रायपुर: छत्तीसगढ़ की देश भर में पहचान ‘धान के कटोरे’ के साथ – साथ वन सम्पदा को लेकर भी जानी – पहचानी जाती थी। लेकिन अब यह राज्य घोटालों के प्रदेश के रूप में सिमट कर रह गया है। किसानों और गरीबों को प्रभावित करने वाला धान और चावल घोटाला, वन विभाग के कैम्पा फंड की रकम हजम कर जाने समेत कई मामलों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल ने इस प्रदेश का मात्र 5 वर्षों में बंटाधार कर दिया है।
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भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुके राज्य के पहले सबसे निम्नतम स्तर के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में जनता की तिजोरी पर ही नहीं बल्कि मौसम के रुख में भी डाका डाला गया है। इसके चलते राज्य के पर्यावरण में काफी बदलाव देखा जा रहा है। सरकारी रिकॉर्ड बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल ने पौधा रोपण, बिगड़े वनों के सुधार, जंगलों और वन्य जीवों के रख – रखाव पर 5 साल में लगभग 10 हज़ार करोड़ से ज्यादा की रकम खर्च कर दी है।
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बावजूद इसके इन वर्षों में सैकड़ों एकड़ जंगलों और कई वन्य जीवों का सफाया हो गया है। जल जंगल और जमीनों पर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की टोली का जायज – नाजायज कब्ज़ा हो गया है। नतीजतन गांवो से लेकर शहरों तक की जमीनों पर इस गिरोह का कब्ज़ा हो गया है। रियल एस्टेट कारोबार, होटल और रिसोर्ट समेत कई उद्योग धंधों में सुनियोजित कारोबार के रूप में इस टोली ने अपने पैर जमा लिए है। लेकिन बघेल एंड कंपनी की आसमान छूती आर्थिक सम्पदा से प्रदेश की आम जनता धरातल में चली गई है।
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सरकारी योजनाओं पर सालाना अरबो खर्च करने के बावजूद प्रदेश में गर्मी ने अपने पिछले 10 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। पारा अपने सर्वाधिक 48 डिग्री के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है। छत्तीसगढ़ में एक बार फिर मैदानी इलाकों की गांव कस्बों में निवासरत एक बड़ी आबादी पानी को लेकर त्राहिमाम – त्राहिमाम कर रही है। कई इलाकों में जल श्रोत सूख चुके है, पीने और निस्तार के पानी को लेकर कोहराम मच रहा है। शहरो में भी अमूमन यही हाल दिखाई देने लगा है। जबकि पिछले 5 सालों में जल जीवन मिशन योजना पर लगभग 30 हज़ार करोड़ की रकम खर्च की जा चुकी है।
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इस योजना का मकसद घर – घर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना था। इतने भारी भरकम खर्च के बावजूद आम जनता को इस महती योजना का लाभ आखिर क्यों नहीं मिल पाया ? इसका जवाब पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल को देना होगा ? शासन – प्रशासन के जानकारों ने वर्ष 2018 से लेकर 2023 तक की वन विभाग की कई रिपोर्ट का अध्ययन और जंगलों के सफाये के कारणों को लेकर विधायकों द्वारा विधानसभा में किये गए सवालों और उसके सरकारी जवाबों का पुख्ता अध्ययन किया है।
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उनके मुताबिक योजनाओं पर समुचित खर्च नहीं करने और भारी भरकम भ्रष्टाचार के चलते पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा है। जानकार तस्दीक कर रहे है कि सिर्फ कागजों में वन विभाग की योजनाए संचालित होने से छत्तीसगढ़ में प्रचंड गर्मीं महसूस की जा रही हैं, ठंड का एहसास लगातार घट रहा है, जबकि गर्मी और बहुत गर्मी, यह दो मौसम राज्य की फ़िजा को मुश्किल में डाल रहे है। उनके मुताबिक प्रदेश का सबसे ठंडा इलाका मैनपाट भी अब आम इलाकों की तरह गर्म हो गया है, इसके जिम्मेदार पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और तत्कालीन वन मंत्री मोहम्मद अकबर ही है। वे यह भी कहते है कि वन विभाग के मुखिया ‘कैम्पा राव’ की कार्यप्रणाली के चलते भ्रष्टाचार का जंगल राज स्थापित है।
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छत्तीसगढ़ में घटते वनों के कारण वन्य जीवों का भी सफाया हो रहा है, जबकि ऐसे इलाकों में पूर्व मुख्यमंत्री के कारोबारी साथी होटल और रिसोर्ट खोल रहे है। वनों का रख – रखाव ठीक ढंग से नहीं होने के साथ – साथ जल श्रोतों के खात्मे ने भी प्रदेश के वातावरण में गर्मी का प्रकोप बढ़ा दिया है। राजधानी रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, महासमुंद, अंबिकापुर, जगदलपुर और कोरबा समेत कई शहरों में सरकारी और गैर सरकारी तालाबों पर अतिक्रमण कर उसका अस्तित्व ख़त्म कर दिया गया है। यहाँ शॉपिंग मॉल और व्यापारिक गतिविधियां शुरू कर दी गई है।
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स्थानीय पीड़ित तस्दीक करते है कि भूपे बघेल गिरोह की ब्लैक मनी ऐसी जमीनों की खरीद फरोख्त में निवेश की गई है। इससे पर्यावरण को गहरा धक्का लगा है। वन विभाग समेत अन्य सरकारी योजनाओं पर बेलगाम खर्चों के बावजूद छत्तीसगढ़ का बिगड़ता मौसम पर्यावरणविदो के लिए चिंता का विषय है। भारत सरकार के ‘कैम्पा फंड’ के सालाना करोड़ो रुपये ‘वन सम्पदा’ बढ़ाने के नाम पर डकार लिए जाने से प्रदेश में गर्मी उफान पर देखी जा रही है।
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राज्य में गर्मी का सामना कर रहे कई लोग तस्दीक कर रहे है कि वर्ष 2001-02 में पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के कार्यकाल में रायपुर शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक सालाना हज़ारों पौधे ना केवल रोपे गए थे, बल्कि उनका संरक्षण भी हुआ था। इसके बाद वर्ष 2003-2018 तक पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी पर्यावरण संरक्षण में जुटे रहे। उनके कार्यकाल में वनों पर ध्यान देने से संतुलन की स्थिति बरक़रार रही। प्रदेश के गर्म मौसम को नियत्रित करने में पेड़ – पौधों और वनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
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शायद इससे बेखबर पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल के वर्ष 2018 से लेकर 2023 तक वनों के घटने के साथ – साथ विभाग में भ्रष्टाचार भी चरम पर देखा गया है। यह स्थिति आज भी बरक़रार है। जंगलों का सफाया कर भूपे की काला बाजार कंपनियां क्रमशः टुटेजा एंड कंपनी, सौम्या चौरसिया और कोयला माफिया सूर्यकांत तिवारी गिरोह जैसे कई दवाब समूहों ने सरकारी योजनाओं पर ही हाथ साफ कर दिया था। वन विभाग के तमाम ठेके और योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी प्रजातंत्र के डैकतों के हाथों में आ गई थी।
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राज्य के भू- भाग और वनों पर नजर दौड़ाये तो यहाँ कुल वन क्षेत्र 59816.00 वर्ग किलोमीटर है, इसमें आरक्षित वन 25897.00 वर्ग किलोमीटर, संरक्षित वन 24036.00 वर्ग किलोमीटर एवं अवर्गीकृत वन 9883.00 वर्ग किलोमीटर है। छत्तीसगढ़ राज्य का लगभग 44.24 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वनों से आच्छादित है। वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से संचालित हरियाली प्रसार योजना के अंतर्गत दावा किया जाता है कि तीन सालों की वर्षा ऋतु 2019- 2020 और 2021 में 83 लाख 31 हजार पौधों का रोपण किया गया है।
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इससे 7 हजार 400 हेक्टेयर रकबा हरियाली से आच्छादित हुआ है। वही दूसरी और प्रदेश का औसतन तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में वन विभाग की योजनाओं के क्रियावयन पर सवाल खड़े हो रहे है। केंद्रीय जांच एजेंसियों के लिए कई आईएफएस अधिकारीयों के काले कारनामे जांच का विषय है।
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प्रदेश में पिछले दस सालों का गर्मी का रिकॉर्ड टूट चुका हैं। गुरुवार दिनांक 30/05/2024 को प्रदेश का औसत तामपान 46.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया हैं, जबकि अब तक प्रदेश का अधिकतम तापमान औसतन 45 डिग्री के आसपास ही स्थिर रहा हैं। मौसम विभाग की मानें तो 31 मई, 2024 तक ग्रीष्म लहर तथा उष्ण की स्थिति बने रहने की संभावना है।
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वन विभाग के दावों पर यकीन करे तो भूपे राज में बीते तीन साल में 83 लाख से ज्यादा पौधे रोपे गए हैं। राज्य में हरियाली बढ़ाने के लिए राज्य का वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा संचालित ‘हरियाली प्रसार’ योजना के अंतर्गत तीन सालों के वर्षा काल में 2019, 2020 तथा 2021 में 83 लाख 31 हजार पौधों का रोपण किया गया है। इससे सात हजार 400 हेक्टेयर रकबा हरियाली का बढ़ने का दावा किया गया है। इसमें हितग्राहियों तथा कृषकों की ओर से पौधों की बढ़ती मांग को देखते हुए वृद्धि कर वर्ष 2022-23 में इस योजना के अंतर्गत वन क्षेत्रों के अलावा कृषकों की भूमि पर रोपण के लिए बजट में 17 करोड़ 58 लाख रुपये की राशि का प्रावधान किया गया है।
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छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से मशहूर मैनपाट भी अब ठंडा नहीं रहा। कुछ साल पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के कुर्सी में बैठे रहते तक यहां गर्मी में भी मौसम ठंडा – ठंडा कूल – कूल रहता था। आज हालत यह है कि आम इलाकों की तरह यहाँ भी गर्मी चुभने लगी है। पूरे इलाके में दिन भर गर्म हवा चलती है, जंगलों का सफाया हो गया। भूपे एंड कंपनी की दारू और कोयले की दुकाने खुल गई।
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स्थानीय लोगो का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। यहाँ तापमान 39 डिग्री कभी नहीं पहुंचा, पीड़ित तस्दीक करते है कि बघेल के मुख्यमंत्री की कुर्सी में बैठने के बाद कोयला चोरी, जंगल चोरी और शिकार की घटनाये बढ़ी है। रायपुर के मौदहापारा इलाके के कई गुंडे बदमाशों ने यहाँ अपने ठिकाने बना लिए। बहरहाल सरकारी योजनाओं के आम जनता तक नहीं पहुंचने के चलते भी राज्य के पर्यावरण को गंभीर चोट पहुंची है। प्रदेश के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय पीढ़ियों से जल, जंगल और जमीन की रक्षा में जुटे है। माना जा रहा है कि प्रदेश की वन सम्पदा बचाने में उनकी भूमिका महती साबित होगी।