
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने साफ किया कि यदि चुनाव आयोग (ECI) द्वारा किसी भी प्रकार की गैरकानूनी प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो पूरा संशोधन अभियान रद्द किया जा सकता है। यह आदेश केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि देशभर में चल रहे सभी SIR अभियानों पर लागू होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह मानकर चलती है कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और कानून व नियमों का पालन कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची संशोधन के दौरान आधार कार्ड को वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का निर्देश भी दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने चुनाव आयोग की आपत्ति खारिज करते हुए कहा कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन यह पहचान और निवास का प्रमाण जरूर है, इसलिए इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
विपक्षी दल SIR प्रक्रिया पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। उनका आरोप है कि कई असली मतदाताओं के नाम बिना उचित जांच के हटाए गए हैं। विपक्ष का कहना है कि आयोग ने नाम जोड़ने के लिए 11 दस्तावेज निर्धारित किए हैं, लेकिन आधार कार्ड को शामिल नहीं किया गया, जबकि यह सबसे सामान्य पहचान पत्रों में से एक है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई और अंतिम बहस की तारीख 7 अक्टूबर तय की है। इस आदेश से मतदाता सूची में पारदर्शिता बढ़ने की उम्मीद है और भविष्य में किसी भी गैरकानूनी संशोधन पर सख्त कार्रवाई हो सकती है।