देशभर के मौजूदा और पूर्व सांसद-विधायको पर साढ़े चार हजार मुकदमों से भरी है अदालतों की आलमारी , हाई कोर्टों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया , उत्तर प्रदेश , बिहार और दिल्ली अव्वल नंबर पर 

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नई दिल्ली / देश में राजनीति के अपराधीकरण को लेकर अब जनता की आवाज बुलंद हो रही है | राजनीति में आपराधिक तत्वों पर लगाम लगाने के लिए अदालत भी कमर कस रही है | आप जानकार हैरान हो जायेगे कि देश के कई पूर्व एवं वर्तमान “माननीय” कई महत्वपूर्ण पदों पर तब तक विराजमान है जब तक कि उनके खिलाफ चल रहे मुकदमे निपटने के मामले में रफ़्तार नहीं पकड़ पाए है | अब अदालते इन राजनेताओं पर दर्ज मामलों के जल्द निपटारे पर जोर दे रही है | राजनीति के अपराधीकरण को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में विचाराधीन है |   

सुप्रीम कोर्ट को देश के सभी हाई कोर्टों से मिली जानकारी के अनुसार देश में नेताओं के खिलाफ 4,442 आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। इनमें से 2,556 ऐसे मामलों में वर्तमान सांसदों तथा विधायकों के खिलाफ मुकदमे लंबित हैं। संसद और विधान सभाओं में निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के तेजी से निबटारे के लिए दायर याचिकाओं पर न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को ऐसे लंबित मामलों का विवरण पेश करने का निर्देश दिया था।

इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने सभी हाई कोर्टो से मिले विवरण को संकलित करके अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी है। इस रिपोर्ट में कहा गया, ‘सभी उच्च न्यायालयों की दी रिपोर्ट से पता चलता है कि कुल 4,442 ऐसे मामले लंबित हैं। इनमें से 2,556 मामलों में वर्तमान सांसद-विधायक आरोपित हैं। इनमें से 352 मामलों की सुनवाई उच्चतर अदालतों के स्थगन आदेश की वजह से रुकी है।’

न्यायालय में पेश 25 पेज के हलफनामे में कहा गया है कि इन 2,556 में निर्वाचित प्रतिनिधि आरोपित हैं। इन मामलों में संलिप्त प्रतिनिधियों की संख्या मामलों से ज्यादा है क्योंकि एक मामले में एक से ज्यादा ऐसे निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल हैं जबकि यही प्रतिनिधि एक से अधिक मामलों में आरोपित हैं।

भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर न्यायालय की ओर से दिए गए आदेश पर यह रिपोर्ट दाखिल की गई है । हंसारिया ने अपने हलफनामे में राज्यों के अनुसार भी मामलों की सूची पेश की है जिनमें उच्च अदालतों के स्थगन आदेशों की वजह से मुकदमों की सुनवाई रुक गई है। रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने 352 मामलों की सुनवाई पर रोक लगाई है। 413 मामले ऐसे अपराधों से संबंधित हैं जिनमें उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। इनमें से 174 मामलों में पीठासीन निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल हैं। राजनीति के अपराधीकरण को लेकर उत्तर प्रदेश अव्वल नंबर पर है | इसके बाद बिहार और अन्य राज्य शामिल है | 

रिपोर्ट के अनुसार इस चार्ट में सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश है जहां जनप्रतिनिधियों के खिलाफ 1,217 मामले लंबित हैं , इनमें से 446 ऐसे मामलों में वर्तमान जनप्रतिनिधि शामिल हैं। इसी तरह,बिहार में 531 मामलों मे से 256 मामलों में वर्तमान जनप्रतिनिधि आरोपित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनेक मामले भ्रष्टाचार निरोधक कानून, धनशोधन रोकथाम कानून, शस्त्र कानून, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से रोकथाम कानून और भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दर्ज हैं। न्याय मित्र ने इन नेताओं से संबंधित मुकदमों के तेजी से निबटारे के लिये न्यायालय को कई सुझाव भी दिए हैं। इनमें सांसदों और विधायकों के मामलों के लिये प्रत्येक जिले में विशेष अदालत गठित करने का सुझाव शामिल है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि हाई कोर्टों को ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी करनी चाहिए। हलफनामे में सुझाव दिया गया है कि प्रत्येक हाई कोर्ट को राज्य में लंबित ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी और शीर्ष अदालत के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए सांसद/विधायकों के लिए विशेष अदालत नाम से अपने यहां स्वत: मामला दर्ज करना चाहिए। प्रत्येक हाई कोर्ट पूर्व और वर्तमान जनप्रतिनिधियों से संबंधित मुकदमों की संख्या और मामले की प्रवृत्ति को देखते हुए उन्हें सुनवाई के लिए आवश्यकतानुसार सत्र अदालतों और मजिस्ट्रेट की अदालतों को नामित कर सकते हैं। हाई कोर्ट आदेश के चार सप्ताह के भीतर इस तरह का फैसला ले सकते हैं। यह भी सुझाव दिया गया है कि विशेष अदालतों को उन मुकदमों को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें अपराध के लिए दंड मौत की सजा या उम्र कैद है। इसके बाद सात साल की कैद की सजा के अपराधों को लेना चाहिए।