“राज दरबारी”, पढ़िए छत्तीसगढ़ के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों की खोज परख खबर, व्यंग्यात्मक शैली में, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ‘राज’  की कलम से… (इस कॉलम के लिए संपादक की सहमति आवश्यक नहीं, यह लेखक के निजी विचार है)

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CGPSC की चाबी किसके पास ? मुन्ना भाईयों पर आखिर किसका हाथ ? 

छत्तीसगढ़ पब्लिक सर्विस कमीशन मुन्ना भाइयों को लेकर चर्चा में है | दरअसल जब टोमन सिंह सोनवानी को इसका चेयरमेन बनाया गया था  , तब उन्हें भी खुद यकीन नहीं हुआ था  कि सरकार को उनकी योग्यता पर इतना भरोसा है | CGPSC के चेयरमेन बनने का आदेश देखकर वे खुद हैरत में पड़ गए थे | दरअसल डिप्टी कलेक्टर से आईएएस अवार्ड के बाद कुछ एक जिलों में कलेक्टरी कर चुके टोमन सिंह सोनवानी का कार्यकाल “ईमानदारी” को लेकर हमेशा चर्चा में रहा है | चाहे वे डिप्टी कलेक्टर , एसडीएम , एडीएम रहे हो , या फिर नारायणपुर और कांकेर जिले के कलेक्टर | उनके अधिनस्त कर्मियों की जुबान पर उनकी ईमानदारी के किस्से आम है | उधर सरकार के कला पारखी  कर्णधारों को “प्रतिष्ठान” चलाने के लिए जैसे शख्स की तलाश थी , उसकी पूरी अहर्ता में सोनवानी साहब खरे उतर रहे थे | लिहाजा संचालक कृषि के पद से उन्हें सीधे चेयरमेन उत्पादन , मतलब CGPSC के जरिये रोजगार उत्पन्न करने की जवाबदारी (मशीन)  सौंप दी गई | इसका कृपया करके कोई अन्य अर्थ ना निकाले | दरअसल  सत्ता के कर्णधारों को सोनवानी साहब की कार्यप्रणाली इतनी भाई की उन्होंने मुखिया के दरबार में “योग्य पुरुष” का हवाला देकर CGPSC चेयरमेन का पद उन्हें तस्तरी में पेश कर सौंप दिया | लेकिन मामला उस समय बिगड़ गया जब एक अभ्यर्थी ने सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2019 के फर्जीवाड़े की शिकायत कर मुन्ना भाईयों का राज खोल दिया | इससे मचे हड़कंप के बाद खुद मोर्चा संभालने के बजाए सोनवानी साहब ने सत्ता के कर्णधारों का रुख कर “रायता” फैला दिया | आनन-फानन में प्रदेश सरकार के “भोंपू” के जरिये इस मामले की जांच रिपोर्ट प्रकाशित कराई गई | फेस सेविंग पर आधारित जांच रिपोर्ट को देखकर जानकारों को समझ में आ गया कि “दाल में कुछ काला है |” इससे पहले कि बवाल थम पाता , मामले को रफा-दफा करने में जुटी टीम ने एक नया रायता फैला दिया | एक आंसर सीट सोशल मीडिया में वायरल कर दी गई | हवाला दिया गया कि यह आंसर सीट उस अभ्यर्थी की है , शिकायतकर्ता जिसे अनुपस्थित बता रहा है | हालांकि इस आंसर सीट पर ना तो आरटीआई की मुहर थी , और ना ही CGPSC ने इस आंसर सीट की वैधानिकता की पुष्टि कर रहा था | ऐसे में सवाल उठना लाजमी था कि यह आंसर सीट यदि सही है , तो गोपनीय कक्ष से बाहर कैसे आईं ? यदि फर्जी है तो इस संवेदनशील विषय पर CGPSC ने आधिकारिक बयान क्यों नहीं जारी किया | यही नहीं CGPSC एक संवैधानिक संस्था , जिसके पास प्रचार-प्रसार का खुद का सेटअप हो , वो क्यों प्रदेश सरकार की शरण में चली गई ? बहरहाल मामला जो भी हो , लेकिन CGPSC की कमान किसके हाथों में है , इसे लेकर छाया धुंधलका अब साफ़ होते नजर आ रहा है |

सरकार और साला :

पुरानी कहावत है , “सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का भाई एक तरफ|” छत्तीसगढ़ में जो कोई भी मुखिया सामने आया  , साले का जोर-शोर जमकर सुनाई दिया | लोगों को लगने लगा कि मुखिया और साले का चोली दामन का साथ है | हो भी क्यों ना ? जब घर में कामकाज के मामलों में साले की चलती है तो , राजकाज में क्यों नहीं ? प्रदेश की राजनीति में इन दिनों कई लोग मुखिया जी के साले का हवाला देकर प्रशासनिक कामकाजों से लेकर ट्रांसफर-पोस्टिंग और पुलिस भर्ती में भी अपने हाथों का लोहा मनवा रहे है | अफसर हैरत में है कि आखिर कोई तो बताए , कितने साले है ? दरअसल नौकरशाही में कई सालो में शामिल “सीबी” अर्थात “चंद्र भूषण” जी इन दिनों छाए हुए है | उनकी दलील है कि वे ही मुखिया जी के एक मात्र 24 कैरेट के साले है | लिहाजा उनका काम प्राथमिकता के साथ होना चाहिए | कई मौकों पर तो साले साहब मुखिया जी के बंगले के नबरों से फोन कर अफसरों को धकियां देते है | बंगले का नंबर देखकर अफसर भी सहम जाते   है | इन दिनों साले साहब की बस प्रदेश के विभिन्न जिलों में दौड़ रही है | वो अपने सगे संबंधियों  और दोस्त यारों को सत्ता का स्वाद चटा रहे है | साले साहब का रुतबा देखकर दुर्ग-राजनांदगांव और गरियाबंद के कई खाकी वर्दी वाले उनके आगे नतमस्तक हो रहे है | अब तो मुखिया जी के साथ साथ साले साहब की भी जय जयकार होने लगी है | 

मुनीम जी के साले का भी फीलगुड :

प्रदेश में कुछ लोगों के लिए सत्ता की मलाई के साथ साथ मुन्ना भाइयों का कारोबार भी दिन दुनि रात चौगुनी प्रगति कर रहा है | इस मामले में मुनीम जी भले ही सिर खपा रहे हो , लेकिन साले साहब फीलगुड में है | बताया जाता है कि लॉकडाउन के दौरान जब देश में तमाम आर्थिक गतिविधियां ठप्प रही तब साले साहब ने बिलासपुर के एक जेबीएल होटल और खपरगंज के गोल बाजार इलाके में स्थित बेशकीमती इमारत पर कब्जा कर लिया | कब्जा अवैधानिक रूप से नहीं बल्कि वैधानिक रूप से एक करोड़ तीन लाख की लिखा-पढ़ी कर हुआ | ये और बात है कि इमारत की चाल में काबिज कब्जेदारों को हटाने के लिए 48 करोड़ की रकम नगदी के रूप में देनी पड़ी | लेकिन मामला उस समय फंस गया जब नवल कुमार सरमा नामक शख्स ने 30 लाख रूपये लेकर कब्जा छोड़ने से इंकार कर दिया | सरमा जी के कदम यही नहीं थमे | उन्होंने अपने कब्जे को लेकर अदालत का दरवाजा भी खटखटा दिया | फिर क्या था ? मामला जग जाहिर हो गया | चर्चा छिड़ गई कि आखिर फीलगुड में मग्न साले साहब के पास 50 करोड़ आए कहां से ? इसे लेकर नाते रिश्तेदारों के बीच आय के स्रोत की धारा भी फूट पड़ी | फ़िलहाल तो चर्चा है कि कोरोना काल में एक संस्था ने जो परीक्षाओं , पदोन्नति और भर्ती का रिकार्ड बनाया है , उसका रास्ता साले साहब के घर से ही गुजरता है |

 

डीपीआर साहब का पत्नी गुणगान : प्रदेश में जनप्रतिनिधियो और महिला आयोग की चेयरमेन से ऊपर है उनकी पत्नी का दर्जा  

छत्तीसगढ़ जनसंपर्क संचालनालय में आमतौर पर मुख्यमंत्री की गतिविधियों से जुड़े समाचारों को ही प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है | लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल सदस्यों के  समाचारों के प्रकाशनों को लेकर जनसंपर्क विभाग अक्सर अपना मुंह मोड़ लेता है | कड़ी मशक्क्त के बाद भी मंत्रियों के कार्यक्रमों को जनसंपर्क विभाग के प्रमुख तर्जी नहीं देते है| लेकिन जब मामला उनकी पत्नी का हो , तो साहब की मेहरबानी बरस पड़ती है | दलील है कि साहब की पत्नी का दर्जा जनप्रतिनिधियों और महिला आयोग की अध्यक्ष से भी ऊपर है | तभी तो जनसंपर्क विभाग ने  एक कार्यक्रम के समाचार में जनप्रतिनिधियों और महिला आयोग की अध्यक्ष किरणमयी नायक का नाम तक प्रकाशित करना जरुरी नहीं समझा | बल्कि डीपीआर की पत्नी का नाम प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया गया  | जारी तस्वीर में किरणमयी नायक और अन्य जन प्रतिनिधि साफ़तौर पर नजर आ रहे है , लेकिन जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी समाचार में उनका नाम नदारद रहा  | प्रदेश के विभिन्न मंत्रियों के विभागों में कार्यरत जनसंपर्क विभाग के PRO’S  की आँखे उस समय फटी की फटी रह गई जब डीपीआर की ओर से जारी एक निर्देश के बाद उनकी पत्नी श्वेता सिन्हा का बधाई संदेश प्रमुखता के साथ फोटो सहित प्रकाशित करने का निर्देश मिला | 27 जनवरी 2021 को जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी इस समाचार में बताया गया कि खेल संचालक श्रीमती श्वेता सिन्हा श्रीवास्तव ने महिला फुटबाल टीम को बधाई दी है | दरअसल ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन के तत्वाधान में रायपुर की सप्रे शाला में महिला फुटबॉल लीग का आयोजन किया गया था | इस मौके पर विजयी टीम को  बधाई देते हुए श्रीमती श्वेता सिन्हा श्रीवास्तव ने फोटो खिंचवाई थी | ये और बात है कि इस आयोजन के शुभारंभ के मौके पर जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी और आतिथ्य के समाचारों को लेकर भी डीपीआर साहब ने कोई रूचि नहीं दिखाई | डीपीआर साहब के अधिनस्तो के  मीडिया मैनेजमेंट संबंधी आडियों क्लिप भी इन दिनों चर्चा में है | 

थानों में राजस्व अधिकारी की तैनाती :  

सुनने में अटपटा जरूर लगता है कि भला थाने में राजस्व अधिकारी का क्या काम ? इनकी तैनाती तो शासन के राजस्व से जुड़े विभागों में होती है | यह बात सही है , लेकिन इन दिनों छत्तीसगढ़ में “राजस्व” इक्कठा करने का काम शहरों से लेकर ग्रामीण अंचलो के थानों पर भी है | अब यहां पुलिस कर्मियों को दोहरी भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है | बताया जाता है कि सरकार के कामकाज के तौर तरीकों को देखकर ही  पुलिस की कार्यप्रणाली में बदलाव आया है | अब कप्तान साहब के राजस्व की जवाबदारी तमाम थानों के सिर मत्थे मढ़ दी गई है | जांजगीर चांपा जिले के एक थाने में एक एएसआई 20 हजार रूपयों की रिश्वत लेते कैमरे में धरा गया | उन्होंने बताया कि इस रकम का कुछ हिस्सा भी उसके हाथ नहीं आएगा | उसके मुताबिक 20 हजार की यह रकम नीचे से ऊपर तक बंटती है | खबरनबीजों ने जब मामले की पड़ताल की तो हैरत अंगेज कारनामे सामने आये | पता पड़ा कि बिलासपुर रेज के कुछ जिलों में राजस्व इक्कठा करने के मामले में विकेन्द्रीकरण योजना लागू है | अब इस योजना के बारे में जानकारी लेने पर पता पड़ा कि यह योजना भी समानता के आधारभूत सिद्धांतों पर आधारित है | योजना के तहत तमाम थानों को हर माह राजस्व इक्क्ठा करने का टारगेट दे दिया जाता है | थानों से इक्क्ठा रकम कप्तान साहब के पास पहुँचती है | फिर कप्तान साहब थानों के आर्थिक योगदान को देखते हुए उसका कुछ फीसदी हिस्सा थाना कर्मियों को वितरित करते है | जो भी योजना की प्रगति तमाम रेंज की ओर रुख कर रही है | ASI के वायरल हो रहे वीडियों से पुलिस की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है |