सुप्रीम कोर्ट ने नई संसद के निर्माण के लिए मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को दी हरी झंडी, कहा – पर्यावरण का ख्याल रखा जाए

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नई दिल्ली / सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा को हरी झंडी दे दी है | इस प्रोजेक्ट के तहत संसद की नई इमारत समेत कई सरकारी दफ्तरों का निर्माण हो रहा है | इसके खिलाफ कई याचिकाएं दायर हुई थीं, जिसमें लैंड यूज में बदलाव के खिलाफ याचिका भी शामिल थी | शीर्ष अदालत ने परियोजना को पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखने और वायुमंडलीय प्रदूषण रोकने की कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी है।

कोर्ट ने कहा केंद्र सरकार से इस संबंध में जो फैसला लिया और जिस तरह से अपने अधिकारों को प्रयोग किया वह उचित है। पर्यावरण समिति की सिफारिशें उचित हैं।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परियोजना के निर्माण के दौरान धूल से बचने के लिए स्मॉग टॉवर स्थापित किये जाएं और पर्यावरण के अनुकूल निर्माण सामग्री का उपयोग किया जाए।

क्या है सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट

राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को सेंट्रल विस्टा का दर्जा दिया गया है। राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क का इलाका इसके दायरे में आता है। राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर आता है। इसके अलावा नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन भी सेंट्रल विस्टा परियोजना के हिस्सा हैं। सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत मोदी सरकार इस इलाके सजाने और संवारने की योजना पर काम कर रही है।

इस परियोजना की घोषणा पिछले वर्ष सितम्बर में हुई थी, जिसमें एक नये त्रिकोणाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है। इसमें 900 से 1200 सांसदों के बैठने की क्षमता होगी। इसके निर्माण का लक्ष्य अगस्त 2022 तक है, जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। पीएम मोदी ने 10 दिसंबर को संसद के नए भवन का शिलान्यास किया था। साझा केन्द्रीय सचिवालय के 2024 तक बनने का अनुमान है। इसका निर्माण कार्य 2022 तक पूरा होने की संभावना है, जिसमें 971 करोड़ रुपये का खर्चा आ सकता है। याचिकाएं भूमि उपयोग बदलाव सहित विभिन्न मंजूरियों के खिलाफ दायर की गई हैं।