मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के दरबार में ‘आस्तीन के सांप’, भ्रष्टाचार के खिलाफ बयान दर्ज कराने के लिए 268 गवाहों को मात्र 40 सेकंड, ऐसे में कैसे ख़त्म होगा छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार ? सरकार की मंशा पर पानी फेरने में आखिर क्यों जुटी नौकरशाही….?

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दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौर में अंजाम दिए गए भ्रष्टाचार के मामलों की जांच को लेकर राज्य की मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को जमकर पापड़ बेलने पड़ रहे है। बीजेपी सरकार के मात्र 9 माह के कार्यकाल में दोगुली नौकरशाही ने मुख्यमंत्री साय के सामने लगातार एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है। ताज़ा मामला हैरान करने वाला बताया जा रहा है। दरअसल, करोड़ो के टीचर ट्रांसफर स्कैम में बतौर गवाह शामिल 268 शिक्षकों को उनके बयान दर्ज करवाने के लिए मात्र लगभग 40 सेकेंड का समय निर्धारित किया गया है। इन शिक्षकों को मंगलवार दिनांक 24/09/2024 को अपने बयान दर्ज कराने के लिए निर्देशित किया गया है। इस घोटाले में एक दर्जन से ज्यादा शिक्षक-अधिकारी वर्त्तमान में निलंबित है। भ्रष्टाचार में लाभान्वित पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री को बचाने के लिए दोगुली नौकरशाही ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

बताया जाता है कि पदोन्नति के बाद नियम ताक में रख कर सैकड़ों शिक्षकों ने प्रदेश में मनचाही जगह पोस्टिंग पा ली थी। टेबल के नीचे से कई शिक्षकों के पदांकन, स्थानांतरित स्थान के बजाय गैर-क़ानूनी संशोधन कर मनचाही जगह पोस्टिंग करा ली गई थी। इस मामले में रायपुर संभाग के 543 शिक्षकों को संभागीय संयुक्त संचालक ने तलब किया है। शिक्षा विभाग घोटाले में 23 और 24 सितंबर को बयान दर्ज कराने के निर्देश दिए गए थे। जारी आदेश के मुताबिक सूची के क्रमांक 1 से लेकर 275 नंबर तक शामिल साक्ष्य 23 सितंबर को जबकि उसके बाद शेष बचे 268 को 24 सितंबर को अपना बयान दर्ज कराना है।

समय दोपहर 11 से 4 बजे तक है, बीच में 2 से 3 बजे तक लंच का समय है। प्रत्येक घंटे 55 साक्ष्य का बयान दर्ज होगा। ऐसे में प्रत्येक गवाह को बयान के लिए सिर्फ 40 सेकंड का समय दिया गया है। गरियाबंद जिले के 130 शिक्षक समेत रायपुर, महासमुंद, धमतरी जिले के शिक्षक को डीईओ के माध्यम से इसकी सूचना भी दे दी गई थी। 

आज भी कई शिक्षकों को असलियत से किनारा कर मामले को रफा-दफा करने योग्य पहले से लिखे-लिखाय बयान पर हस्ताक्षर कराये जाने की जानकारी सामने आई है। सूत्र तस्दीक करते है कि कई शिक्षकों को भी षड़यंत्र में फ़साने की धमकी देने के बाद खानापूर्ति करने वाले बयान ही दर्ज कराने के लिए मजबूर किया गया है। पीड़ित शिक्षक दबी जुबान से उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे है। पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री भूपे बघेल के कुशल नेतृत्व के दावे के साथ तत्कालीन शिक्षा मंत्री और उनके गैंग ने प्रदेशभर में कई शिक्षकों से मोटी उगाही की थी। इस मामले की प्रारंभिक जांच में शिक्षा विभाग के कई बड़े अफसर भी गैर-क़ानूनी संसोधन आदेश जारी करवाने के मामले में लिप्त पाए गए है। हालांकि निचले-अधिनस्त बाबुओं पर दोषा-रोपण कर कई अफसर अपनी जिम्मेदारी से बच निकले थे। 

बता दें कि भ्रष्टाचार उजागर होने पर शिक्षा विभाग क तत्कालीन जेडी सहित 8 अधिकारियों को कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही निलंबित कर दिया गया था। विधान सभा चुनाव 2023 के लिए आचार संहिता लगने से पूर्व रायपुर संभाग के 1500 से ज्यादा सहायक शिक्षकों को शिक्षक एलबी में पदोन्नत किया गया था। इसके साथ-साथ अन्य जिलों में भी शिक्षकों को नए स्कूलों में पदोन्नत कर तैनाती दी गई थी।

लेकिन इनमें से 543 शिक्षक ऐसे थे जिन्होंने संभागीय संयुक्त संचालक कार्यालय से मनचाही पोस्टिंग प्राप्त कर ली थी। बताया जाता है कि टीचर ट्रांसफर स्कैम में कई आईएएस अधिकारियों के लपेटे में आने की आशंका के चलते जांच में ही गतिरोध उत्पन्न कर मामले को रफा-दफा करने का प्रयास जोरो पर है। यह पहला मौका है जब भ्रष्टाचार के मामले की जांच के लिए कतिपय प्रभावशील वरिष्ठ अफसरों के निर्देश पर गवाहों को मात्र 40 सेकेंड का वक़्त मुकर्रर किया गया है।

जानकारों के मुताबिक जांच में ही गंभीर त्रुटि बरत कर नौकरशाही ने राज्य की बीजेपी सरकार की मंशा पर सवालियां निशान लगा दिया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति अपनाने के निर्देश दिए है। मुख्यमंत्री साय ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के भारी भरकम 6 हज़ार करोड़ के महादेव ऐप घोटाले और CGPSC में बरती गई धांधली को लेकर उच्च स्तरीय जांच के लिए मामला सीबीआई को सौंप दिया था। राज्य सरकार का जोर शासन-प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामलों से कड़ाई से निपटना है। लेकिन सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के विश्वासपात्र अफसरों की दखलंदाजी के चलते सरकार की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है।

राजनीति के जानकार यह भी तस्दीक करते है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्यवाही के साय सरकार के मंसूबे से उन आईएएस-आईपीएस अफसरों की सांसे फूली हुई है, जो पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के रंग में सरकारी सेवक के बजाय कांग्रेसी नेता के रूप में अपने सरकारी कर्तव्यों का निर्वाहन कर रहे थे। कहा जा रहा है कि नौकरशाही के गैर-जिम्मेदाराना रवैये के चलते भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी मुहीम को तगड़ा झटका लग रहा है। कई गंभीर मामलों की जांच के तौर तरीकों को लेकर सरकार की किरकिरी कांग्रेस को बैठे बिठाये राजनैतिक मुद्दा थमा रही है। इस मामले में भी जांच की प्रक्रिया और बयान दर्ज करने के तौर-तरीके पर सवाल खड़ा हो रहा है।