“राज दरबारी”, पढ़िए छत्तीसगढ़ के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों की खोज परख खबर, व्यंग्यात्मक शैली में, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ‘राज’ की कलम से… (इस कॉलम के लिए संपादक की सहमति आवश्यक नहीं, यह लेखक के निजी विचार है)

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सिटिंग सीएम विथ सीएम इन वेटिंग इन छत्तीसगढ़ : अमेरिकी प्रेसिडेंट ट्रंप और वेटिंग प्रेसिडेंट जो बाइडन को सबक लेना चाहिए इन “माननीय” से , प्रेरणा की मूर्ति    

अचरज करने वाली बात नहीं बल्कि प्रेरणास्रोत “महानुभावों” से मौजूदा अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनॉल्ट ट्रंप और प्रेसिडेंट इन वेटिंग जो बाइडन को सबक लेना चाहिए | अमेरिका में कुर्सी की लड़ाई के चलते गृहयुद्ध के हालात बनते जा रहे है | भला हो वहां की कांग्रेस आलाकमान का , जिसने हालात के मद्देनजर जो बाइडन को 20 जनवरी को कुर्सी पर बैठाने का एलान कर दिया | खैर , छत्तीसगढ़ में ऐसे हालात नजर नहीं आ रहे है | यहां सिटिंग सीएम और सीएम इन वेटिंग के बीच तालमेल इतना बढ़िया है कि गाहें बगाहें ही सही दोनों यह संदेशा देने में कामयाब रहते है कि “हम साथ साथ है” |  हालांकि ये और बात है कि “जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई” | बहरहाल इन दिनों बिलासपुर संभाग के कई इलाकों में सिटिंग सीएम और सीएम इन वेटिंग एक साथ नजर आये | इस दौरे के चलते कई अफसरों को दौरा पड़ता भी दिखाई दिया | ऐसा कभी कभार ही हो पाता है कि “दाऊ जी और हुजूर साहब” एक साथ नजर आये | दरअसल स्वास्थ्य विभाग के विकास कार्यों के लोकार्पण-शिलान्यास कार्यक्रम के मौके के पर सिटिंग सीएम और सीएम इन वेटिंग को, हम साथ साथ है , की तर्ज पर देखा गया | इस नजारे को देखकर विरोधी दलों ने भले ही नाक-कान सिकोड़े हो , लेकिन नौकरशाहों के चेहरे पर हवाइयां उड़ती साफ़ नजर आ रही थी | “गुरु गोविंद दोउ खड़े , काके लागू पाये” जैसे हालात देखकर वे पसोपेश में पड़ गए | किसी के पैर पर पड़ने के बजाये अफसर आँख मिचौली पर उतर आये | मसला भविष्य में होने वाले ट्रांसफर-पोस्टिंग का था | लिहाजा किसी को भी हाथों हाथ लेना उन्हें जोखिम भरा नजर आ रहा था | ढाई-ढाई साल वाला फार्मूला जो उनके दिलों दिमाग में हिलोरे मार रहा था | कल हो ना हो ? लेकिन हो गया तो ? हालांकि कुछ तजुर्बेकार अफसरों ने मोर्चा संभाला और प्रोटोकॉल के तहत सिटिंग सीएम की अगुवानी की | इस दौरान सीएम इन वेटिंग के मान सम्मान का भी पूरा ध्यान रखा गया | खैर सर्वसमत्ति और बगैर किसी बाधा के दौरा तो निपट गया , लेकिन अफसर , बाल-बाल बचे कहते नजर आये |   

आसमान से गिरे खजूर पर अटके : पुरंदेश्वरी देवी बनी गले की फांस , बीजेपी नेताओं को ना उगलते बन रहा ना निगलते 

छत्तीसगढ़ बीजेपी से “भाई साहब” की बिदाई हो गई | यह खबर जंगल में आग की तरह फैली | कई बीजेपी नेताओं के चेहरे कमल की तरह खिल उठे | लेकिन ये नेता उस समय आह भरने लगे जब पुरंदेश्वरी देवी का रायपुर आगमन हुआ | दरअसल पुरंदेश्वरी देवी का बीजेपी में नवागमन हुआ है | दक्षिण भारत में वे कांग्रेस का चेहरा रही है | अपने जमाने के मशहूर नेता और कलाकार एनटीआर की पुत्री होने के नाते पुरंदेश्वरी का बोलबाला हाइफ्रोफाइल ही रहा है | उन्हें बीजेपी का दामन थामे , जुम्मा-जुम्मा चंद माह ही हुए है | लेकिन बीजेपी ने उन्हें तस्तरी में परोसकर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य का प्रभार दे दिया | पुरंदेश्वरी देवी की प्रदेश में जय जयकार हो रही है | इस नजारे को देखकर कई वरिष्ठ नेताओं के कलेजे पर सांप लोट रहा है | दरअसल पार्टी के कई नेताओं ने उतने बरस बीजेपी में गुजार दिया , जितनी की पुरंदेश्वरी देवी की उम्र है | पार्टी का झंडा – डंडा थामे जवानी खो गई, अब उम्र दराज़ होने लगे। लेकिन उन्हें मौका नहीं मिल पाया। जबकि कांग्रेस के रास्ते बीजेपी में आने वालों को हाथों – हाथ लिया जा रहा है। लिहाजा ये नेता भीतर ही भीतर पार्टी के उन कर्णधारों को कोस रहे है , जिन्होंने देवी जी को छत्तीसगढ़ का प्रभार सौंप दिया है। कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि उनके गले एक नई समस्या पड़ गई है | जूनियर को उनके सिर पर बैठा दिया गया है | उनकी दलील है कि मौका टेरियन नेताओं को मिल रही तव्वजों भविष्य में BJP के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने में कारगर साबित होगी | मसला जो भी हो , लेकिन पुरंदेश्वरी देवी का अच्छी तरह से नाम लेना तक नेताओं पर भारी पड़ रहा है | पार्टी मुख्यालय में आयोजित एक समारोह में संबोधन के दौरान कई नेता प्रदेश बीजेपी प्रभारी पुरंदेश्वरी का ठीक ढंग से नाम तक नहीं ले पाए | दरअसल अभी तक पार्टी के नेता अपने साथी पुरंदर मिश्रा के नाम से ही वाकिफ थे | लेकिन अब वक्त के साथ नए नाम का विस्तार हो चूका है | अब उन्हें पुरंदेश्वरी देवी की आराधना करनी होगी | बताया जाता है कि डी पुरंदेश्वरी का पूरा नाम दग्गुबती पुरंदेश्वरी है | लिहाजा मौके की नजाकत को देखते हुए आधा अधूरा ही सही, कई नेताओं ने उनके नाम के एक दो अक्षर तो कुछ ने नाम तोड़ मरोड़कर ही सही पार्टी प्रभारी को अपने मन की बात बता दी | उधर बीजेपी के राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि यही हाल रहा तो पार्टी में कांग्रेस का कब्जा होने में देर नहीं लगेगी | उन्हें लगता है कि बीजेपी में जिस तरह से कांग्रेसी नेताओं का आगमन और जलवा बिखर रहा है , उसके चलते भविष्य में पार्टी का चुनाव चिन्ह “हाथ में कमल” भी हो सकता है |             

अपनी ढ़ंपली अपना राग : सीबीआई बैन के बाद सरकार का नया एजेंडा, “अब कैग की नो एंट्री” हमारी रकम हमारा ऑडिट का नया दौर :

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने सत्ता में काबिज होते ही सबसे पहले सीबीआई की एंट्री पर रोक लगाई । केंद्र सरकार के कथित तोते की उड़ान बंद होते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के परिंदों ने आसमान में ऊँची उड़ान भरना शुरू कर दिया । ईमानदारी का राग अलापने वाले एक मंत्री ने तो ब्लैक मनी उगलने वाली अपनी खदान में फरमान जारी कर कैग की भी नो एंट्री कर बवाल मचा दिया। मंत्री जी ने अपने फैसले में बाकायदा ऑडिटर जरनल की ऑडिट रिपोर्ट को ख़ारिज करते हुए लोकल ऑडिट कराने के फैसले पर मुहर लगा दी। दरअसल कैग से मंत्री जी का बिफरना लाजमी था | उन्हें अपने नौ रत्नों के साथ साथ कुनबे की चिंता सता रही थी | बताया जाता है कि  वर्ष 2013 की कैग रिपोर्ट में मंत्री जी के साथियों का पर्दाफाश हो गया था | जैसे तैसे ऑडिट को धत्ता बताते हुए चुनिंदा अफ़सरों ने वर्ष 2013 से लेकर 2020 तक जमकर गुलछर्रे उड़ाए | लेकिन उनकी अय्याशी की दास्तान सरकारी पन्नों में दर्ज हो गई | अब ऐसा गुल खिल चूका है कि मंत्री जी की कुर्सी भी दांव पर लग गई है | लिहाजा सबका साथ सबका विकास की राह पर चलने वाले मंत्री जी को महालेखाकार (ऑडिटर जनरल) को अपने विभाग से खदेड़ने में ही समझदारी नजर आ रही है | फ़िलहाल तो एक महकमे में कैग की नो एंट्री हुई है | लेकिन वो दिन दूर नहीं जब इसकी देखा सीखी दूसरे विभागों में भी कैग से दूरियां बनते नजर आये | चर्चा है कि राज्य में ऐसा ही रहा तो कई नए एजेंडे भी मूर्त रूप ले सकते है | इन उपक्रमों में छत्तीगसढ़ ब्यूरो ऑफ़ सेंट्रल इन्वेस्टीगेशन (CG CBI), ऑडिटर जनरल ऑफ़ छत्तीसगढ़ (CG CAG), छत्तीसगढ़ आयकर (CG INCOME TAX), इंफोर्समेंट डायरेक्टर ऑफ़ छत्तीसगढ़ (CG ED), जैसे नए महकमे अस्तित्व में आ सकते है | यही नहीं मौजूदा सरकार के बैनर तले जिस तरह से कुछ नौकरशाह और नेता देश प्रदेश में नामी -बेनामी संपत्ति खरीद रहे है, उनकी सुविधा के लिए मुख्य सचिव जमीन – जायजाद (CS LAND) जैसे पदों का भी सृजन हो जाये तो हैरत करने वाली बात नहीं होगी।

“पहले आप – पहले आप” कोरोना वैक्सीन लगवाने को लेकर नेताओं की फूली सांसे , पसोपेश का दौर :

कोरोना वैक्सीन का पहला डोज जल्द ही जरुरतमंदों को उपलब्ध होगा। ड्राई रन जारी है, लेकिन इसे लगवाने को लेकर नेताओं की सांसे फूली हुई है | उनका हाल बेहाल हो रहा है , वे पसोपेश में है | उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो कोरोना वैक्सीन लगाने से इंकार किया जो अलग , लेकिन इसकी गुणवत्ता और साइड इफेक्ट को लेकर ऐसा रायता फैलाया कि केंद्र सरकार की नींद हराम हो गई। रही सही कसर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने पूरी कर दी। कई कांग्रेसी नेताओं ने बीजेपी की अगुवाई वाले कोरोना वैक्सीन को हाथ तक लगाने से इंकार कर दिया। फिर क्या था…. ? देश भर में कोरोना वैक्सीन के साइड इफेक्ट को लेकर लोगों के बीच माथापच्ची शुरू हो गई। राजनैतिक दलों में घमासान ऐसा मचा कि पक्ष – विपक्ष के कई नेताओं ने वैक्सीन लगवाने को लेकर मुँह मोड़ना शुरू कर दिया है । इन दिनों पत्रकारों के वैक्सीन लगवाने के सवाल पर नेता जी बगले झाकते नजर आ रहे है | कुछ नेताओं ने तो कैमरा बंद करवा कर पत्रकारों के कान फूंके | खबर ना करने की शर्त पर उन्होंने बताया कि पहले दौर का माहौल देखने के बाद ही वों तय करेंगे की वैक्सीन लगाये या ना लगाए। दरअसल उन्हें भी साइड इफेक्ट की चिंता सता रही है | मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो साफ कर दिया कि पहले ‘आप’ , अर्थात पहले जनता | मामा ने बड़ी चतुराई से बयान दिया कि पहले जनता को बचाना है, इसलिए वैक्सीन पर पहला हक़ जनता – जनार्दन का है। वो तो सेवक है, लिहाजा सेवक का नंबर तो आखिरी में ही आएगा | उधर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी लोगों को वैक्सीन लगवाने की सरकारी तैयारियों का जायजा गंभीरता से ले रहे है। लेकिन उन्होंने खुद वैक्सीन लगवाने को लेकर चुप्पी साधी हुई है | मुख्यमंत्री जी ने अभी तक जाहिर नहीं किया है कि वे वैक्सीन कब लगवाएंगे ? अलबत्ता रायगढ़ जिले के ग्राम बंगुरसिया में भूपेश बघेल ने “मुखिया धर्म” पर ज्ञान पेलते हुए कह दिया कि “सियान , परिवार के सभी लोगों को भोजन कराकर ही भोजन करता है |” इस बयान से साफ़ हो गया कि उन्हें वैक्सीन कब लगने वाली है | बहरहाल वैक्सीन के खौफ से ज्यादातर नेताओं ने पहले आप – पहले आप का राग अलापना छेड़ दिया है।

कांटा लगा , हाय लगा लेकिन मुंह में  : 

छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा कभी अपने बयानों तो कभी अपनी हरकतों को लेकर चर्चा में रहते है, देश में कोरोना संक्रमण की रफ़्तार थामने के लिए जैसे ही लॉकडाउन लगा, घरों से बाहर निकलने वाले लोगो पर पुलिस लाठियां बरसाने लगी, इस दौरान तमाम कायदे कानून तोड़ते हुए मंत्री लखमा रायगढ़ जा पहुँचे ,वो भी अपने साथियों के साथ, सैर सपाटे के लिए | यहां उन्होंने सत्यनारायण बाबा के दर्शन किये। फिर कोरोना संक्रमण की बातों को हवा में उड़ा दिया। इसके पूर्व सुकमा में उन्होंने स्कूली बच्चों को नेतागिरी का गुरुमंत्र देकर नौकरशाही को हैरत में डाल दिया था। लखमा बच्चों से यह कहते देखे गए कि बड़ा नेता बनना है, तो एसपी-कलेक्टर की कॉलर पकड़ो। विधानसभा में भी लखमा का रंग अक्सर देखने को मिलता है । सदन में उन्होंने कहा था कि बस्तर को निजी उद्योगपतियों के हाथ बिकने नहीं देंगे। नामी गिरामी उद्योगपतियों का नाम लेते हुए उन्होंने बैलाडीला के कोल ब्लॉक को लेकर जमकर अपनी भड़ास निकाली थी। उनके बयान से कई उद्योगपति भड़क गए थे । उद्योगपतियों ने अपना दर्द जाहिर करते हुए कहा था कि मंत्री जी के ऐसे बोल से दूसरे राज्यों या देशों के उद्योगपति छत्तीसगढ़ आना नहीं चाहेंगे। इससे औद्योगिक विकास प्रभावित होगा। लखमा की भड़ास उस समय निकली थी जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उत्तरप्रदेश समेत तमाम राज्यों के उद्योग समूहों को छत्तीसगढ़ आने का न्योता दिया था । वो निवेश का न्योता देने अमेरिका तक गए थे | यही नहीं उद्योग मंत्री लखमा भी खुद कनाडा के उद्योग समूहों से मिलने गए थे। मामला यही नहीं थमा | लखमा ने दंतेवाड़ा के बालूद की एक चुनावी सभा में बैलाडीला के 13 नम्बर की डिपॉजिट खदान को लेकर तीखे बोल बोले थे | उन्होंने कहा था कि क्या यह खदान मोदी के बाप की है? इसकी भाजपा ने तीखी आलोचना की थी। यही नहीं जगदलपुर में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में एक पत्रकार के सवाल पूछने पर लखमा ने उखड़ते हुए कहा था कि पत्रकार आरएसएस की भाषा बोलने लगे हैं। इसका मीडिया कर्मियों ने विरोध किया था। दिलचस्प बात यह है कि ऐसे बयान जिस मुख से बाहर आते है, उस मुख में कांटा फंसा | मछली ने ऐसा कांटा मारा की लखमा की बोलती बंद हो गई | मारे दर्द के उनका बुरा हाल था। मामला डोंगरगढ़ के एक रेस्ट हॉउस में आयोजित खाने -पीने के समारोह का था। मंत्री जी ने दावत में जमकर मछली उड़ाई | उधर शहीद मछली के पार्थिव शरीर से निकले एक कांटे ने मंत्री जी की जान हलक में डाल दी। हालाँकि अधिकारियों ने आनन – फानन में डॉक्टरों का इंतज़ाम किया और मंत्री जी का कांटा निकाला। उधर जब यह बात मंत्री जी के विरोधियों तक पहुंची तो वे सिर धुनते नजर आये | दरअसल उन्हें उम्मीद थी कि कांटा किसी और स्थान में फंसा होगा | फ़िलहाल मंत्री जी का मुंह यथावत हो गया है |