
रायपुर: छत्तीसगढ़ के पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड की पतासाजी शुरू हो गई है, CBI को उसकी तलाश है। राज्य के 3200 करोड़ के शराब घोटाले में मुख्य आरोपियों में से एक विवेक ढांड अब 1 हजार करोड़ के समाज कल्याण विभाग घोटाले में भी लपेटे में आ गए है। उन्होंने इस घोटाले को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ अंजाम दिया था। महकमें में शीर्ष स्तर की कुर्सी पर पहुंचे ढांड ने प्रदेश की आम जनता के लिए ऐसे कोई भी कार्य नहीं किये, जिसे उपलब्धि के रूप में गिना जाता हो। अलबत्ता इस अफसर ने प्रदेश के गरीबों – यतीमों, लंगड़े -लूले और अपंग लोगों के कल्याण की राशि पर भी हाथ साफ़ कर दिया। उसने समाज कल्याण विभाग की विभिन्न योजनाओं के लिए जारी होने वाली रकम का साल दर साल अपने हितों में बेजा इस्तेमाल किया था। उसने इस विभाग में अपने विश्वासपात्र गुर्गे राजेश तिवारी को मलाईदार पद पर बैठाया फिर शुरू हो गया, सरकारी योजनाओं के जरिये अवैध कमाई का दौर। राज्य के सबसे बड़े शराब घोटाले में भी विवेक ढांड की मुख्य भूमिका सामने आई है। बताया जा रहा है कि सीबीआई के हत्थे चढ़ने से पहले ACB – EOW के हाथ विवेक ढांड के गिरेबान तक पहुंच सकते है। उधर भूमिगत हो चुके आरोपी विवेक ढांड और राजेश तिवारी के कुकृत्यो को लेकर निशक्तजनों के आश्रमों, यतीमख़ानों और बाल – बालिका सुधार गृहों में गहमा – गहमी देखी जा रही है। शारीरिक रूप से कमजोर पीड़ित उनके हितों से जुडी योजनाओं को अवैध कमाई का जरिया बनाने से सदमे में है।

छत्तीसगढ़ कैडर के आल इंडिया सर्विस के अधिकारियों का फाइनेंशियल पैमानें का अंदाजा प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड की काली कमाई को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इस कुख्यात अधिकारी ने अपने परिजनों के नाम पर भी अरबों की संपत्ति दर्ज कर बड़े पैमाने पर अफरा – तफरी की है। पूर्व मुख्य सचिव लगभग 3 हजार करोड़ के आसामी बताये जा रहे है। यह भी बताया जा रहा है कि संयुक्त मध्यप्रदेश के बंटवारे के दौरान छत्तीसगढ़ में इस आईएएस अधिकारी ने सरकारी सेवक नहीं बल्कि भू – माफिया के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। उसने सबसे पहले अपने पिता स्वर्गीय सतपाल ढांड के नाम से लगभग 5 एकड़ सरकारी भूमि पर गैर – क़ानूनी कब्ज़ा किया। फिर इस जमीन के हिस्से अपने परिजनों के नाम कर मोटी कीमतों में बेच डाला। दरअसल, रायपुर के तत्कालीन SDM तारण प्रकाश सिन्हा और तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर अनिल टुटेजा की अगुवाई में पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड के पिता सतपाल ढांड को रहवास के लिए गैरकानूनी रूप से लगभग 2 हजार वर्ग फीट जमीन सिविल लाइन इलाके में आवंटित करने के बजाय डेढ़ लाख वर्ग फीट से ज्यादा (150300 वर्ग फीट) जमीन रहवास के लिए आवंटित कर दी गई थी।

यह भी बताया जाता है कि मजबूत माली हालत होने के बावजूद ढांड के पिता ने झूठा अभिलेख पेश कर खुद को भूमिहीन बताया था। जबकि उनके पास कई इलाकों में अच्छी खासी जमीन और पुत्र – पुत्रियां अच्छे पदों पर कार्यरत थे। इसके उपरांत पूर्व मुख्य सचिव ढांड ने अपने पिता के नाम आवंटित इस जमीन को अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कारोबारी समूहों को सौंप दिया था। उसने इस जमीन पर भवन और शॉपिंग काम्प्लेक्स बना कर विभिन्न कंपनियों और बैंकों को किराये पर दे दिया। इसके बदले नंबर एक की मोटी रकम किराये के रूप में वसूलने लगा। जबकि उक्त भूमि रहवास के लिए आवंटित की गई थी। नियमो के तहत ऐसी जमीनों के व्यवसायिक उपयोग पर पाबन्दी है, इसका दुरुपयोग पाए जाने का आवंटन रद्द होने का प्रावधान है।

जानकारी के मुताबिक इस भूमि से सटी इर्द – गिर्द की अन्य सरकारी जमीन पर भी ढांड ने अपना कब्ज़ा जमा लिया है, यह करीब 5 एकड़ की आस -पास बताई जाती है। इस जमीन में नौकर – चाकरों को बसा कर पूर्व मुख्य सचिव अपना कब्ज़ा जमाये हुए है। जानकारी के मुताबिक इस सरकारी नजूल भूमि के सामने की ओर मुख्य मार्ग के तरफ स्थापित पेट्रोल पम्प को भी प्रशासनिक दबाव में बंद करवा कर उसने उक्त भूमि किसी कांग्रेसी नेता को 150 करोड़ में बेच दी है। एक शिकायत में यह भी बताया गया है कि तत्कालीन शासन – प्रशासन ने कलेक्टर दफ्तर के आस – पास डीजल – पेट्रोल पम्प खोलने का प्रस्ताव पारित कर इस नजूल भूमि पर पेट्रोल पम्प खुलवाने का लाइसेंस जारी किया था। इस पम्प का संचालन किसी ”जोशी” नामक शख्स द्वारा किया जा रहा था। लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री भू – पे बघेल के गैरकानूनी मामलों के सलाहकार विवेक ढांड ने क़ानूनी दांवपेंचो से यह पेट्रोल पम्प भी बंद करवा दिया है। उसने यहाँ से कारोबारी जोशी को खदेड़ कर पेट्रोल पम्प की इस बेशकीमती जमीन का एक तरफ़ा कब्ज़ा भी कांग्रेस के एक पूर्व विधायक को सौंप दिया है। ढांड के करीबी पूर्व विधायक का रियल स्टेट का बड़ा कारोबार बताया जाता है, जबकि इस जमीन के एक अन्य हिस्से को 20 हज़ार रुपये प्रतिवर्ग फुट की दर से पूर्व मुख्य सचिव ने 300 करोड़ में डी-मार्ट नामक कारोबारी समूह को बेच दिया है।

जानकारों के मुताबिक ढांड के कब्जे वाली इस बेशकीमती नजूल भूमि की जनहित में शासन को पुनर्वापसी सुनिश्चित किया जाना चाहिए था, लेकिन प्रशासनिक तिकड़मों के चलते पूर्व मुख्य सचिव ने इस संबंध में होने वाली तमाम सरकारी प्रक्रिया पर रोक लगवा दी।अलबत्ता पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के निर्देश पर रायपुर जिला प्रशासन ने नवम्बर 2020 को सिविल लाईन स्थित इस नजूल भूमि को एक बार फिर गैरकानूनी रूप से फ्री होल्ड कर दिया। जानकारी के मुताबिक विवेक ढांड ने सरकारी नजूल जमीन को अपनी बहनों रंजना खोसला समेत अन्य के नाम पर विभाजित कर इस जमीन को फ्री होल्ड करने के लिए आवेदन किया था। इस पर तत्कालीन कलेक्टर ने फ़ौरन ईश्तहार जारी कर यह जमीन फ्री होल्ड कर दी। जबकि इस ईश्तहार पर गंभीर आपत्ति करने वाले तत्कालीन संयुक्त कलेक्टर ओम प्रकाश वर्मा की शिकायतों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। जबकि अन्य आपत्तिकर्ता नारायण लाल शर्मा, दिनेश सोनी व भूपेन्द्र सिंह की भी आपत्तियां नजरअंदाज कर दी गई। प्रशासन ने कुल नजूल जमीन 150300 वर्ग फीट का पांच हिस्सों में बंटवारा कर भू – माफ़िया विवेक ढांड ने परिवार को सौंप दी। सवाल उठ रहा है कि आपत्तिकर्ताओं के शिकायती पत्रों को आखिर क्यों दरकिनार कर इतनी बड़ी शासकीय नजूल जमीन एक ही परिवार को कैसे आवंटित कर दी गई ? शिकायतकर्ताओं के अनुसार उक्त शासकीय नजूल जमीन को फ्री होल्ड किए जाने पर शासन को करोड़ों रूपए की राजस्व क्षति होना बताया गया है।

राजधानी रायपुर में आम जनता को जहाँ आवास के लिए महंगे दामों में भी जमीन उपलब्ध नहीं हो रही है, जरूरतमंद किराए के मकान में रहकर अपना सारा जीवन गुजार देते हैं। वहीं भू-माफिया पूर्व मुख्य सचिव सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा जमा कर अरबो – करोडो का सौदा कर रहा है। कायदे कानून प्रभावी होने के बजाय उसकी उंगलियों की कठपुतली बन गए है। यह भी जानकारी सामने आई है कि अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए पूर्व मुख्य सचिव और उनके कारोबारी मित्र नई राजधानी के इर्द – गिर्द किसानों के खेत खलियानों को कौड़ियों के दाम खरीदते फिर इन जमीनों के आस – पास के इलाकों को किसी सरकारी प्रोजेक्ट के नाम पर खाली करवाते, विस्थापितों को राज्य सरकार की ओर से मुआवजा भी मुहैया करा कर उस प्रोजेक्ट के नाम जमीन को आवंटित कर देते थे। जबकि प्रोजेक्ट के इर्द – गिर्द की जमीन पर ढांड और उसके गिरोह का नया कारोबार शुरू हो जाता।

जानकारी के मुताबिक नई राजधानी में धरमपुरा के पास स्थापित की गई हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी का निर्माण ढांड गिरोह की जमीन पर ही किया गया है। उसने गड्ढे वाली जमीन मोटी कीमत पर हाऊसिंग बोर्ड के सुपुर्द कर दी। जबकि उसके इर्द – गिर्द की जमीनों पर अपना कब्ज़ा बनाये रखा। हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी में आवाजाही के लिए बुनियादी जरूरते सड़क -पानी – बिजली उपलब्ध कराने के लिए सरकारी धन व्यय किया गया। वही दूसरी ओर ढांड की जमीन की कीमते बढ़ गई। मुफ्त के भाव यह जमीन रियल स्टेट कारोबार के लिए सोना उगलने लगी।
एक जानकारी के मुताबिक शासन – प्रशासन की आँखों में धूल झोंक कर पूर्व मुख्य सचिव ने लगभग 3 हजार करोड़ की जमीनों के कच्चे – पक्के सौदों को अंजाम दिया है। उसके खिलाफ कलेक्टर कार्यालय से लेकर पुलिस थानों और रेवेन्यू बोर्ड तक लगभग आधा सैकड़ा मामले लंबित बताये जाते है। इनमे सर्वाधिक 21 प्रकरण रेवेन्यू बोर्ड में और 14 से अधिक शिकायते प्रदेश के विभिन्न थानों में लंबित बताई जाती है। पीड़ितों के मुताबिक ढांड के रसूख के चलते कार्यवाही शून्य है। उसके खिलाफ राजस्व न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले नारायण शर्मा तस्दीक करते है कि अनुचित प्रशासनिक और राजनीतिक संरक्षण के चलते ढांड ने काली कमाई का पहाड़ स्थापित कर लिया है। उन्होंने पीएमओ और केंद्रीय गृह मंत्रालय से मामले में दखल देने की मांग की है। फ़िलहाल, विवेक ढांड और उसका गिरोह सुर्खियों में है। उम्मीद की जा रही है कि राज्य की बीजेपी सरकार नौकरशाही के इस कुख्यात नमूने को उसके असल ठिकाने पहुंचाने और गरीबो को उनका हक़ दिलवाने के मामले में सक्रियता दिखाएगी।