दिल्ली वेब डेस्क / कोरोना संक्रमण ने आर्थिक मोर्चे पर करारी चोट की है | भारत सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए बड़े पैकेज का एलान किया है | इसका अर्थव्यसवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा , यह तो वक्त ही बताएगा ? लेकिन मौजूदा दौर में लोगों को आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया वाली स्थिति का सामना करना पड़ रहा है | उनकी आर्थिक स्थिति डामाडोल कर रही है |
कोरोना संकट के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान 80 फीसदी से ज्यादा भारतीयों की आमदनी में कमी आई है। यह खुलासा सेंटर फॉर इंडियन इकोनॉमी के 27 राज्यों में किए गए एक सर्वे में हुआ है। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि काफी लोग ऐसे हैं जिनका बिना सहायता के ज्यादा दिन तक जीना मुश्किल हो जाएगा। सर्वे के मुताबिक, देश के 84 फीसदी लोग महज 3801 रुपये तक कमाते हैं, उनकी आमदनी पर बुरा असर पड़ा है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजी-रोजगार पर सबसे बुरा असर पड़ा है, हालांकि इन क्षेत्रों में कोरोना वायरस का प्रसार काफी कम है। देश की 130 करोड़ आबादी में शामिल बड़ा वर्ग चाहे वे हिंदू परिवार हों या मुस्लिम सबकी कमर टूट गई है। इस सर्वे में देशभर के 5800 परिवारों से अप्रैल महीने में बात की गई। इस सर्वे के आंकड़ों का विश्लेषण यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर मारीन बर्टेंड और सीएमआईई के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक कृष्णन ने किया है।
लॉकडाउन का सबसे बुरा असर देश के पांच राज्यों पर पड़ा है। ये राज्य हैं पूर्वोत्तर का त्रिपुरा और उत्तर भारतीय राज्य छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और हरियाणा। इस सर्वे में 34 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि वे बिना अतिरिक्त आर्थिक मदद के एक सप्ताह भी नहीं रह पाएंगे। सर्वे में ऊंचे वेतन वाले लोगों की आय में कमी कम देखी गई हैं, क्योंकि इनमें ज्यादातर लोगों पास स्थायी नौकरी है। वे लॉकडाउन के दौरान घर से काम करने के विकल्प पर काम भी कर पा रहे हैं। कम आय वाले समूह में सिर्फ कृषि कार्य से जुड़े लोग और खानपान से जुड़े श्रमिकों को ही काम मिल पा रहा है।
सीएमआईई और दूसरी संस्थाओं के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 25 मार्च को लॉकडाउन के ऐलान होने के बाद एक महीने में तकरीबन 10 करोड़ भारतीयों का रोजगार खत्म हो गया है। दुनिया भर में बात की जाए तो 1.3 अरब लोगों की आमदनी अलग अलग देशों में चल रहे लॉकडाउन के कारण बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई है।