नई दिल्ली। चीन के साथ भारत का रिश्ता हमेशा तनाव भरा रहा है | 1962 का युद्ध और चीन की दगाबाजी देश को भुलाए नहीं भूलती। लेकिन ऐसे मौकों पर तमाम राजनैतिक दलों को अपने मतभेद छोड़ देश के साथ खड़ा होना ही होता है | आम जनता के साथ साथ यह उन दलों का कर्तव्य है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी बतौर सांसद केरल का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे समय उन पर ज्यादा जिम्मेदारी है। लेकिन इन दिनों अपने बयानों के कारण वे पार्टी के कई नेताओं की आँखों की किरकिरी बन रहे है | ये और बात है कि पार्टी की परंपराओं का ध्यान रखकर ज्यादातर नेता राहुल पर खुले तौर पर हमला नहीं बोल रहे है | लेकिन पार्टी के भीतर उनके बयानों को लेकर आग सुलगने लगी है |
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच यह मंथन होने लगा है कि वाकई कांग्रेस सचमुच जमीन से पूरी तरह कटती जा रही है? या फिर कुछ बड़े नेताओं की हताशा पार्टी पर भारी पड़ रही है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि संवेदनशील मुद्दों पर अक्सर कांग्रेस में राहुल गांधी, ऐसे बयान दे देते है , जो कही ना कही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की जुबान बंद कर देते है | ऐसे समय पूरी पार्टी के लिए उनके बयान मुसीबत खड़ा कर देते हैं। उधर जनता के बीच पार्टी को जवाब देना मुश्किल हो जाता है | कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी को लेकर अब लाचारी छिपाए नहीं छिप रही है | नतीजतन कई दल कांग्रेस से पल्ला छुड़ाने का विचार भी करने लगे है |
वर्तमान भारत चीन सीमा विवाद को लेकर भी यही कुछ हो रहा है। इन दिनों सीमा विवाद को लेकर राहुल गांधी का रुख सवालों के घेरे में दिखाई दे रहा है | यह सच है कि सरकार से सवाल पूछना विपक्ष का अधिकार और नैतिक दायित्व भी है। लेकिन कब , कैसे और किन मुद्दों पर सवाल दागे जाये , इसे तय करना पार्टी के नेता की महत्वपूर्ण जवाबदारी है | हर किसी देश की परंपरा है कि कूटनीतिक मुद्दे पर पड़ोसी देश से तनातनी के मौके पर आम जनता के साथ साथ राजनैतिक दलों की एकजुटता साफतौर पर दिखाई देती है | लेकिन इस लिहाज से मौजूदा समय कांग्रेस में ऐसी पहल दिखाई नहीं दे रही है | पार्टी के भीतर इन मामलों को लेकर कई वरिष्ठ नेता माथापच्ची कर रहे है | उनका मानना है कि आखिर कांग्रेस तमाम राज्यों में क्यों सिमटती जा रही है , इस ओर भी अब ध्यान देने की जरूरत है |
कारगिल के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी तो कांग्रेस ने इसका बहिष्कार कर दिया था | इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन विवाद को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाई तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सवालों की झड़ी लगा दी | उन्होंने इस मुद्दे पर एक तरह से सरकार के साथ खड़े होने से मना कर दिया। वह भी तब जबकि प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया था कि शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। चीन जैसे राष्ट्र के खिलाफ पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा सख्त बयान दिया था । राहुल गांधी ने सार्वजनिक तौर पर बयान दिया कि आखिर क्यों हमारे सैनिक बगैर हथियार के मैदान में गए | नतीजतन क्या हुआ ? शरद पवार ने राहुल को सीख दी कि सीमा पर सैनिक हथियार के साथ जाते हैं या नहीं, ऐसे सवालों में राजनीतिज्ञों को नहीं उलझना चाहिए। राहुल बार बार यही आरोप लगाते रहे थे कि सरकार ने सैनिकों को निहत्था भेजा था। शरद पवार रक्षा मंत्री रह चुके हैं। वह सच्चाई भी जानते हैं और संवेदनशीलता भी।
लद्दाख में घायल जवान के पिता बलवंत सिंह ने राहुल गांधी से अपील करते हुए कहा कि भारतीय सेना वो सेना है जो चीन को हरा सकती है और भी देशों को हरा सकती है | लद्दाख में घायल जवान के पिता ने अपने एक वीडियो संदेश में राहुल गांधी से इस मसले पर नेतागिरी ना करने की अपील की है | इस वीडियो को अपने ट्वीटर अकाउंट पर शेयर करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राहुल गांधी को मशविरा देते हुए कहा है कि वह छद्म राजनीति छोड़कर देश हित में सरकार के साथ खड़े हों |
उधर मोदी सरकार की सबसे कट्टर विरोधी ममता बनर्जी ने चीन मुद्दे पर सरकार का समर्थन किया | उन्होंने साफतौर पर कहा कि ऐसे संकट के समय में वह सरकार के निर्णय के साथ खड़ी हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती बयान देती है कि यह राजनीति का वक्त नहीं है। इधर तमिलनाडु में जिस द्रमुक का सहयोग लेकर कांग्रेस अपनी जड़े मजबूत करने में जुटी है , उसके नेता एम के स्टालिन मोदी सरकार के साथ खड़े होने की बात करते हैं। लेकिन कांग्रेस पर इसका कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है । चीन एक बयान जारी करता है और गलवन पर दावा ठोकता है। कुछ ही देर बाद राहुल गांधी भी ट्वीट करते हैं और इस ट्वीट में सरकार को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।
कांग्रेसी नेता और तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने संसद के अंदर कहा था कि भारत चीन सीमा पर कुछ क्षेत्रों को अल्पविकसित ही छोड़ना सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा मुनासिब होगा। लेकिन कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि वह चीन के राजदूत समेत अलग अलग देशों के राजनयिकों से मिलते है तो जानकारी लेते हैं। अचरज की बात यह है कि कांग्रेस पर जो भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं उसका कोई जवाब नहीं आता है। कांग्रेस की ओर से अब तक इसपर कोई सफाई नहीं है कि डोकलाम के वक्त राहुल गांधी चीनी राजदूत से मिलने क्यों गए थे और बाद में इस सच्चाई को छुपाने का प्रयास क्यूं किया। फ़िलहाल कांग्रेस के कई नेताओं ने राहुल गांधी के बयानों पर असहमति जरूर दिखाई है , लेकिन अंदरखाने | पार्टी का कोई भी बड़ा नेता सार्वजनिक रूप से इस मामले में बयान देने से बच रहा है |