दिल्ली : नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। इस फैसले का केंद्र पर व्यापक असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। गुणदोष के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे केंद्र सरकार भी गदगद है। दरअसल कोर्ट की संविधान पीठ ने 4:1 बहुमत से केंद्र सरकार के छह साल पहले 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है।
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इसी के साथ कोर्ट ने सभी 58 याचिकाओं को भी खारिज कर दिया है। आज इस मामले में 4 जजों ने बहुमत से फैसला दिया है। जबकि एक जज ने नोटबंदी पर सवाल खड़े किए हैं। पीठ ने फैसला देते हुए कहा कि 8 नवंबर, 2016 के नोटिफिकेशन में कोई त्रुटि नहीं मिली है और सभी सीरीज के नोट वापस लिए जा सकते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी का फैसला लेते समय अपनाई गई प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस अधिसूचना को रद्द करने की कोई जरूरत नहीं है। कोर्ट ने ये भी कहा कि RBI को स्वतंत्र शक्ति नहीं कि वह बंद किए गए नोट को वापस लेने की तारीख बदल दे। अदालत ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार RBI की सिफारिश पर ही इस तरह का निर्णय ले सकती है।
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अदालत ने यह भी साफ़ किया है कि निर्णय प्रक्रिया को गलत नहीं कहा जा सकता। फैसले में ये भी कहा गया कि कोर्ट आर्थिक नीति पर बहुत सीमित दखल दे सकता है। जजों ने कहा कि केंद्र और आरबीआई के बीच नोटबंदी पर 6 महीने तक चर्चा की गई थी, इसलिए निर्णय प्रक्रिया को गलत नहीं का जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जहां तक लोगों को हुई दिक्कत का सवाल है, यहां यह देखने की जरूरत है कि उठाए गए कदम का उद्देश्य क्या था।
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हालांकि फैसले में एक जज की राय अन्य जजों से अलग थी। नोटबंदी को लेकर जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय बिल्कुल अलग रही। उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार के इशारे पर नोटों की सभी सीरीज का विमुद्रीकरण बैंक के विमुद्रीकरण की तुलना में कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है. इसलिए, इसे पहले कार्यकारी अधिसूचना के माध्यम से और फिर कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए.” उन्होंने कहा कि धारा 26(2) के अनुसार, नोटबंदी का प्रस्ताव आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड से ही आ सकता है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई ने स्वतंत्र दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया और केवल नोटबंदी के लिए केंद्र की इच्छा को मंजूरी दी। उन्होंने कहा, “आरबीआई ने जो रिकॉर्ड पेश किए, उन्हें देखने पर पता चलता है कि केंद्र की इच्छा के कारण पूरी कवायद महज 24 घंटों में की गई थी.”
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उधर वरिष्ठ जस्टिस बीआर गवई ने फैसला पढ़ा। बहुमत के फैसले को पढ़ते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि नोटबंदी का उन उद्देश्यों खासतौर पर कालाबाजारी, आतंकवाद के वित्तपोषण को समाप्त करना आदि के साथ एक उचित संबंध था। आदेशों में इसे प्राप्त करने की मांग की गई थी। उन्होंने कहा कि यह प्रासंगिक नहीं है कि उद्देश्य हासिल किया गया था या नहीं. पीठ ने आगे कहा कि नोटों को बदलने के लिए 52 दिनों की निर्धारित अवधि को अनुचित नहीं कहा जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि धारा 26 (2) आरबीआई अधिनियम, जो केंद्र को किसी भी मूल्यवर्ग के बैंक नोटों की किसी भी सीरीज को बंद करने का अधिकार देता है, का उपयोग नोटबंदी के लिए किया जा सकता है।