तक स्लैब की ढलाई कर मौके से नौ दो ग्यारह हो गई है।

पीडब्ल्यूडी विभाग के मौजूदा सरकार में चलनशील अधिकारियों ने अब इस आधे-अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने का बीड़ा उठाया है। अब दोबारा ठेकेदार को मोटा भुगतान कर अधूरे निर्माण कार्य को पूरा कराने की सुनियोजित मुहीम छेड़ी गई है, इसकी फाइल विभाग में चर्चा का विषय बनी हुई है। सूत्र तस्दीक करते है कि इस प्रोजेक्ट में धन के अपव्यय को लेकर पहले ही कई शिकायते शासन के पास लंबित है। राजनैतिक संरक्षण प्राप्त ठेका एजेंसी के खिलाफ भूपे राज में कोई जांच नहीं की गई थी और ना ही इस प्रोजेक्ट की लागत में हुई अंधाधुन वृद्धि का कोई सुसंगत कारण सामने आया था। यहाँ तक कि गंभीर शिकायतों के बावजूद तत्कालीन अधिकारियों ने मौके पर विकास कार्यों का जायजा लिया था। प्रोजेक्ट के फिजिकल वेरिफिकेशन पर भी जिम्मेदार अधिकारियों ने कोई रूचि नहीं दिखाई थी। न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने इस प्रोजेक्ट को लेकर विभागीय मंत्री से संपर्क किया, लेकिन उनका मोबाइल स्विच ऑफ आया। जबकि जिम्मेदार विभागीय अफसरों ने ‘ऊपर’ का मामला करार देकर चुप्पी साध ली।