नई दिल्ली/रामबन। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर की बहुप्रतीक्षित सावलकोट हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना को फिर से शुरू करने का ऐलान किया है। 1856 मेगावाट की इस रन-ऑफ-रिवर पनबिजली परियोजना के लिए NHPC ने इंटरनेशनल टेंडर जारी कर दिए हैं, जिससे स्पष्ट है कि भारत अब अपनी जल-ऊर्जा क्षमता का पूरी तरह उपयोग करने के पक्ष में है।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब हाल ही में पाकिस्तान द्वारा आपत्तियों और आतंकी हमलों के बीच भारत ने सिंधु जल संधि के तहत अपने अधिकारों को लेकर सख्ती दिखाई है।
परियोजना की पृष्ठभूमि और प्रमुख बाधाएं
1980 के दशक में तैयार हुआ था सावलकोट प्रोजेक्ट का खाका।
1996 में राजनीतिक व पर्यावरणीय कारणों से हुआ काम बंद।
फारूक, उमर अब्दुल्ला और मुफ्ती सरकारें रफ्तार नहीं दे सकीं।
847 हेक्टेयर वन भूमि, सेना के ट्रांजिट कैंप, विस्थापन और मुआवज़ा प्रमुख अड़चनें थीं, जिनका अब समाधान किया गया है।
परियोजना की खास बातें
स्थान: चिनाब नदी, रामबन जिला, जम्मू-कश्मीर
क्षमता: 1856 मेगावाट
कुल लागत: ₹22,704.8 करोड़
विकास चरण: दो चरणों में निर्माण
यूनिक विशेषता: यह एक रन-ऑफ-रिवर प्रोजेक्ट होगा, यानी नदी के प्राकृतिक प्रवाह से बिजली उत्पन्न होगी
टेंडर अंतिम तिथि: 10 सितंबर 2025
सिंधु जल संधि और कूटनीतिक संदेश
1960 में भारत-पाक के बीच हुई सिंधु जल संधि में भारत को पूर्वी नदियों (ब्यास, रावी, सतलुज) और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब, झेलम) पर प्राथमिक अधिकार मिला था। हालांकि, भारत को चिनाब जैसी पश्चिमी नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं के सीमित अधिकार मिले हैं।
पाकिस्तान ने सालों तक इन परियोजनाओं पर आपत्तियां दर्ज कीं, जिससे सावलकोट समेत कई योजनाएं अटकी रहीं। अब भारत ने साफ संकेत दिया है कि अपने वैध अधिकारों का पूरा उपयोग किया जाएगा।
ऊर्जा, विकास और सुरक्षा तीनों को बल
सावलकोट परियोजना न केवल जम्मू-कश्मीर की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगी, बल्कि वहां स्थानीय विकास, रोज़गार और सुरक्षा रणनीति में भी अहम भूमिका निभाएगी। भारत अब पनबिजली को लेकर अपनी रणनीति को नए सिरे से आकार दे रहा है – आत्मनिर्भरता और क्षेत्रीय सुदृढ़ता के लक्ष्य के साथ।
