छत्तीसगढ़ के बस्तर में केंद्र का स्वच्छ भारत अभियान फेल होने की कगार पर , कायदे कानूनों की उडी धज्जियां , 150 करोड़ की योजना को मात्र 5 करोड़ 40 लाख में निपटाने का प्रयास , सरकारी रकम की सुनियोजित बंदरबांट , संविदा अफसर की नियुक्ति कर उसके कंधों पर कमीशनखोरी और भ्रष्ट्राचार की बंदूक चला रहे है जिम्मेदार अफसर , नक्सलियों को भी आर्थिक सहयोग की खबर 

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बस्तर / केंद्र सरकार का स्वच्छ भारत अभियान बस्तर में फेल साबित हो रहा है | इस अभियान के तहत हितग्राहियों को लाभांवित करने के बजाय शौचालय का ठेका लेने वाली कंपनी और सरकारी अफसर लाभांवित हो रहे है | बताया जाता है कि बस्तर के किसी भी इलाके में केंद्र और राज्य की गाइडलाइन के मुताबिक कार्य नहीं किया गया है | सिर्फ कमीशनखोरी और भ्रष्ट्रचार के लिए परवान चढ़ी यह योजना फेल साबित हो रही है | बस्तर का एक भी जिला ऐसा बाकी नहीं है , जहां गुणवत्ता पूर्ण और गाइडलाइन के तहत कार्य हुआ हो |बस्तर के तीन जिलों सुकमा , दंतेवाड़ा और नारायणपुर में एक बड़ी आबादी इस योजना से लाभांवित नहीं हो पाई | 

स्वच्छ भारत अभियान के लिए अकेले बस्तर में करीब 150 करोड़ की धनराशि के टेंडर जारी किये गए थे | लेकिन इसकी सुनियोजित और बड़े पैमाने पर ऐसी बंदरबाट हो रही है कि यह योजना मात्र 5 करोड़ 40 लाख में सिमट गई है | आदिवासियों के हितो और उनके संवैधानिक अधिकारों को लेकर कार्यरत संगठनों और आयोगों को इन इलाकों का रुख करना होगा | क्योंकि इस योजना का एक बड़ी आबादी को लाभ नहीं मिल पा रहा है | स्वच्छ भारत अभियान योजना के झूठे प्रचार के लिए कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने मीडिया में पेड न्यूज़ के तहत तस्वीरें जारी कराई और अपना उल्लू सीधा कर लिया | लेकिन इस योजना की जमीनी हकीकत कुछ और ही है | केंद्र प्रदत्त इस योजना की सीबीआई जांच की जरूरत महसूस की जा रही है | 

दरअसल आदिवासी इलाकों में स्वच्छ भारत अभियान को कड़ाई के साथ लागू किया जाना था | ताकि आदिवासियों को समुचित लाभ मिल सके | लेकिन बस्तर में यह योजना आपराधिक बंदरबांट की शिकार हो गई | गंभीर बात यह है कि कागजो में कारीगरी करने और कमीशनखोरी के लिए यहां संविदा में एक “अफसर” की तैनाती की गई | ताकि प्रतिकूल परिस्थियों में योजना की विफलता का ठीकरा उस अफसर पर फोड़ कर जिम्मेदार अधिकारी बच सके |    

प्रतिकात्मक तस्वीर 

बस्तर के सुकमा , नारायणपुर और दंतेवाड़ा में LWE और पहुँचविहीन ग्राम पंचायतों में शौचालय निर्माण के लिए SBM फंड से 12 हजार और वर्ड बैंक फ़रमार्मेन्स के हिसाब से कुल 20 हजार रूपये की राशि प्रति हितग्राही को जारी किया जाना था | इसके लिए करीब 150 करोड़ का टेंडर जारी किया गया था | इस टेंडर को कागजों में तीन कंपनियों ने अलग अलग हासिल किया | लेकिन जमीनी स्तर पर इन तीनो ही कंपनी का कार्य एक मात्र कंपनी ही अंजाम दे रही है | बताया जा रहा है कि टेंडर प्रक्रिया के कागजी खानापूर्ति के लिए एक कंपनी ने अपने तीन अलग अलग हिस्सेदार मैदान में उतारे थे | इस कंपनी को कुछ आईएएस अफसरों और एक नेता का वरदहस्त प्राप्त बताया जा रहा है | इसके चलते आदिवासी इलाकों में स्वच्छ भारत अभियान में बड़े पैमाने पर भ्रष्ट्राचार व्याप्त हो गया है | जानकारी के मुताबिक जहां यह योजना फेल होने के कगार पर है , वही सरकारी रकम की बंदरबांट में नक्सली समर्थकों और उनसे सहानुभूति रखने वाले संगठनों को भी कमीशनखोरी में हिस्सेदार बना दिया गया है | नतीजतन घटिया टॉयलेट की शिकायत करने वाले आदिवासियों को कुछ ग्रामीण चुप्पी साधने की हिदायत दे रहे है | छत्तीसगढ़ सरकार को भी इस योजना की सुध लेनी होगी | वर्ना आदिवासी इलाकों में गंदगी का आलम पहले ही जैसे नजर आएगा | |   

प्रतिकात्मक तस्वीर 

बस्तर में ग्रामीण और आदिवासी बस्तियों में शौचालय के नाम पर घटिया बायो शौचालय स्थापित कर दिए गए | ट्रेलर माउंटेड  बायोडाइजेस्टर टॉयलेट खरीदी के नाम पर अकेले नारायपुर जिले में 9 करोड से ज्यादा के गोलमाल की खबर है | अबूझमाड़ इलाके के अधिकांश ग्रामों में हर 30 परिवार के पीछे ट्रेलर माउंटेड बायो डाइजेस्टर खरीदे गए है | जिले में 6 लाख 13 हजार 6 सौ रूपये प्रतिनग के हिसाब से लगभग 9 करोड़ के 143 बायो टॉयलेट खरीदी प्रक्रिया जोरो पर है |  आरोप यह भी लग रहे है कि इसकी कीमत बाजार में उपलब्ध इसी तरह के उत्पाद से दो से ढाई गुनी ज्यादा है | इतनी अधिक कीमत में इनकी खरीदी को लेकर अफसर चुप्पी साधे हुए है | 

यही हाल दंतेवाड़ा का है | यहां भी शौचालय घोटाले की पोल परत दर परत खुलती जा रही है | बताया जा रहा है कि यहाँ जिस राशि से शौचालय निर्माण किया जाना था , उस निर्माण के बजाय घोटाले को अंजाम देने के लिए बने बनाये शौचालय खरीद लिए गए |  बस्तर में  सुकमा , बीजापुर , कोंडागांव में भी घटिया शौचालय से हितग्राही परेशान हो रहे है | बताया जाता है कि ज्यादातर हितग्राहियों से उपयोगिता प्रमाण पत्रों पर गलत जानकारी देकर हस्ताक्षर कराये गए | स्थानीय कर्मियों ,अधिकारियों और नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले तत्वों के दबाव में भोले भाले आदिवासियों ने अपने अंगूठे और हस्ताक्षर कर दिए |  

प्रतिकात्मक तस्वीर 

दंतेवाड़ा जिले के गीदम, दंतेवाड़ा, कुआकोंडा, कटेकल्याण में स्वच्छ भारत मिशन के तहत पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा खरीदे गए चलित शौचालय बिना उपयोग के ही अब कंडम हो गए हैं। इन शौचालयों में लगी पानी टंकी सहित दूसरे सामान भी चोरी हो रहे हैं। कुआकोंडा, कटेकल्याण के नक्सल प्रभावित ग्राम पंचायतों में शौचालय नहीं बन पाए हैं। जानकारी के मुताबिक बुरगुम पंचायत में 450 और पोटाली में 500 परिवार हैं। यहां पर एक भी घर में शौचालय नहीं बनवाया गया है। दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने इन दोनों पंचायतों के साथ ही रेवाली, नहाड़ी, गुमियापाल, हिरोली पंचायतों के लिए चलित शौचालय खरीदने की योजना पर जोर दिया था |  

बस्तर में स्वच्छ भारत अभियान लगभग फेल साबित हो रहा है | यह योजना अब कमीशनखोरी की भेंट चढ़ चुकी है | इस योजना के खिलाफ मुंह खोलने वाले आदिवासियों को नक्सली समर्थक दबाव डाल रहे है | इससे साफ़ हो रहा है कि भ्रष्ट्र अफसरों के तार कहां  तक फैले हुए है | देश के सबसे संवेदनशील बस्तर जैसे इलाके में पैर पसार रहे नक्सलवाद के पीछे भ्रष्ट्रचार मुख्य वजह बताई जा रही है | ऐसे में केंद्र प्रदत्त इस योजना से लाभांवित ना होने वाले आदिवासी विकास से ना केवल कोसो दूर नजर आएंगे बल्कि इस योजना की विफलता केंद्र और राज्य सरकार , दोनों के लिए काला अध्याय साबित होगी |