
दिल्ली/रायपुर: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने देश की सभी अदालतों और न्यायाधिकरणों में शौचालय (toilet) की सुविधा सुनिश्चित करने के उसके फैसले के बाद 20 उच्च न्यायालयों (High Courts) द्वारा अनुपालन रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर बुधवार को नाराजगी व्यक्त की और उन्हें ऐसा करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि यह आखिरी मौका है। पीठ ने सख्त लहजे में कहा कि अगले 8 हफ्तों में रिपोर्ट दाखिल न करने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
न्यायालय ने 15 जनवरी के अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उचित सैनिटेशन तक पहुंच को मौलिक अधिकार माना गया है। उच्चतम न्यायालय ने कई निर्देश जारी करते हुए उच्च न्यायालयों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से सभी न्यायालय परिसरों और न्यायाधिकरणों में पुरुषों, महिलाओं, दिव्यांगजनों और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग-अलग शौचालयों की सुविधा सुनिश्चित करने को कहा था। न्यायालय ने साथ ही चार महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट भी मांगी थी।
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केवल इन राज्यों ने हलफनामे दायर किए : पीठ ने बुधवार को कहा कि केवल झारखंड, मध्यप्रदेश, कलकत्ता, दिल्ली और पटना उच्च न्यायालयों ने ही निर्देशों का पालन करने के लिए की गई कार्रवाई का विवरण देते हुए हलफनामे दायर किए हैं। देश में 25 उच्च न्यायालय हैं। पीठ ने कहा कि कई उच्च न्यायालयों ने अभी तक अपने हलफनामे/अनुपालन रिपोर्ट दाखिल नहीं की हैं। हम उन्हें 8 हफ्तों के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का आखिरी मौका देते हैं। हम स्पष्ट करते हैं कि अगर वे स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रहते हैं तो उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हों।
न्यायालय ने 15 जनवरी के अपने फैसले में कहा था कि उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करेंगे कि सुविधाएं स्पष्ट रूप से चिन्हित हों तथा न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, वादियों और न्यायालय के कर्मचारियों के लिए सुलभ हों। शीर्ष अदालत का फैसला अधिवक्ता राजीब कालिता द्वारा दायर जनहित याचिका पर आया।