“राज दरबारी”, पढ़िए छत्तीसगढ़ के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों की खोज परख खबर, व्यंग्यात्मक शैली में, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ‘राज’ की कलम से… (इस कॉलम के लिए संपादक की सहमति आवश्यक नहीं, यह लेखक के निजी विचार है)

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गृहमंत्री और डीजीपी के बीच खींची खाई , माह भर से बोलचाल भी बंद :

चुप-चुप बैठे हो जरूर कोई बात है ? ट्रांसफर की रार है , ट्रांसफर की रार है | खबर है कि छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और डीजीपी डीएम अवस्थी के बीच खाई खींच चुकी है | दोनों लंबे अरसे से एक दूसरे से बात तक नहीं कर रहे है | पता पड़ा कि मामला दोनों की कार्यप्रणाली से जुड़ा हुआ है | दरअसल पुलिस महकमे में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर पुलिस तंत्र का स्थापना बोर्ड सिर्फ औपचारिक बनकर रह गया है | अफसरों के ट्रांसफर सीधे बड़े घर से होते है | निर्देश मिलते ही ट्रांसफर बोर्ड उस पर अपनी मुहर लगाकर आदेश जारी कर देता है | यही विवाद की जड़ बताई जा रही है | बताया जाता है कि ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में डीजीपी साहब की कार्यप्रणाली “ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर” वाली है | बड़े घर से फरमान जारी होते ही वे अपनी खानापूर्ति कर देते है | उधर गृहमंत्री भी अपनी कार्यप्रणाली से मजबूर बताए जाते है | बताया गया कि ट्रांसफर-पोस्टिंग की सूची का जायजा लेने के बाद वे उस सूची में काटछांट के लिए ‘लाल टीका’ लगा देते है | ऐसे में बड़े घर के फरमान को बदलना पुलिस मुख्यालय के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है | मामला जो भी हो , बड़े घर वाली सूची जारी हो जाती है | इसके साथ ही गृहमंत्री जी का ‘लाल टीका’ सिर्फ झुनझुना बनकर रह जाता है | उनके दरबार में दस्तक देने वाले चढ़ोत्तरी वापसी का भजन भी गुनगुनाने लगते है | कहा जा रहा है कि ऐसे में ‘साहब’ खीज किस पर निकाले , लिहाजा उन्होंने चुप्पी साध लेना ही बेहतर समझा है |

नेता जी का पेट :

पुरानी सरकार के कर्णधारों ने खाने कमाने का कोई मौका नहीं छोड़ा तो हमारी सरकार के कर्णधार फिर क्यों पीछे रहने वाले ? आखिर जनाब आपको आपत्ति क्या है ? जनता का पैसा है , किसानों की जमीन है और तिजोरी सरकारी है , ऐसे में आपका क्या लेना देना ? पुरानी सरकार के समय तो आपने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई | फिर अब क्यों आपके पेट में दर्द हो रहा है | दरअसल मामला नई राजधानी अटल नगर में एक नई फाइव स्टार होटल की नींव रखने और सरकारी जमीन की बंदरबांट से जुड़ा है | इस इलाके में पहले ही उड़ीसा के एक नेता जी दिलीप रे के होटल ग्रुप को सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन तस्तरी पर पेश कर परोस दी गई | दिलीप रे साहब ने यहां शानदार होटल बनाया है | उनकी यह होटल एक झील के किनारे स्थित है | बताया जाता है कि झील का निर्माण ही नहीं बल्कि होटल के लिए आवंटित की गई सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन को उपयुक्त बनाने के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने सरकारी तिजोरी से करोड़ों खर्च किए थे | यही नहीं इस होटल के इर्द-गिर्द 19 होल्स वाला एक बड़ा गोल्फ कोर्स भी सरकारी रकम से निर्मित किया गया था | इस गोल्फ कोर्स के किनारे पूर्ववर्ती सरकार के कर्णधारों ने अपने बंगले भी आवंटित कराए थे | हाल ये है कि दिलीप रे साहब की होटल से जनता या सरकार को कोई फायदा नहीं हो रहा है | बल्कि सरकारी झील का व्यवसायायिक उपयोग होटल मैनेजमेंट कर रहा है | मामला यही नहीं थम रहा है | बताया जाता है कि हाल ही में दिलीप रे साहब ने अपने नए प्रोजेक्ट का खांका खींचने के लिए नई राजधानी क्षेत्र का दौरा किया है | उनके साथ एनआरडीए के कई होनहार अफसर भी थे | खोजबीन के बाद पता चला कि मौजूदा कांग्रेस सरकार के कुछ नेता भी दिलीप रे साहब को पुरानी सरकार की तर्ज पर तस्तरी में परोस कर सरकारी जमीन पेश करना चाहते है | नेताओं की दलील है कि इससे इलाके का विकास होगा | अब एक नहीं दो फाइव स्टार होटल और गोल्फ कोर्स भी डबल हो जाएंगे | कुरेदने पर नेता जी के मन की बात जुबान तक आ गई | वो बोल उठे , उनके नेताओं ने कमा लिया , फिर हम क्या झक मारने के लिए सरकार में है , हमारा भी पेट है , तो पेट पूजा तो होनी चाहिए | बहरहाल इस इलाके के किसान कही मुआवजे और कही अपनी जमीन वापसी की मांग को लेकर अभी भी आंसू बहा रहे है |

हम साथ-साथ है , पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और मंत्री रविंद्र चौबे का हाथ , एक दूसरे के साथ :

कहते है कि बेहतर स्वास्थ्य के लिए राजनीति आड़े नहीं आना चाहिए | कोरोना काल में तो बिल्कुल नहीं | दरअसल कोरोना का कहर सिर्फ जनता जनार्दन ही नहीं बल्कि कई नेता और उनके परिजन देख चुके है | छत्तीसगढ़ में कोरोना वैक्सीन लगवाने का दूसरा दौर जारी है | रोजाना सैकड़ों लोग वैक्सीन लगवा रहे है | लेकिन टीकाकरण को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की सक्रियता नजर नहीं आ रही है | कारण भले ही जो हो , हालांकि टीएस सिंहदेव वैक्सीन की गुणवत्ता और अभियान को लेकर केंद्र पर निशाना साध चुके है | केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने सिंहदेव के आरोपों का सटीक जवाब भी दिया है | इस बीच खबर आई कि टीएस सिंहदेव कोरोना संक्रमित हो गए | वे अकेले ही संक्रमण की चपेट में नहीं आये बल्कि उनके साथ कुछ मंत्री और विधायक भी खड़े नजर आए | अब चर्चा छिड़ी है कि टीएस सिंहदेव केंद्र सरकार की अगुवाई वाला कोरोना वैक्सीन लगवाएंगे या नहीं | उधर संक्रमण के रुख को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे एक साथ नजर आए | कोरोना को हराने के लिए दोनों ने रायपुर स्थित मेडिकल कॉलेज पहुंचकर वैक्सीन लगवाया | डॉक्टरों को अब इंतजार सीएम और सीएम इन वेटिंग का है | उनकी दलील है कि हमे कोरोना से लड़ना है , ना की वैक्सीन बनाने का निर्देश देने वाली केंद्र सरकार से | देखना होगा कि आखिर कौन पहले यहां दस्तक देता है |

अमित जोगी का गुलदस्ता पड़ा महंगा ?.. महिला सामाजिक कार्यकर्ता गिरफ्तार :

कांग्रेस के पार्टी घोषणा पत्र में वादे के बावजूद बस्तर में आदिवासियों की बिना शर्त रिहाई अब तक संभव नहीं हो पाई है | इसी कड़ी में हिड़मे मड़कम नामक महिला सामाजिक कार्यकर्ता की गिरफ्तारी बस्तर में चर्चा का विषय बनी हुई है | दंतेवाड़ा में उन्हें हाल ही में गिरफ्तार किया गया था | बताया गया कि हिड़मे मड़कम नक्सली समर्थन से जुडी गतिविधियों में लिप्त पाई गई थी | हालांकि उनके समर्थक पुलिस के आरोपों को बेबुनियाद बता रहे है | उधर चर्चा है कि जूनियर जोगी का गुलदस्ता हिड़मे मड़कम पर भारी पड़ गया | बताया गया कि विश्व महिला दिवस के मौके पर जूनियर जोगी ने दंतेवाड़ा के कुछ इलाकों का दौरा किया था | इस दौरान उनकी मुलाकात हिड़मे मड़कम समेत अन्य आदिवासी एक्टिविस्ट से हुई थी | जूनियर जोगी ने सामान्य शिष्टाचार के तहत एक बुके हिड़मे मड़कम को सौंपा | बताया गया कि इस मुलाकात के बाद हिड़मे मड़कम पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा | पुलिस सूत्रों के मुताबिक ऊपर से आए एक टेलीफोनिक निर्देश के बाद स्थानीय पुलिस को अपनी निगाहें तिरछी करनी पड़ी | मतलब , हिड़मे मड़कम को बगैर किसी वारंट के गिरफ्तार कर लिया गया | जूनियर जोगी का गुलदस्ता , ये गुल खिलाएगा , इसकी उम्मीद सामाजिक कार्यकर्ताओं को कतई नहीं थी | फ़िलहाल ये कार्यकर्ता हिड़मे मड़कम की रिहाई को लेकर पसीना बहा रहे है |

अब बनेगा शराब तस्करी निगम , नया अध्यक्ष कौन ?

अपराध जगत से जुड़े लोग अक्सर मानते है कि किसी भी इलाके में स्थानीय पुलिस की मंशा के बगैर कोई भी अपराधी अपने पैर नहीं पसार सकता | खासतौर पर स्थानीय इलाकों के थानेदारों की सक्रियता से 95 फीसदी से ज्यादा अपराध स्वमेव नियंत्रित हो जाते है | जबकि महज 5 फीसदी अपराध परिस्थितिजन्य कारणों के चलते अंजाम दिए जाते है | साफ़ है कि यह फार्मूला सिर्फ सामान्य आपराधिक गतिविधियों में नहीं बल्कि सुनियोजित तस्करी पर भी लागू होता है | इन दिनों प्रदेश में शराब तस्करी सुनियोजित योजना के तहत अंजाम दी जा रही है , यह कुटीर उद्योग बन चूका है | तस्करों की धर पकड़ का पूरा दारोमदार पुलिस पर निर्भर है | लेकिन पुलिस करे भी तो क्या ? कुछ एक इलाकों में दबिश देकर वो खानापूर्ति कर देती है | तस्कर के रूप में सिर्फ ट्रक चालक और क्लीनर उसके हत्थे चढ़ते है , मुख्य कारोबारी नहीं | चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि प्रदेश में धड़ल्ले से अवैध शराब की तस्करी आखिर किनके संरक्षण में हो रही है | आबकारी अमले के भी कई कर्मी इस कारोबार में लिप्त पाए गए है | बावजूद इसके मुख्य तस्करों की गिरफ्तारी ना होना , उनके चेहरों पर से पर्दा ना हटाने की वजह क्या है ? आखिर ये कौन सा मैनजेमेंट है ? रायपुर समेत प्रदेश के कई जिलों में सिर्फ मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों से शराब की बे रोक टोक सप्लाई हो रही है | तस्करी को लेकर आबकारी विभाग के अफसर घड़ियाली आंसू बहा रहे है | पुलिस मुख्यालय , स्थानीय थानेदारों पर कड़ी कार्रवाई के फरमान जारी कर रहा है | शराब की तस्करी रोकने के लिए सरकार ठोस कदम उठाने के निर्देश दे रही है | फिर भी कोई बड़ा तस्कर पुलिस की गिरफ्त में अब तक नहीं आया है | ऐसे में लोगों को लगने लगा है कि अवैध शराब पर लगाम सिर्फ जुमला है | वास्तव में तो शराब तस्करी उपक्रम नामक नए संस्थान की स्थापना की ओर नेताओं के कदम तेजी से बढ़ रहे है | आने वाले दिनों यदि शराब तस्करी निगम का अस्तित्व भी नजर आए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए |