जम्मू-कश्मीर में जारी पाबंदियों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला , सरकार एक हप्ते के अंदर सभी आदेशों की करे समीक्षा 

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दिल्ली वेब डेस्क / 

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद इंटरनेट बैन और लॉक डाउन के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाया | जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की संयुक्त बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाया | जस्टिस रमना ने फैसला पढ़ते हुए कश्मीर की खूबसूरती का जिक्र किया | उन्होंने कहा कि कश्मीर ने बहुत हिंसा देखी है | इंटरनेट फ्रीडम ऑफ स्पीच के तहत आता है | यह फ्रीडम ऑफ स्पीच का जरिया भी है | इंटरनेट आर्टिकल-19 के तहत आता है | नागरिकों के अधिकार और सुरक्षा के संतुलन की कोशिशें जारी हैं | इंटरनेट बंद करना न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है | जम्मू-कश्मीर में सभी पाबंदियों पर एक हफ्ते के भीतर समीक्षा की जाए | 

अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि धारा 144 लगाना भी न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है | सरकार 144 लगाने को लेकर भी जानकारी सार्वजनिक करे | समीक्षा के बाद जानकारी को पब्लिक डोमेन में डालें ताकि लोग कोर्ट जा सकें | सरकार इंटरनेट व दूसरी पाबंदियों से छूट नहीं पा सकती | केंद्र सरकार इंटरनेट बैन पर एक बार फिर समीक्षा करे | इंटरनेट बैन की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए | पाबंदियों, इंटरनेट और बुनियादी स्वतंत्रता की निलंबन शक्ति की एक मनमानी एक्सरसाइज नहीं हो सकती | 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कश्मीर में बहुत हिंसा हुई है। हम सुरक्षा के मुद्दे के साथ मानवाधिकारों और स्वतंत्रता को संतुलित करने की पूरी कोशिश करेंगे। इंटरनेट पर एक समयसीमा तक ही रोक लगना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह कोई संदेह नहीं है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में बोलने की स्वतंत्रता अनिवार्य तत्व है। इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत एक मौलिक अधिकार है।

न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी। केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाए गए प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था। केंद्र ने न्यायालय में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी। गुलाम नबी आजाद के अलावा, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और कई अन्य ने घाटी में संचार व्यवस्था ठप होने सहित अनेक प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थीं।

केंद्र ने कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा का हवाला देते हुए कहा था कि कई सालों से सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेजा जाता था, स्थानीय उग्रवादी और अलगावादी संगठनों ने पूरे क्षेत्र को बंधक बना रखा था और ऐसी स्थिति में अगर सरकार नागरिकों की सुरक्षा के लिए एहतियाती कदम नहीं उठाती तो यह मूर्खता होती। केंद्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान खत्म कर दिए थे। इसके बाद जम्मू-कश्मीर दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभक्त हो गया था- लद्दाख और कश्मीर।