‘रेवड़ी कल्चर’ पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, कहा- वेलफेयर स्कीम और देश की आर्थिक सेहत में संतुलन जरूरी

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नई दिल्ली. चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का वायदा करने वाली राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द करने की मांग वाली अश्विनी उपाध्याय की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला बेहद गंभीर है, इसलिए लोगों की भलाई के लिए लायी जाने वाली वेलफेयर स्कीम और देश की आर्थिक सेहत दोनों में संतुलन बनाये रखने की जरूरत है. मुख्य न्यायाधीश ने मामले में सभी पक्षों से कमेटी बनाने पर सुझाव मांगते हुए अगली सुनवाई 17 अगस्त को निर्धारित की है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हम कानून बनाने के पक्ष में नहीं हैं. यह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से भी बाहर है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम जो कमेटी बनाने की बात कर रहे हैं वो इस पर विचार करेगी. उन्होंने कहा, “लोगों की भलाई के लिए लायी जाने वाली वेलफेयर स्कीम और देश की आर्थिक सेहत दोनों में संतुलन बनाये रखने की ज़रूरत है. इसलिए ही हम सब इस पर चर्चा कर रहे है.” मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “इस मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी. सभी पक्ष अगली सुनवाई में अपने-अपने सुझाव लिखित तौर पर कोर्ट को दें.”

मुख्य न्यायाधीश ने अपना एक निजी अनुभव साझा करते हुए कहा, “मेरे ससुर एक किसान हैं और सरकार ने बिजली कनेक्शन पर प्रतिबंध लगा दिया है और वे कनेक्शन का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं कुछ कर सकता हूं? मैंने उनसे कहा कि यही पॉलिसी है. लेकिन बाद में इसे रेगुलराइज कर दिया गया. मैं अपने घर में एक ईंट भी जोड़ नहीं सकता क्योंकि अगर ऐसा करता हूं तो सैंक्शन्ड प्लान का उल्लंघन करता हूं. लेकिन मेरे बगल में पड़ोसी फ्लोर बना रहे हैं और सरकार उसे बाद में रेगुलराइज कर देती है. आज यही स्थिति है. आखिर हम क्या संदेश दे रहे हैं?”

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को फटकार लगाते हुए कहा कि हमें हलफनामा नहीं मिलता, लेकिन वो सभी न्यूज पेपर को मिल जाता हैं. हमने आपका हलफनामा न्यूज पेपर में पढ़ लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से भी पूछा कि क्या सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव के पहले अपना मेनिफेस्टो चुनाव आयोग को देती हैं? इस पर विकास सिंह ने कहा, “नहीं ऐसा कोई नियम नहीं है.”

केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ज्यादातर मुफ्त वायदे मेनिफेस्टो का हिस्सा नहीं होते, वो चुनाव प्रचार के दौरान वादे में कहे जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “सभी पक्ष इसे एक मुद्दा मानते हैं. जो टैक्स देते है वो सोचते होंगे कि टैक्स का पैसा विकास के लिए लगना चाहिए, न कि फ्री में देने के लिए. ये एक गंभीर मामला है. मान लीजिए आप कह देते हैं कि आज से नहीं देना होगा उसका रिस्पांस क्या होगा? ये भी देखना होगा. इसलिए कमेटी जरूरी है जो व्यापक स्तर पर देखना होगा.”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “सवाल ये है कि हम किस हद तक इस मामले में जा सकते हैं. इस मामले में चुनाव आयोग है, राजनीतिक पार्टियां हैं. फाइनेंशियल डिसिप्लिन होना चाहिए. दूसरे देशों को देखना चाहिए. भारत में हमने राज्य और केंद्र की स्कीम को देखा है. बाढ़ आदि समय में.” चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, “भारत भी एक ऐसा देश है जहां गरीबी है और केंद्र सरकार भी भूखों को खाना खिलाने आदि की योजना है. इस पर एसजी ने कहा, “लोक कल्याण करने का एकमात्र तरीका मुफ्त उपहारों का वितरण नहीं हो सकता.”

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “मुफ्त उपहार और सामाजिक कल्याण योजना अलग हैं. अगर हम कहते हैं कि इस तरह के देश में यह दो और ये मत दो तो इसे कैसे हल किया जा सकता है.” इस मामले में वकील विजय हंसारिया ने कहा कि मैंने सिफारिश दी है कि कौन-कौन इस कमेटी का हिस्सा हो सकता है. इस पर अरविंद दातार ने कहा, “इस समिति को रिपोर्ट के लिए 8 सप्ताह की समय सीमा दी जा सकती है.”

इस मामले में दिल्ली की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यहां मुफ्त को बहुत गलत अर्थों में इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने टोकते हुए कहा कि आप सहमत हैं कि मुफ्त और कल्याण के बीच अंतर है. सिंघवी ने कहा, “हां, लेकिन कृपया समिति बनाने से पहले उठाए गए मुद्दों को सुना जाना चाहिए. सोशल वेलफेयर स्कीम और मुफ्तखोरी में अंतर ज़रूरी है. वेलफेयर स्कीम को मुफ्तखोरी बताकर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है. कोर्ट देखे कि कमेटी की ज़रूरत भी है या नहीं.”

इस पर कोर्ट ने कहा कि अभी हम सिर्फ चर्चा कर रहे है. आज कोई आदेश पास नहीं हो रहा है. इसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “हम एक समिति का प्रस्ताव करते हैं, जिसमें सचिव केंद्र सरकार, सचिव राज्य सरकार, प्रत्येक राजनीतिक दल के प्रतिनिधि, नीति आयोग के प्रतिनिधि, आरबीआई, वित्त आयोग, राष्ट्रीय करदाता संघ शामिल किए जा सकते हैं.”