शीर्ष अदालत ने कहा,संदेह कितना भी पुख्ता हो सबूत का स्थान नहीं ले सकता, आरोपी तब तक निर्दोष, जब तक उसे दोषी साबित नहीं किया जाता  

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नई दिल्ली / सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चाहे कितने भी पुख्ता आधार वाला शक क्यों नहीं हो, किसी सबूत की जगह नहीं ले सकता है। एक सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक आरोपी तब तक निर्दोष माना जाता है, जब तक उसे वाजिब शक से परे दोषी साबित नहीं कर दिया जाता। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने इस टिप्पणी के साथ हत्या के एक मामले में आरोपियों को बरी करने के ओडिशा हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया।


 
दरअसल, ओडिशा हाईकोर्ट ने एक होमगार्ड को बिजली का करंट देकर मार डालने के दो आरोपियों को बरी कर दिया था। पीठ ने कहा, ऐसे मामले में सबूतों की पूरी श्रृंखला होनी चाहिए है, जो दिखाए कि सभी मानवीय संभावनाओं के तहत आरोपियों ने ही अपराध किया है। इस श्रृंखला में किसी भी ऐसे निष्कर्ष के लिए संदेह नहीं रहना चाहिए, जो आरोपी को निर्दोष मानने की संभावना दिखाता हो।पीठ ने कहा, इस अदालत के कई न्यायिक फैसलों से यह अच्छी तय किया जा चुका है कि संदेह कितना भी पुख्ता हो, लेकिन वह सबूत का स्थान नहीं ले सकता है। एक आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है, जब तक कि उसे उचित संदेह से परे दोषी साबित न कर दिया जाए। पीठ ने कहा, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बिजली के झटके से मौत की पुष्टि हुई है, लेकिन इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि यह हत्या थी।

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बात के रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए कहा कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने इस बात की प्रबल संभावना जताई है कि मृतक शराब के नशे में था और हो सकता है कि उसने सोते समय गलती से विद्युत तार को छू लिया हो। पीठ ने कहा, अभियोजन आरोपियों को दोषी साबित करने में फेल रहा है। इस कारण ट्रायल कोर्ट का उन्हें बरी करने का फैसला सही है। मृतक की पत्नी गीतांजलि ताडू की तरफ से दर्ज एफआईआर में बताया गया था कि उसका पति बिजय कुमार ताडू चांदबली पुलिस थाने में होमगार्ड के तौर पर कार्यरत था। गीतांजलि ने आरोप लगाया था कि बनबिहारी मोहपात्रा, उसके बेटे लूजा और अन्य लोगों ने उसके पति को जहरीला पदार्थ खिलाने के बाद बिजली का करंट देकर हत्या कर दी।