“राज दरबारी”, पढ़िए छत्तीसगढ़ के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों की खोज परख खबर, व्यंग्यात्मक शैली में, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ‘राज’  की कलम से… (इस कॉलम के लिए संपादक की सहमति आवश्यक नहीं, यह लेखक के निजी विचार है)

0
2

आधी रात का सच :  

पुरानी कहावत है , कंबल-कथडी ओढ़कर घी पीना , बात विचित्र जरूर है लेकिन सत्य | पुरानी सरकार के बाद मौजूदा सरकार में भी दबदबा रखने वाले एक ऊँचे दर्जे के नौकरशाह रात करीब एक बजे चहल कदमी करते नजर आए | साहब कंबल ओढ़े हुए थे , उनकी सिर्फ चश्मा लगी आंखे नजर आ रही थी | एक पूर्व मुख्यमंत्री के निवास में कंबल ओढ़े इस शख्स को देखकर सुरक्षा कर्मी हैरत में पड़ गए | हालांकि पूर्व सूचना के तहत बंगले के कैमरे कुछ देर के लिए बंद कराए गए थे | करीब आधा घंटे तक चली बातचीत के बाद वापस साहब जब बंगले से बाहर आए , फिर वैसे ही कंबल ओढ़कर बड़ी फुर्ती से अपनी गाड़ी में बैठ गए | साहब ने अपने परिचित की गाड़ी का इस्तेमाल किया था | गाड़ी का चालक भी साहब के करीबी आर्थिक कारोबारियों में से एक है | मेल मुलाकात के बाद साहब जी तो रुखसत हो गए , लेकिन सुबह सुरक्षा कर्मियों ने कंबल ओढे रहस्यमय साहब की जानकारी अपने सीनियर को दी | फिर क्या था , साहब की शिनाख्ती को लेकर सुरक्षा कर्मियों के बीच चर्चा छिड़ी हुई है | 

काली कमाई – काली रात : 

आवास और पर्यावरण विभाग से ताल्लुक रखने वाले एक नेताजी भी इन दिनों रात में चहल कदमी करना ज्यादा मुनासिब समझते है | नेता जी किसी कार्यकर्ता या समारोह में हिस्सा लेने के लिए नहीं , बल्कि एक खास मकसद से आधी रात के सफर में निकल पड़ते है | इस दौरान उनके साथ जमीन जायजाद का सौदा कराने वाले एजेंट-दलाल साथ होते है | पूरे लाव लश्कर के साथ नेताजी उन जमीनों और होटलों का जायजा लेने में जुटे है , जिसे खरीदने के लिए नेता जी ने कायदे-कानूनों और सैद्धांतिकता की बलि दे दी है | बताया जाता है कि नेता जी पर गांधी जी मेहरबान है | चर्चे खूब है कि गांधी जी के बंदोबस्त के लिए नेता जी का पूरा कुनबा जी-जान से जुटा है | खुद नेता जी को भी लोक कल्याण के कार्यों से कोई मतलब नहीं है | उनकी तो पांचो ऊँगली घी में और सिर कढ़ाई में है | रायपुर नगर निगम क्षेत्र में नामी-बेनामी भारी भरकम संपत्ति अर्जित करने के बाद नेता जी ने रायपुर की सरहद से सटे जिलों का रुख किया है | बताया जाता है कि नेता जी इतनी जमीन जायजाद खरीद चुके है कि अब नाते रिश्तेदारों की भी कमी पड़ने लगी है | लिहाजा नेता जी ने अब रिश्तेदारों के रिश्तेदारों के नाम पर जमीनों की खरीदी शुरू की है | कहा जा रहा है कि काली कमाई का निवेश भी अंधेरी-काली रात में करना नेता जी के लिए फलदायी साबित होता है | 

ख़ुफ़िया विभाग का मिशन असम :

आमतौर पर ख़ुफ़िया विभाग सरकार को वो गुप्त सूचनाएं उपलब्ध कराता है , जो सत्ता और कुर्सी के लिए हितकारी होती है | अभी तक ख़ुफ़िया विभाग और राजनीति दोनों के बीच सामंजस्य देखा गया है , लेकिन गठजोड़ नहीं | इन दिनों असम में ख़ुफ़िया विभाग के करीब दो दर्जन कर्मियों की मौजूदगी चर्चा का विषय बनी हुई है | असम के नौकरशाह से लेकर राजनेता इस बात पर हैरानी जता रहे है कि अब तक चुनाव में उन्होंने नेताओं और कार्यकर्ताओं को हामी भरते देखा है | लेकिन पहली बार असम में एक प्रदेश का ख़ुफ़िया तंत्र चुनाव जीतने की रुपरेखा तय करने में जुटा है | राज्य के ख़ुफ़िया तंत्र की मौजूदगी की जानकारी जब केंद्र के ख़ुफ़िया तंत्र को लगी तो वे भी हैरत में पड़ गए | उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि एक खास प्रदेश के ख़ुफ़िया तंत्र का भला यहां क्या काम | उधर ख़ुफ़िया तंत्र की विफलताओं की चर्चा पुलिस महकमे में भी खूब है | बताया जाता है कि कई महत्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्रित करने के मामले में ख़ुफ़िया तंत्र फिसड्डी साबित हुआ है | फ़िलहाल तो लोगों की निगाहें ख़ुफ़िया तंत्र के उस मिशन पर टिकी हुई है , जो मिशन असम के नाम से राजनैतिक गलियारों में जीत-हार का समीकरण तय कर रहा है | 

बाबा ठन-ठन गोपाल का नया कारनामा : 

छत्तीसगढ़ के चर्चित बाबा ठन-ठन गोपाल की निगाहें जिस किसी भी पूंजीपति पर पड़ती है , कुछ वक्त के लिए ही सही उसकी जेब ढीली हो जाती है | इन दिनों बाबा ठन ठन गोपाल की निगाहें सरकारी तिजोरी और लोह अयस्क की खदानों पर है | बाबाजी ने एक ही झटके में सरकारी तिजोरी पर 500 करोड़ से ज्यादा का चूना लगा दिया | बताया जाता है कि कांकेर जिले में आयरन ओर की खदान आवंटन के लिए अफसरों को जमकर पापड़ बेलने पड़े | बाबा ठन-ठन गोपाल को यह खदान आवंटित करने के लिए कायदे-कानून रद्दी की टोकरी में डाल कर अफसरों को पहले तो ऑनलाइन प्रक्रिया को ऑफ़लाइन करना पड़ा | मामला यही नहीं थमा , बाबा जी के नाते-रिश्तेदारों और करीबियों को ही टेंडर फॉर्म देने और स्वीकारने के लिए भी उन्हें जमकर पसीना बहाना पड़ा | दरअसल टेंडर फॉर्म मांगने के लिए कई लोगों का तांता लगा हुआ था | ऐसे लोगों से अफसर निगाह तक नहीं मिला पा रहे थे | लिहाजा बाबा ठन-ठन गोपाल के लठैतों ने खनिज ऑफिस में कब्ज़ा कर टेंडर फार्म मांग रहे लोगों को खदेड़ा | तब जाकर किसी तरह अफसरों ने बाबा ठनठन गोपाल के करीबी शख्स के नाम यह खदान आवंटित कर दी | बताया जाता है कि राज्य के एक निगम में दस्तक देते ही बाबा ठन-ठन गोपाल ने ठेका कर्मियों की ही जेब ढीली कर दी थी | उन्होंने दो टूक फरमान जारी कर दिया था कि तीन माह की तनख्वा उनकी तिजोरी में , शेष नौ महीनों की पगार कर्मियों के जेब में | नौकरी करना है तो करो वर्ना जाओं भाड़ में |

पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह , बृजमोहन अग्रवाल और बीजेपी की प्रेस-मीडिया से बिदाई , खर्चे हमारे तो चर्चे भी हमारे : 

एक दौर था जब प्रेस-मीडिया में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल समेत बीजेपी के छोटे बड़े तमाम नेताओं की खबरे सुर्खियों में रहती थी | मीडिया में मुख्य समाचारों और अख़बार के पहले पन्ने में बीजेपी और उससे जुड़े नेताओं को प्रमुख स्थान मिलता था | बीजेपी के हाथो से सत्ता जाने के बाद अब वह दौर बीत चूका है | नया दौर कांग्रेसियों का है | सत्ता के गलियारों से लेकर अख़बारों-मीडिया के दफ्तरों में अब कांग्रेसियों का डंका  बज रहा है | चर्चा उस फरमान की है , जिसमे कहा गया है कि रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल समेत बीजेपी से जुडी खबरों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाए | ये फरमान सत्ता प्रमुखों द्वारा नहीं बल्कि विज्ञापन जारी करने वाले उस अफसर ने जारी किये है , जो पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल में काफी उपकृत रहा है | इस अफसर की दलील है कि खर्चे हमारे तो चर्चे भी हमारे | बात सच भी है , और वाजिब भी | लेकिन चर्चा इस बात की भी है कि सत्ता जाते ही अफसरों की निष्ठा भी उसी के साथ चली जाती है | उपकृत भी रंग बदलने में देरी नहीं करते | फ़िलहाल प्रेस-मीडिया कर्मी इस फरमान की नाफ़रमानी करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है | हालांकि पेशेवर पत्रकार विपक्ष की आवाज को बुलंद करने की यथोचित्त कोशिश करता है | लेकिन लक्ष्मी के आगे तो दंडवत होना ही पड़ता है | कहा जा रहा है कि अँधा बांटे रेवड़ी फिर अपने अपने को देत |