दिल्ली/रायपुर: देश में पहली बार केंद्रीय एजेंसियों ने छत्तीसगढ़ में एक साथ लगभग आधा दर्जन आईपीएस अधिकारियों के ठिकानों पर दबिश दी है। इन अफसरों के ठिकानों पर कड़े पहरे के बीच पूछताछ और जब्ती की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। सूत्र तस्दीक करते है कि राजनैतिक कार्यक्रमों और पार्टी मीटिंग का हवाला देकर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल सीबीआई के चंगुल से भाग निकलने की जुगत में हाथ-पैर मारते रहे, लेकिन कार्यवाही जारी रहते तक एजेंसियों ने उनके कदम रोक दिए है।

यही हाल उन आईपीएस अधिकारियों का भी बताया जाता है, जिनकी आईएएस-आईएफएस पत्नियों ने भी मौके से भाग निकलने के लिए दफ्तर जाने का हवाला दिया था। इन्हे भी कार्यवाही जारी रहने तक घर में ही रोक दिया गया है। बता दे कि दागी आईपीएस अधिकारियों की तर्ज पर उनकी पत्नियों की कार्यप्रणाली भी चंबल के डकैतों से कम खतरनाक नहीं है।

राजनैतिक पहुंच और सरकारी तिजोरी में हाथ साफ करने में माहिर ऐसे दागी अफसरों की पत्नियों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार और घोटालों की कई शिकायतें शासन स्तर पर लंबित है। लेकिन इस गिरोह की शासन-प्रशासन पर मजबूत पकड़ के चलते मौजूदा बीजेपी सरकार में भी कोई ठोस वैधानिक कार्यवाही नहीं हो पाई थी। हालांकि कभी की छापेमारी के बाद कई वरिष्ठ अफसरों ने दागी आईपीएस अधिकारियों और उनके पत्नियों के काले कारनामों की फाइल खंगालना शुरू कर दिया है।

छापेमारी की जद में आये। अफसरों की कार्यप्रणाली से छत्तीसगढ़ शासन की ख़राब होती छवि सुर्ख़ियों में है। प्रशासनिक सूत्रों द्वारा आसार जाहिर किये जा रहे है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का पालन करते हुए राज्य की विष्णुदेव साय सरकार घोटाले की जद में आये अफसरों को निलंबित कर सकती है। ताकि मामले की पारदर्शिता पूर्ण जांच की जा सके।
छत्तीसगढ़ में सीबीआई की छापेमारी के बाद पुलिस मुख्यालय से लेकर मंत्रालय तक हड़कंप देखा जा रहा है। इस बीच सट्टेबाजी में हुनरमंद आईपीएस अफसरों के काले कारनामों के ब्यौरे से लेकर जन्म कुंडली तक खंगाली जा रही है। सोशल मीडिया में सीबीआई की छापेमारी ट्रेंड कर रही है। आल इंडिया सर्विस के वर्दीधारी डकैतों को करीब से जानने पहचानने के लिए गूगल गुरु का सहारा लिया जा रहा है। आप भी जानिए इन हुनरबाज अफसरों की भूतपूर्व माली हालत और करियर के बारे में….

छत्तीसगढ़ कैडर के वर्ष 2008 बैच के आईपीएस प्रशांत कुमार अग्रवाल प्रदेश के ही सूरजपुर जिले के रहने वाले हैं। आईआईटी से पढ़ाई करने वाले प्रशांत अग्रवाल अपने दूसरे प्रयास में 136 वीं रैंक के साथ यूपीएससी क्रैक कर आईपीएस बने थे। वे कई जिलों में लंबे समय तक पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात रहे। उन्होंने रायपुर और बिलासपुर जैसे बड़े जिलों में अवैध उगाही का नया रिकॉर्ड बनाया था।

प्रदेश के छोटे-बड़े कई जिलों में कप्तानी करने के बाद वे वर्तमान में पुलिस उपमहानिरीक्षक छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल बस्तर में में पदस्थ है। प्रशांत अग्रवाल का जन्म सूरजपुर जिले के भैयाथान में 12 अगस्त 1983 को हुआ था। भैयाथान ग्रामीण ब्लॉक मुख्यालय है, पूर्व में यह अंबिकापुर जिले में आता था। प्रशांत अग्रवाल कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल मेडिकल व्यवसायी हैं, उनकी मेडिकल की दुकान एवं एक अन्य भाई की कपड़े की दुकान है।
हालांकि इस परिवार का यह फ्लैशबैक है, आईपीएस बनने के बाद प्रशांत अग्रवाल की नामी-बेनामी संपत्ति अरबों में बताई जाती है। हाल ही के वर्षों में उनके नाते-रिश्तेदारों से लेकर कई करीबियों की कंपनियों के नाम करोड़ों का निवेश और रियल एस्टेट कारोबार में भी हाथ पैर मारा गया है। नामी-बेनामी संपत्ति के आय के स्रोत के रूप में प्रशांत अग्रवाल का नाम इलाके में मशहूर है।
अब वे राजनैतिक रूप से भी समृद्ध बताये जाते है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भैयाथान के सरस्वती शिशु मंदिर में हुई थी। यहां उन्होंने पांचवी कक्षा तक पढ़ाई की। पांचवी के बाद नवोदय विद्यालय प्रवेश परीक्षा में चयनित होकर 12 वीं तक इसी स्कूल में पढ़ाई की। दसवीं तक प्रशांत अग्रवाल ने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की की। उनके दसवीं में 88% अंक आए थे। 11वीं,12वीं उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से भौतिकी, रसायन व गणित विषय लेकर पढ़ाई की। 12वीं में उन्हें गणित विषय में 100 में से पूरे 100 नंबर मिले थे। 12वीं में भी उनके 88% अंक आए थे।

उन्होंने आईआईटी प्रवेश परीक्षा जेईई उत्तीर्ण कर आईआईटी खड़गपुर में एडमिशन लिया। उन्होंने 2006 में प्रशांत अग्रवाल ने एमटेक कंप्लीट किया। इस दौरान उन्होंने भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड बैंगलौर में अपना इंटर्नशिप कंप्लीट किया। UPSC क्रैक के दूसरे प्रयास में प्रशांत अग्रवाल ने 136 वें रैंक के साथ सफलता पाई और आईपीएस के लिए चुने गए।प्रशांत अग्रवाल को उनका होम कैडर छत्तीसगढ़ मिला।

छत्तीसगढ़ में सीबीआई ने 2012 बैच के आईपीएस अभिषेक पल्लव के आवास पर भी छापेमारी की है। पल्लव ने 2 सितंबर 2013 को आईपीएस की सर्विस ज्वाइन की। उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री प्रशिक्षण अकादमी हैदराबाद से प्रशिक्षण खत्म कर दुर्ग जिले में प्रशिक्षु आईपीएस के तौर पर कार्य किया था। वे दुर्ग में नेवई थाना प्रभारी रहें। फिर सितंबर 2015 से मई 2016 तक एसडीओपी पिथौरा महासमुंद के पद पर तैनात रहे। दंतेवाड़ा में एडिशनल एसपी नक्सल ऑपरेशन के पद पर 3 साल पदस्थ रहे। उन्हें बतौर एसपी कोंडागांव जिले में पहली पोस्टिंग मिली थी। खास बात यह है कि दुर्ग में बतौर एसएसपी रहते उनके ही कार्यकाल में महादेव ऐप सट्टा घोटाला सामने आया था।भिलाई सट्टेबाजों का मुख्यालय था, जबकि इसके संरक्षण और प्रचार-प्रसार की योजनाए मुख्यमंत्री के स्थानीय आवास में ही तैयार की जाती थी। इसी आवास पर सीबीआई की छापेमारी जारी है।

जानकारी के मुताबिक अभिषेक पल्लव बिहार राज्य के बेगुसराय जिले के रहने वाले है। उनका जन्म बेगुसराय के छोटे से गांव नारकोठारी में 2 सितंबर 1982 को हुआ था। अभिषेक के पिता ऋषि कुमार सेना के मिलिट्री इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में इंजीनियर थे। जबकि उनकी माता आशा देवी गृहणी हैं। पिता की नौकरी के चलते अभिषेक पल्लव की स्कूलिंग अलग-अलग जगह के केंद्रीय विद्यालय से हुई। उन्होंने झारखंड के रामगढ़ से अपने स्कूलिंग की शुरुआत कर पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी महाराष्ट्र के पुणे, दिल्ली,गोवा के केंद्रीय स्कूलों में पढ़ाई की थी।

पढ़ाई-लिखाई के मामले में वे काफी बुद्धिमान थे। उन्होंने 1997 में दसवीं 89% अंको से तथा 1999 में 12 वीं 91% अंको से उर्त्तीण की थी। गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज गोवा (गोवा विश्वविद्यालय) में अभिषेक ने 1999 में प्रवेश लिया और 2005 में एमबीबीएस उर्त्तीण किया था। फिर दिल्ली एम्स से मनोचिकित्सक ( साइकेट्री) में 2009 एमडी की डिग्री प्राप्त की थी। शुरूआती दौर में दिल्ली के ही कुछ अस्पताल में नौकरी करने के बाद वे यूपीएससी की तैयारी में जुट गए। यूपीएससी 2012 का पहला प्रयास देते हुए पहले ही प्रयास में प्रारंभिक मुख्य व साक्षात्कार क्रैक कर 261 वीं रैंक हासिल की और आईपीएस बने।

छत्तीसगढ़ कैडर के आपराधिक छवि और लूटमार शैली में पारंगत अफसरों में 2005 बैच के आईपीएस शेख आरिफ का नाम अव्वल नंबर पर है। ठीक इसी तर्ज पर उनकी पत्नी 2007 बैच की आईएएस शम्मी आबिदी की कार्यप्रणाली बताई जाती है। इस दंपत्ति की कार्यप्रणाली भारत सरकार और DOPT को मुँह चिढ़ा रही है। प्रदेश के सबसे बड़े वर्दीधारी डकैत और साजिशकर्ता के रूप में शेख आरिफ का नाम अक्सर सुर्ख़ियों में रहा है। बीते 5 वर्ष में पूर्व मुख्यमंत्री के अपराधों में उनकी भूमिका किसी लठैत और उठाईगीर की तर्ज पर आंकी जाती है। शेख आरिफ पुणे के और उनकी पत्नी लखनऊ की रहने वाली बताई जाती है।

पूर्ववर्ती कांग्रेस राज में इस दंपत्ति की अन्य स्रोतों से आय डेढ़ करोड़ से ज्यादा आंकी जाती है। सूत्र तस्दीक करते है कि पूर्व वन मंत्री मोहम्मद अकबर और उनेक भाई अजगर की ठेकेदारी और विभिन्न कंपनियों में शेख आरिफ ने भी मोटी रकम खपाई है। उनका कार्यकाल चंबल के डकैतों से भी ज्यादा निचले स्तर का जाना-पहचाना बताया जाता है। महादेव ऐप सट्टा घोटाले की रूपरेखा बाजार में तय करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है। यह भी बताते है कि रायपुर से इकट्ठा की गई नगदी रकम मुंबई-पुणे समेत अन्य महानगरों में ठिकाने लगाने की जवाबदारी शेख आरिफ के कंधों पर थी। रायपुर से हवाला के जरिये विदेशों तक मनी लॉन्ड्रिंग सुनिश्चित करने का कार्य शेख आरिफ की देख रेख में संपन्न होता था।

शेख आरिफ वर्तमान में अंबिकापुर रेंज में बटालियन में आईजी के पद पर पदस्थ है। लेकिन नौकरी रायपुर में करते है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद भी ना तो उनके खिलाफ कोई वैधानिक कार्यवाही की गई थी। और ना ही राज्य सरकार ने शेख आरिफ को मलाईदार पदों पर तैनात ना करने के लिए कोई रूचि दिखाई। नतीजतन, स्वयं के स्तर पर जोड़-तोड़ कर वे रायपुर में ही मौज-मस्ती में जुटे थे कि सीबीआई ने उनके ठिकानों पर दबिश दे दी। शेख आरिफ धमतरी, गरियाबंद, बालोदबाजार और महासमुंद जिलों में उगाही के सुपरकॉप्स के रूप में कुख्यात है। आईपीएस आरिफ शेख का जन्म 30 मार्च 1980 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। शिक्षा-दीक्षा के मामले में वे भी अग्रणी रहे। उन्होंने 12वीं के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और पुणे यूनिवर्सिटी में टॉपर्स बने।
उन्होंने इंजीनियरिंग के बाद, एससीएल में नौकरी की, फिर यूपीएससी में भाग्य आजमाया। 2005 में वे आईपीएस चुने गए। उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर आबंटित हुआ था। इसके बाद साधारण गरीब परिवार से उड़ान भरते हुए शेख आरिफ का जहाज अरबों के साम्राज्य में जा घुसा। अब सीबीआई ने उनकी उड़ान पर पाबंदी लगा दी है। महादेव ऐप घोटाले में लाभान्वित होने वालों की सूचि में शेख आरिफ का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। अंडर वर्ल्ड से लेकर दुबई और खाड़ी देशों तक उनके संपर्क सूत्र स्थापित बताये जाते है। प्रदेश में पुलिसकर्मियों के अपराधीकरण में शेख आरिफ और उनकी पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है। रायपुर और भिलाई में उनके ठिकानों पर भी सीबीआई की दबिश जारी है।

छत्तीसगढ़ में अवैध फ़ोन टेपिंग और मुखबिरी फंड की करोड़ों की रकम डकारने के मामले में 2001 बैच के आईपीएस आनंद छाबड़ा की महारथ आल इंडिया सर्विस पर भारी पड़ी है। वे राजधानी रायपुर समेत कई पुलिस रेंज में पदस्थ रहे। रायपुर के आईजी व प्रदेश के इंटेलिजेंस विभाग के चीफ के पद पर कार्य भी किया। इनकी कार्यप्रणाली देख कर चंबल के डकैत भी चकित है। मोटी कमाई के लिए छत्तीसगढ़ कैडर के इस जिम्मेदार अफसर ने भी खाकी वर्दी तक दांव पर लगा दी थी।

वैसे तो 2001 बैच के आईपीएस आनंद छाबड़ा अपने अधीनस्त 2005 बैच के शेख आरिफ से काफी सीनियर है। लेकिन वे पूरे 5 वर्ष शेख आरिफ के ‘अर्दली’ के रूप में कार्यरत रहे। सरकारी कर्तव्यों के निर्वहन के बजाय तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल और उनकी उपसचिव सौम्या चौरसिया के नौकर के रूप में भी इन्होने खूब सुर्खियां बटोरी। बताते है कि ऐसा सीनियर अधिकारी पूर्व मंत्री अकबर के दरबार में बतौर चौकीदारी करते नजर आता था। भूपे गिरोह के प्रमुख कर्ताधर्ता के रूप में छाबड़ा की कार्यशैली प्रदेश में चर्चित रही। वे मूलतः पंजाब के रहने वाले है। उनकी पत्नी भी छत्तीसगढ़ कैडर की 2001 बैच की आईएफएस अधिकारी है।

जानकारी के मुताबिक MBBS मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद यूपीएससी क्रैक कर आनंद छाबड़ा आईपीएस बने थे। महादेव ऐप घोटाले समेत सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ करने वाले अधिकारियों में उनका नाम भी अव्वल नंबर पर है। सूत्र तस्दीक करते है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपे का संरक्षण प्राप्त होने के बाद बीते 5 सालों में इस दंपत्ति ने विभिन्न आय के स्रोतों से 50 करोड़ से ज्यादा की कमाई की थी।

यही नहीं SS फंड की बड़ी रकम हथियाने के बाद दिल्ली और नोएडा में अरबों निवेश किये। फ़िलहाल, छाबड़ा के ठिकानों पर भी सीबीआई की छापेमारी जारी है। इन आईपीएस अफसरों के अलावा 3 ASP स्तर के अधिकारियों के आवासों पर भी सीबीआई डटी है। इन्हे जल्द ही आईपीएस अवार्ड सुनिश्चित किया जाना था। लेकिन छापेमारी ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है। ये सभी पुलिस अधिकारी केंद्र एवं छत्तीसगढ़ सरकार के अलावा दुबई से संचालित महादेव ऐप सट्टा सेवा में भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे। बहरहाल, छापेमारी ख़त्म होने के बाद एजेंसियों के अगले कदम पर लोगों की निगाहे टिकी हुई है।