बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले से हैरत में पड़े कानून विशेषज्ञ, अदालत ने दोषी को पॉक्सो एक्ट की धारा से किया बरी, हाईकोर्ट के इस फैसले से उठे सवाल?

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मुंबई / बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन हमले से जुड़े एक मामले में ऐसा फैसला सुनाया है, जिसका छेड़छाड़, छेड़छाड़ की कोशिश, यौन हमला जैसे केस में व्यापक असर हो सकता है | बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की तरफ से एक सप्ताह के दौरान पॉक्सो एक्ट से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में दिए गए फैसलों की कानून जगत में आलोचना शुरू हो गई है। विशेषज्ञों ने दोनों मामलों में यौन हमले को लेकर जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला की संकीर्ण व्याख्या पर हैरानी जताते हुए सवाल खड़े किए हैं।

दरसअल बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि कपड़े के ऊपर से बच्ची का सीना दबाना और इस दौरान शारीरिक संपर्क न होना, यानी कि ‘स्किन का स्किन से न छूना पॉक्सो कानून के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता है | बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने इस मामले में आरोपी को बरी कर दिया है | बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस प्रदीप नंदराजोग ने कहा कि दोनों फैसले गलत और दुराग्रही हैं। उन्होंने कहा, ऐसे मामलों में अदालत की तरफ से देखी जाने वाली सबसे अहम बात आरोपी का इरादा होता। यौन इरादे के साथ किया गया किसी भी अनुचित तरीके से छूना या व्यवहार करना पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत आता है। सेवानिवृत्त जज ने कहा, यदि इरादा यौन हमले को अंजाम देने का है तो चाहे शरीर से शरीर छूना हो या हाथ पकड़ना या पैंट की जिप खोलना, यह सबकुछ गलत है।

उन्होंने कहा, सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात है कि ये फैसले एक महिला जज ने दिए हैं। हम महिला जजों, अधिकारियों और कर्मचारियो को निचली अदालतों में इस अधिनियम के तहत आने वाले मामलों के लिए इस कारण नियुक्त करते हैं, क्योंकि वे पीड़ित बच्ची को समझने और उससे बातचीत करने में सबसे ज्यादा बेहतर मानी जाती हैं।मुंबई हमलों के आतंकी अजमल कसाब और मुंबई बम धमाकों के आरोपी याकूब मेमन को सजा दिलाने वाले मशहूर सरकारी वकील उज्जवल निकम ने कहा, पॉक्सो कानून लागू करने के पीछे विधायिका का इरादा नाबालिग बच्चियों की सुरक्षा करना था। इसलिए तकनीकी जटिलताओं में जाने के बजाय आरोपी की हरकत और इरादा देखा जाना चाहिए।

ये तकनीकी जटिलताएं कानून के उद्देश्य को नहीं हरा सकतीं। महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली वकील फ्लाविया एग्नेस ने कहा, ये निर्णय पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों को सही तरीके से पेश नहीं करते हैं।यह मामला 2016 का है | दोषी सतीश बंदू रागड़े 12 साल की बच्ची को अपने घर ले गया था और उसने बच्ची का सीना दबाया | जानकारी के मुताबिक बच्ची एक काम के सिलसिले में घर से बाहर गई थी, काफी देर तक जब वो नहीं लौटी तो उसकी मां उसे ढूंढ़ने के लिए निकली गई थी | जब मां सीढ़ियों से नीचे आ रही थी तो उसने अपनी बेटी के बारे में रागड़े से पूछा | रागड़े ने इस बारे में जानकारी से इनकार कर दिया था | डरी-सहमी बच्ची ने मां को बताया कि रागड़े उसे अमरूद देने के बहाने से अपने घर ले गया था और उसने उसका सीना दबाया और उसका सलवार उतारने की कोशिश की | इसी वक्त उसकी मां वहां पहुंच गई थी |

इस मामले में बच्ची की मां ने तुरंत पुलिस में केस दर्ज करवाया | निचली अदालत ने इस मामले में 39 साल के आरोपी को पॉक्सो एक्ट के तहत सेक्सुअल असॉल्ट और IPC की धारा 354 धारा-363और धारा- 342 के तहत दोषी करार दिया था |अभियुक्त रागड़े निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट चला गया | अदालत में सरकारी वकील एमजे खान ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत ब्रेस्ट को दबाना सेक्सुअल असॉल्ट की परिभाषा के दायरे में आता है | 19 जनवरी को जस्टिस पुष्पा वी गनेडियावाला ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया | यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हाई कोर्ट ने इस तरह के कृत्य को अपराध की श्रेणी से मुक्त नहीं किया है |

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