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छत्तीसगढ़ में BJP का साथ और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का हाथ,खिला नया ”गुल” ज्वलंत मुद्दों से मुँह छिपाते राजनेताओं के ”हाथ में कमल”

रायपुर : ”हाथ में खिलते कमल” की राजनीति चर्चा में है। ये पब्लिक है, सब जानती है। छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस की जुगलबंदी जनचर्चा में है। राज्य में सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार के बोझ तले दबी जनता के जरूरती मुद्दों को लेकर दोनों ही पार्टियां ”नूराकुश्ती” में आमादा है। उधर इस नज़ारे को देखकर आम जनता हैरत में है। अब उन्हें साफ़ – साफ़ नजर आने लगा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हाथो में बीजेपी और उसका कमल, दबोच लिया गया है।

नए राजनैतिक समीकरण की बानगी लोगो को उस वक्त भी देखने मिली जब बीजेपी ने भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट पर उस उम्मीदवार को मैदान में उतारा, जिसके खिलाफ बाल अपराध के आरोप में मामला था। बीजेपी उम्मीदवार ब्रह्मानंद नेताम के खिलाफ बाल अपराध में दर्ज मामले को लेकर जानकारी जनसामान्य को थी। लेकिन बीजेपी के ब्रह्मानंद नेताम को प्रत्याशी बनाए जाने के दौरान घटना के सम्बन्ध में बीजेपी नेताओं ने मूल तथ्यों को छिपाये रखा। 

नतीजतन कांग्रेस ने मौके पर चौका मारा और बीजेपी उम्मीदवार का देखते ही देखते विकेट उखाड़ दिया। यही नहीं आरक्षण के मुद्दे पर भी बीजेपी जनता के बीच हकीकत जाहिर नहीं कर पाई। चुनाव प्रचार में भी बीजेपी ने कांग्रेस को वॉक ओवर देने का पूरा मौका दिया। राजनीति के जानकार बताते है कि चुनाव प्रचार शुरू होते ही बीजेपी जीती हुई बाजी रोजाना हारने लगी। इसकी सुध लेने के लिए कोई जमीनी नेता भी सामने नहीं आया। नतीजतन चुनाव परिणाम में कांग्रेस ने बाजी मार ली। राजनीति के सूत्र बताते है कि बीजेपी प्रत्याशी ब्रह्मानंद नेताम को बीजेपी प्रत्याशी बनाए जाने की नींव कांग्रेस परिवार में ही रखी गई थी। यही हाल कई और ज्वलंत मुद्दों का है। बीजेपी की ओर से उन मुद्दों पर प्रभावशील तरीके से चोट करने के लिए कोई भी नेता ठोस रूप से सामने नहीं आ रहा है।

 सूत्रों का दावा है कि जितनी चाबी भरी दाऊ ने उतना चले बीजेपी के नेता, के सिद्धांत पर पार्टी के वो दिग्गज नेता चल रहे है, जो 15 सालो तक पार्टी और सरकार में सहभागी रहे। राजनैतिक पंडितो के मुताबिक सत्ता के सेमी फाइनल भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता अपना आंकलन करने लगे है। भले ही पार्टी ने उपचुनाव में हार की अभी विधिवत समीक्षा ना की हो लेकिन पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को अंदेशा हो गया है कि वे कितने गहरे पानी में है। उधर ED की टीम भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार मुहिम चला रही है। इसके चलते सरकार और उसके कलपुर्जे रोजाना बेनकाब हो रहे है। लेकिन इस ओर से भी पार्टी ने मुँह मोड़ लिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की करीबी अफसर और सुपर CM सौम्या चौरसिया जेल की हवा खा रही है।

 राज्य सरकार उसे अब तक निलंबित नहीं कर पाई है। जबकि भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी मुलाजिमों को तत्काल निलंबित करने के क़ानूनी प्रावधान है। सामान्य अपराधों में शासकीय सेवको को उनकी गिरफ़्तारी के 48 घंटे बाद निलंबित किये जाने का भी प्रावधान है। छत्तीसगढ़ सरकार ने आरोपी सौम्या चौरसिया की गिरफ़्तारी और उसे जेल दाखिल कराए जाने के कई घंटो बाद भी निलंबित नहीं किया है। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बीजेपी मौन है। आरोपियों के निलंबन की मांग तक करने से पार्टी और उसके नेता पीछे हट गए है। अलबत्ता बीजेपी सिर्फ अपने सुविधाजनक मुद्दों को उछाल कर लोगो के बीच चर्चा में बनी हुई है। बताया जाता है कि कांग्रेस और उसकी सरकार के कारनामो और कार्यप्रणाली को लेकर बीजेपी के कई दिग्गज नेताओ का मुँह सील दिया गया है। ये नेता सिर्फ उतना ही बोल पते है जितनी देर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ”पंजा” उनके मुँह से हटता है। 

मौजूदा दौर में कई गुटों में बंट चुकी बीजेपी बतौर मुख्य विपक्षी दल की तर्ज पर अपना प्रदर्शन करने के मामले में काफी कमजोर नजर आने लगी है। राजनीति के जानकारों को अंदेशा है कि सरकार के खुफिया तंत्र ने जरूर पार्टी के सक्रीय नेताओं की कुंडली फ़ाइलो में कैद कर ”दाऊ” जी की आलमारी में रख दी है। बीजेपी नेताओ के मुँह खोलते ही दाऊ जी भी फाइलो को अपनी आलमारी से बाहर निकाल लेते है।

इसकी खबर कानो -कान बीजेपी नेताओं तक भी पहुंच जाती है। लिहाजा ज्वलंत मुद्दों को लेकर बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं के कदम थम जाते है। वो एक कदम आगे बढ़कर तीन कदम पीछे खींचने में ही अपनी भलाई समझने लगे है। फिलहाल तारीफ की जा रही है, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी राजनैतिक सूझ -बूझ से बघेल ने ”कमल” को कांग्रेस के ”हाथ” से पकड़ लिया है। विधानसभा चुनाव 2023 से पूर्व कांग्रेस के हाथो में जकड़ा ”कमल” मुर्झायेगा या फिर खिलखिलायेगा, यह देखना गौरतलब होगा।                    

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