रायगढ़/रायपुर। भारत सरकार ने कोयला खदानों से 25 किमी के दायरे में किसी भी कंपनी अथवा व्यक्ति को कोयला भंडारण की अनुज्ञा नहीं दी है। इस नियम का कड़ाई से पालन कराने के निर्देश भी दिए गए थे। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में कोयला उत्पादक जिलों में नियमों के विपरीत कई कंपनियों और कारोबारियों को कोल डिपो खोलने की अनुमति प्रदान कर दी गई है। इसकी सर्वाधिक संख्या रायगढ़ और कोरबा जिले में बताई जा रही है। मामला संज्ञान में आने के बाद रायगढ़ कलेक्टर ने त्वरित कार्यवाही करते हुए 3 कोल डिपो के लाइसेंस निरस्त कर दिए है। यहाँ रखे माल को भी सीज करने के निर्देश दिए गए है। बताया जाता है कि राजनैतिक पहुँच के चलते ऐसे तीनों कोल डिपो को अनुमति दी गई थी, जो केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के विपरीत था।
बताया जाता है कि मामला कलेक्टर के संज्ञान में आते ही वैधानिक कार्यवाही के निर्देश दिए गए थे। जानकारी के मुताबिक कोल डिपो मालिकों ने पूर्ववर्ती सरकार में प्रभावशाली नेताओं और अधिकारियों के वरदहस्त में यह लाइसेंस प्राप्त कर लिया था। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार के कामकाज के पटरी पर आते ही कोल माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी गई है। बताया जा रहा है कि लाइसेंस की अवधि समाप्त होने के बाद डिपो मालिकों ने उनके नवीनीकरण के लिए कलेक्टर दफ्तर में आवेदन पेश किया था। उधर नियम कायदों के पालन को लेकर कलेक्टर ने तीनों डिपो के लाइसेंस निरस्त कर दिए हैं। इसके लिए मिनिस्ट्री ऑफ कोल के कोयला भंडारण अनुज्ञा नियमों में संशोधन का हवाला दिया गया है।
नियमों के तहत कोयला खदानों के 25 किमी के दायरे में किसी भी कोल डिपो संचालन की अनुमति नहीं दी जा सकती। केंद्र सरकार ने कोयले की अफरा-तफरी को रोकने के लिए नियमों में संशोधन किया था। राज्य के कोल उत्पादक रायगढ़, कोरबा, बैकुंठपुर, चिरिमिरी, सूरजपुर, अंबिकापुर और मनेन्द्रगढ़ में कोल खदानों के इर्द – गिर्द दर्जनों कोल डिपो गैर क़ानूनी रूप से संचालित हो रहे है। इन कोल डिपो के संचालन में SECL के कई मैदानी अधिकारी भी लिप्त बताये जाते है। न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ संवाददाता ने उन इलाकों का भी रुख किया, जहाँ बड़े पैमाने पर कोयले की अवैध खुदाई जारी है। इन इलाकों में SECL के कई जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यप्रणाली संदेहस्पद पाई गई है। ये अफसर कोयले की तस्करी में बराबर के साझीदार बनकर इस गैर क़ानूनी कारोबार को अंजाम दे रहे है।
बताते है कि मिनिस्ट्री ऑफ कोल के कोयला भंडारण अनुज्ञा नियमों की धज्जियाँ उड़ाने में SECL की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसके संरक्षण में ही कई इलाकों में कोयले की गैर क़ानूनी खुदाई और भंडारण का निजी कारोबार सुनियोजित रूप से संचालित हो रहा है। स्थानीय लोग तस्दीक करते है कि अवैध खुदाई के लिए SECL के अफसर ही खदान का चिन्हांकन और परिवहन व्यवस्था उपलब्ध कराते है। जानकारी के मुताबिक पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल में बिलासपुर और अंबिकापुर संभाग में सैकड़ों की तादात में अवैध कोल डिपो और भण्डारण की व्यवस्था की गई थी। कांग्रेस सरकार की रवानगी के बाद इसका संचालन नए तस्करों के हाथों में आ गया है।
ये तस्कर खनिज विभाग के साथ साठगांठ कर काले कारोबार को अंजाम दे रहे है। यही नहीं कोल खनन मामले में केंद्र और राज्य सरकार के नियमों का पालन कराने में भी शिथिलता बरती जा रही है। जानकारी के मुताबिक रायगढ़ जिले में एक पूर्व खनिज अधिकारी ने तस्करों के साथ मिलकर कई अवैध डिपो की स्थापना जंगलों और सड़कों के दोनों ओर की थी। मौजूदा कलेक्टर ने जिन तीन कोल डिपो को 25 किमी के रेडियस के भीतर संचालित होना पाया था, उसकी अनुमति से लेकर कारोबार तक में कई अफसर और नेता ‘पार्टनर’ बताये जाते है। न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ संवाददाता के मुताबिक जिन कोल डिपो का लाइसेंस निरस्त किया गया है, उनमे आदित्य रोड कैरियर लाखा को 16 जुलाई 2017 से 15 जुलाई 2022 तक भंडारण की अनुमति मिली थी। इसके बाद की अवधि में यह कारोबार अवैध रूप से संचालित हो रहा था।
इसी तर्ज पर बालाजी अर्थमूवर्स कुशवाबाहरी को 8 सितंबर 2018 से 7 सितंबर 2023 तक और एपीएस ट्रांसपोर्ट कंपनी पाली को 8 फरवरी 2018 से 7 फरवरी 2023 तक भंडारण अनुज्ञप्ति जारी की गई थी। बताया जाता है कि अनुज्ञा अवधि समाप्त होने के बाद भी तीनों संचालकों ने बगैर किसी वैध लाइसेंस के करोड़ो का कारोबार किया था। कोरबा और रायगढ़ में कोयले की अवैध खुदाई और परिवहन में किसी केके श्रीवास्तव तांत्रिक का भी नाम सामने आया है। बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की निलंबित उप सचिव सौम्या चौरासियां के परिजनों के साथ मिलकर यह शख्स इस गैर क़ानूनी कारोबार को अंजाम दे रहा है।
700 करोड़ के कोल खनन परिवहन घोटाले में लिप्त पाए गए कई तस्कर इन इलाकों में नए नाम और कंपनी के साथ आज भी कार्यरत बताये जाते है। फ़िलहाल ऐसे कारोबारियों के खिलाफ प्रशासन ने कोयला तस्करी और सरकार को हुए नुकसान की वसूली के लिए वैधानिक कार्यवाही भी शुरू कर दी है। यह पहला मौका है जब 5 साल बाद प्रदेश में कोल माफियाओं के खिलाफ किसी कलेक्टर ने क़ानूनी कार्यवाही शुरू की है। इसके पूर्व राजगढ़ और कोरबा के कलेक्टर कोयला तस्करी में लिप्त पाए गए थे। इनमे से एक रायगढ़ की पूर्व कलेक्टर रानू साहू इन दिनों जेल की हवा खा रही है।