चाचा मोदी का नया फरमान: CBSE स्कूलों में ‘शुगर बोर्ड’, डायबिटीज की चपेट में लाखों स्कूली बच्चे, आँखों में चश्मा, सफ़ेद बाल, मोटापा-थाइराइड और अन्य बिमारियों से लड़ाई के लिए दिया मूल-मंत्र, तीन गुना केस बढ़ने से हैरत में शिक्षक-अभिभावक… 

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दिल्ली/रायपुर: देश में सेना एक ओर जहाँ अपना पराक्रम दिखा रही है, वही दूसरे मोर्चे पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाली नई पीढ़ी को ‘डायबिटीज’ की चुनौती से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नया फरमान जारी किया है। स्कूली बच्चों में टाइप-2 डायबिटीज के बढ़ते मामलों के मद्देनजर भारत सरकार ने सीबीएसई को मैदानी जंग में उतारा है। इसके तहत नौनिहालों को डायबिटीज की चपेट में आने से पहले ना केवल सतर्क किया जायेगा, बल्कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए स्कूली बच्चों को डायबिटीज से बचने के गुर भी सिखाये जायेंगे। दरअसल, भारत में दिनों-दिन स्कूली बच्चे टाइप-2 डायबिटीज के शिकार हो रहे है, चिंता की बात यह है कि मात्र 5 सालों के भीतर डायबिटीज के शिकार स्कूली बच्चों में 3 गुना से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

स्कूल बैग के बढ़ते बोझ के बाद कई बच्चों को डायबिटीज बीमारी की नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे बच्चे अब पढ़ाई के साथ-साथ दवाओं के सेवन के लिए विवश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्कूली बच्चों की सेहत दुरुस्त रखने के लिए सीबीएसई को हिदायत दी है। इसके बाद हरकत में आई सीबीएसई ने स्कूलों में विशेष स्थानों पर ‘शुगर बोर्ड’ लगाने के आदेश दिए हैं। पीएम मोदी स्कूली बच्चों को आमतौर पर जीत-कामयाबी और पढ़ाई का मूल-मंत्र देते नजर आते है। लेकिन अब वे बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर काफी चिंतित बताये जा रहे है। जानकार तस्दीक करते है कि स्कूली बच्चों को शुगर की बिमारियों से बचाने के लिए भारत सरकार ने एक जरुरी कदम उठाया है।

सीबीएसई पाठ्यक्रम वाले स्कूल परिसरों में नए शिक्षण सत्र से हेल्थ बोर्ड नजर आएगा। इसकी अनिवार्यता सुनिश्चित की गई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े सूत्र तस्दीक करते है कि बीते 5 वर्षों में टाइप-2 डायबिटीज के शिकार स्कूली बच्चों में 3 गुना से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, जयपुर, कोलकाता, मुंबई जैसे महानगर ही नहीं बल्कि B और C श्रेणी के शहरों में भी स्कूली बच्चों में डायबिटीज के लक्षण आम नजर आ रहे है। इसे लेकर शिक्षक और अभिभावक भी चिंतित है, ऐसे मामलों में तीन गुना बढ़ोत्तरी दर्ज होने से लाखों बच्चे मुश्किल में है। छात्रों को डायबिटीज के प्रति सचेत करने के लिए हेल्थ टिप्स शुगर बोर्ड के जरिए प्रदान किये जायेंगे। इसमें रोजाना कितनी मात्रा में शक्कर-चीनी लेनी चाहिए, इसका पूरा ब्यौरा दर्ज होगा।

स्कूली बच्चों द्वारा कई प्रकार के कोल्ड – एनर्जी ड्रिंक का आमतौर सेवन किया जाता है। उन्हें इससे बचने के लिए खास सलाह दी गई है। बोर्ड में यह भी दर्ज होगा कि खाई जाने वाली चीजों जैसे कोल्ड ड्रिंक, पैकेज्ड स्नैक्स में शक्कर की मात्रा कितनी होती है ? बच्चों को यह बताया जाएगा कि ज्यादा चीनी खाने से क्या नुकसान होता हैं ? उन्हें हेल्दी फूड ऑप्शन की जानकारी दी जाएगी, बैलेंस डाइट के लिए बच्चों को सचेत किया जायेगा। हेल्थ बोर्ड क्लास रूम, कॉरिडोर, नोटिस बोर्ड पर चस्पा किये जाएगे।

स्कूलों को समय-समय पर बच्चों और उनके पेरेंट्स के लिए सेहत व पोषण से जुड़ी वर्कशॉप और सेमिनार आयोजित करने के निर्देश भी सीबीएसई ने जारी किये है। रिपोर्ट के मुताबिक शरीर में कुल कैलोरी में से सिर्फ 5% ही शुगर इंटेक होना चाहिए। लेकिन 4 से 10 साल तक के स्कूली बच्चे, नियमित रूप से रोजाना करीब 13% और 11 से 18 साल तक के बच्चे 15% कैलोरी ‘शुगर’ का सेवन कर रहे हैं। 

जानकार शिक्षक तस्दीक करते है कि अब सतर्कता बरतना शुरू कर दिया गया है, चूँकि पहले यह बीमारी बड़ी उम्र में होती थी, लेकिन अब बड़े-बूढ़ों के साथ-साथ बच्चों में भी तेजी से बढ़ रही है, पढ़ाई के दौरान कई बच्चे इसके कुप्रभाव का दंश झेल रहे है। उनके टिफिन बॉक्स में खाने की सामग्री के साथ डायबिटीज की दवाई भी खास हिदायत के साथ पालकों द्वारा भेजी जा रही है। शिक्षक पढ़ाई के साथ-साथ ऐसे बच्चो की मेडिकल गाइडलाइन का पालन कर रहे है। उनके मुताबिक कई स्कूलों की कैंटीन में जंक फ़ूड और मीठे आइटमों पर रोक लगा दी गई है।

बावजूद इसके देश के ज्यादातर इलाकों में स्कूलों और उसके आसपास शुगर बढ़ाने वाले आइटम आसानी से मुहैया हो रहे है। उनके मुताबिक शुगर से भरपूर फूड आइटम्स जैसे कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट्स, बिस्किट्स और जंक फूड हैं। कई शिक्षक यह भी तस्दीक कर रहे है कि मेटाबोलिक सिंड्रोम, बच्चों में तनाव बढ़ रहा है, वे जंक फूड ज्यादा ले रहे हैं, जबकि पढ़ाई के बढ़ते बोझ के चलते बच्चों की आउटडोर एक्टिविटीज कम हो रही हैं। उनके मुताबिक  कोरोना संक्रमण के बाद एक बार फिर पढ़ाई-लिखाई यथावत हो गई है, बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। 

जयपुर में कई स्कूल प्रिंसिपल और टीचर्स ने बच्चों को हेल्दी डाइट लेने के लिए अभी से प्रेरित करना शुरू कर दिया है। चिंतित अभिभावकों ने चाइल्ड स्पेशलिस्ट की शरण ली है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक गुप्ता के मुताबिक बीते 4 से 5 साल में 11 से 14 की उम्र के ज्यादातर बच्चों में ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट पॉजिटिव पाया गया है। उनके मुताबिक यह प्री डायबिटिक श्रेणी कहलाती है।

जयपुर में पहले केवल 0.8 परसेंट बच्चों में डायबिटीज के लक्षण पाए गए थे, जो अब बढ़कर 2.3 परसेंट तक पहुंच गये है, अर्थात तीन गुना तक बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। देश के कई राज्यों के चर्चित शहरों में भी जयपुर की तर्ज पर स्कूली बच्चों में डायबिटीज के लक्षण देखे जा रहे है। फ़िलहाल, नौनिहालों को डायबिटीज से बचाने के सीबीएसई की पहल सकारत्मक रूप ले रही है। कई अभिभावकों और पालकों ने इस दिशा में जारी सरकारी प्रयासों की प्रशंसा भी की है।