सुप्रीम कोर्ट का निर्देश – राजनैतिक दलों को बताना होगा कि उन्होंने क्रिमिनल बैकग्राउंड वालेउम्मीदवार को टिकट क्यों दिया ? देश में सर्वाधिक 90 फीसदी आपराधिक प्रकरण वाले सांसद केरल से जबकि सबसे कम मात्र 9 फीसदी छत्तीसगढ़ से , देखे आंकड़ा 

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दिल्ली वेब डेस्क / देश की राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को निर्देश जारी किया है ।  सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को आदेश दिया कि उसे अपने उम्मीदवारों के आधिकारिक मामलों का रिकॉर्ड अपने वेबसाइट पर दिखाना होगा। अदालत ने  यह भी आदेश जारी किया कि क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले उम्मीदवारों को वो टिकट क्यों दे रहे हैं, इसकी वजह जनता को बतानी होगी , और क्राइम संबंधी जानकारी वेबसाइट पर देनी होगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रतीत होता है कि बीते चार आम चुनाव से राजनीति में अपराधीकरण तेजी से बढ़ा है।

कई याचिकाकर्ताओं में से एक बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि कोर्ट चुनाव आयोग को निर्देश दे कि राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट न दें। ऐसा होने पर आयोग राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई करे। चुनाव आयोग की दलील थी कि चुनाव लड़ने वाले तमाम उम्मीदवारों द्वारा उनकी आपराधिक रिकॉर्ड देने मात्र से समस्या हल नहीं हो सकता | आयोग ने न्यायालय के वर्ष 2018 में दिए गए उस फैसले की याद दिलाई जिसके तहत उम्मीदवारों से उनके आपराधिक रिकार्ड को इलेक्ट्रॉनिक एवम् प्रिंट मीडिया में घोषित करने को कहा गया था। आयोग ने कहा कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने में उम्मीदवारों द्वारा घोषित आपराधिक रिकॉर्ड से कोई मदद नहीं मिली है।इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति में अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए फ्रेमवर्क तैयार करने का निर्देश चुनाव आयोग को दिया था। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति रवीन्द्र भट की पीठ ने आयोग से कहा था, ‘राजनीति में अपराध के वर्चस्व को खत्म करने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाए।’ न्यायालय ने इस पर जवाब के लिए आयोग को एक सप्ताह का समय भी दिया था। न्यायालय ने राजनीति के अपराधीकरण पर सख्त टिप्पणी की है। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा कि देश में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कुछ तो करना ही होगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सियासी दलों को वेबसाइट, न्यूजपेपर और सोशल मीडिया पर यह बताना होगा कि उन्होंने ऐसे उम्मीदवार क्यों चुनें जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सियासी दलों को ऐसे उम्मीदवार को चुनने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को अनुपालन रिपोर्ट देनी होगी जिसके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। चुनाव आयोग को भी निर्देशित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं उनके बारे में अगर राजनीतिक दल न्यायालय की व्यवस्था का पालन करने में असफल रहते हैं तो चुनाव आयोग इसे शीर्ष अदालत के संज्ञान में लाना चाहिए | न्यायालय ने लंबे समय तक चली एक अवमानना याचिका की सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया।इस याचिका में राजनीति के अपराधीकरण का मुद्दा उठाते हुए कहा गया था कि देश के राजनैतिक दल सितंबर 2018 में आए शीर्ष अदालत के निर्देश का पालन नहीं कर रहे है | इस निर्देश में सियासी दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने के लिए कहा गया था। 

न्यायमूर्ति रोहिन्टन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद कहा कि सियासी दल अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की विस्तृत जानकारी फेसबुक , ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, क्षेत्रीय भाषा के एक अखबार और एक राष्ट्रीय अखबार में अनिवार्य रूप से प्रकाशित करे । न्यायालय ने यह भी कहा कि राजनैतिक दलों को ऐसे उम्मीदवारो के विजय होने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को अनुपालन रिपोर्ट सौपनी होगी जिसके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। फैसले में यह भी कहा गया कि जिन उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं उनके बारे में अगर राजनीतिक दल न्यायालय की व्यवस्था का पालन करने में असफल रहते हैं तो चुनाव आयोग इसे शीर्ष अदालत के संज्ञान में लाए।

साल 2018 के सितंबर माह में 5 जजों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह गंभीर अपराध में शामिल लोगों के चुनाव लड़ने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने के लिए तत्काल कानून बनाए।आयोग ने सुझाव दिया कि उम्मीदवारों से आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में घोषित करने के बजाए ऐसे उम्मीदवारों को टिकट से वंचित कर दिया जाना चाहिए जिनका पिछला रिकॉर्ड आपराधिक रहा हो।

मौजूदा लोकसभा में 542 सांसदों में से 233 यानि 43 फीसदी सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। हलफनामों के हिसाब से 159 यानि 29 प्रतिशत सांसदों के खिलाफ हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर मामले लंबित है। 
इनमे बीजेपी के 303 में से 301 सांसदों के हलफनामे के विश्लेषण में पाया गया कि साध्वी प्रज्ञा सिंह सहित 116 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। जबकि कांग्रेस के 52 में से 29 सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं | सर्वाधिक 204 लंबित मामलों वाले केरल से नवनिर्वाचित कांग्रेसी सांसद डीन कुरियाकोस सूची में प्रथम स्थान पर है |  यही नहीं इनके अलावा सभी प्रमुख दलों में दागी सांसदो की संख्या लगातार बढ़ रही है | मौजदा सदन में सत्तारूढ़ राजद के घटक दल लोजपा के सभी छह निर्वाचित सदस्यों, बसपा के आधे (10 में से 5), जदयू के 16 में से 13, तृणमूल कांग्रेस के 22 में से नौ और माकपा के तीन में से दो सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। बीजद के 12 निर्वाचित सांसदों में सिर्फ एक सदस्य ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले की हलफनामे में घोषणा की है। बिहार और बंगाल के सबसे ज्यादा सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज है  अपराधों में फंसे सर्वाधिक सांसद केरल और बिहार से चुन कर आए। केरल से निर्वाचित 90 फीसदी, बिहार से 82 फीसदी, पश्चिम बंगाल से 55 फीसदी, उत्तर प्रदेश से 56 और महाराष्ट्र से 58 प्रतिशत सांसदों पर केस लंबित। वहीं सबसे कम नौ प्रतिशत सांसद छत्तीसगढ़ के और 15 प्रतिशत गुजरात के हैं।