
नई दिल्ली। जस्टिस यशवंत वर्मा मामला अब सुप्रीम कोर्ट की गंभीर निगरानी में है। सोमवार, 28 जुलाई 2025 को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस वर्मा से जुड़ी जले हुए नकदी नोटों और महाभियोग प्रस्ताव के मामले में कड़े सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि वे इन-हाउस जांच कमेटी के सामने खुद क्यों पेश हुए? क्या उन्हें उम्मीद थी कि फैसला उनके पक्ष में होगा?
इस सुनवाई में न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले को गंभीरता से लिया। अदालत ने यह भी पूछा कि क्या वर्मा ने जांच प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास किया था?
जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि जांच पक्षपातपूर्ण थी और प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की अनदेखी की गई। उन्होंने कहा कि वर्मा को कमेटी के सामने पेश होने के लिए बाध्य किया गया था, और रिपोर्ट में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया।
मामला तब उछला जब वर्मा के आवास पर जली हुई नकदी की बोरियां मिलीं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने इन-हाउस जांच कमेटी बनाई, जिसकी रिपोर्ट में उन्हें दोषी बताया गया और महाभियोग की सिफारिश की गई।
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से जांच रिपोर्ट रद्द करने और संसद में लंबित निष्कासन प्रस्ताव पर रोक लगाने की मांग की है। दिलचस्प बात यह है कि उनकी याचिका में उनकी पहचान ‘XXX’ के रूप में दर्ज है, जो इस केस को और अधिक विवादास्पद बनाता है।