छत्तीसगढ़ में पास्को एक्ट के प्रावधान डीपीएस स्कूल की रद्दी की टोकरी में, संदेहियों की वकालत करने के चलते दुर्ग SP खुद बन गए पार्टी, कांग्रेस के बाद बीजेपी युवा मोर्चा के नेताओं ने भी जांच की निष्पक्षता पर उठाया सवाल, प्रिंसिपल की गतिविधियां संदिग्ध, अभिभावक और पीड़ित पुलिस के रवैये से हैरान….

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दुर्ग: छत्तीसगढ़ में पास्को एक्ट के प्रावधानों का नियमानुसार पालन नहीं किये जाने को लेकर अभिभावकों की नाराजगी लगातार सामने आ रही है। स्थानीय पुलिस ने अपराध पंजीबद्ध किये बगैर ही संदेहियों को लाभ प्रदान कर दिया है। महीने-भर की कवायत के बावजूद पुलिस आरोपियों तक नहीं पहुंच पाई है। इसके इतर पुलिस अधीक्षक की कार्यप्रणाली चर्चा का विषय बनी हुई है। पुलिस अधीक्षक के स्वयं डीपीएस स्कूल मैनेजमेंट की वकालत करने से निष्पक्ष जांच का मामला धरा की धरा रह गया है। विवेचना के बीच पुलिस अधीक्षक का डीपीएस अभिभावक WHATSAPP ग्रुप में अचानक जुड़ना और घटना से जुड़ा चाहा-अनचाहा मैसेज करना जांच को प्रभावित करने से जुड़ा मामला बताया जा रहा है।

यह भी सवाल किया जा रहा है कि बगैर मामला पंजीबद्ध किये आखिर कैसे पुलिस इतने संवेदनशील मामले की जांच में जुटी है। दरअसल, पास्को एक्ट में घटना की जानकारी संज्ञान में आते ही प्रथम दृष्टया अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना का प्रावधान है। ऐसे में स्थानीय पुलिस किस आधार पर मामले को रफा-दफा करने में जुटी है, लोगों की समझ से परे बताया जा रहा है। इस बीच यह भी जानकारी सामने आई है कि स्कूल प्रिंसिपल पर शोषण से जुड़े आरोप इसके पूर्व भी लग चुके है, मामला हाईकोर्ट तक भी पहुंचा है। महीने भर से डीपीएस स्कूल का मामला राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।

दुर्ग में डीपीएस स्कूल में एक मासूम बच्ची के साथ घटित वाकये ने उस वक़्त से गंभीर रूप ले लिया है, जब से इलाके के एसपी ने निष्पक्ष जांच पर जोर देने के बजाय स्कूल प्रशासन की वकालत करना शुरू कर दिया था। बताते है कि पुलिसिया रौब और अनदेखी के चलते पीड़ित परिवार सदमे में है, अब उसने पुलिस ही नहीं बल्कि स्कूल प्रशासन से भी दूरिया बना ली है।

बताते है कि पीड़ित परिवार घटना की खबर लगते ही मेडिकल रिपोर्ट के साथ पुलिस अधीक्षक और आईजी के कार्यालय तक अपनी गुहार लेकर पहुंचा था। लेकिन डीपीएस मैनेजमेंट के प्रभाव के चलते उनकी पुकार ‘नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह दबकर रह गई थी’। यह भी बताया जाता है कि पीड़ितों को उनकी शिकायत वापसी के लिए मैनेजमेंट ने काफी दबाव भी डाला था।

इसके बाद पुलिस अधीक्षक भी स्कूल मैनेजमेंट के साथ कंधे से कंधा मिलाकर डीपीएस की साख बचाने में जुट गए थे। अब ये मामला राजनैतिक रंग भी लेने लगा है। दुर्ग में अभिभावकों के बड़े प्रदर्शन के बाद कांग्रेस भी इस घटना को लेकर सड़क पर उतरने की तैयारी कर रही है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर डीपीएस की घटना को शर्मनाक बताते हुए पुलिस के रवैये पर ऐतराज जताया है। वही बीजेपी युवा मोर्चा के कुछ नेताओं ने महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े को ज्ञापन सौंप कर उच्ची स्तरीय जांच की मांग की है। बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश कार्य समिति सदस्य प्रशम दत्ता ने अपने समर्थकों के साथ मंत्री रजवाड़े को ज्ञापन सौंपा है। इसमें घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई है।

उधर यह भी बताया जा रहा है कि मामले की जारी विवेचना के बीच पुलिस अधीक्षक भी अचानक उस WHATSAPP ग्रुप का हिस्सा बन गए है, जिसमे स्कूल मैनेजमेंट और अभिभावक शामिल थे। इस WHATSAPP ग्रुप में एसपी द्वारा भेजे जा रहे सन्देश ब्रेन वाशिंग से जुड़े बताये जाते है। यह भी बताया जा रहा है कि पुलिस अधीक्षक के बच्चे भी इस स्कूल में अध्ययनरत है, ऐसे में उनका WHATSAPP ग्रुप में शामिल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इस बीच जांच में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में पुलिस अधीक्षक की कार्यप्रणाली और मैसेज भी चर्चा का विषय बने हुए है।

डीपीएस स्कूल घटना को लेकर अभिभावकों के प्रदर्शन पर भी एसपी के रूख की चर्चा जोरो पर है। बताते है कि प्रदर्शनकारियों का मार्ग अवरुद्ध करने के लिए बड़े पैमाने पर यातायात कर्मियों की तैनाती की गई थी। यही नहीं स्कूल में भी आधा दर्जन से ज्यादा थानेदारों और भारी भरकम पुलिस बल तैनात कर अभिभावकों को भयभीत करने का कार्य किया गया था।

दुर्ग डीपीएस मामला अब हाई प्रोफ़ाइल हो चूका है, इस मामले में पुलिस अधीक्षक की कवायत अब जांच को प्रभावित करने के दायरे में बताई जा रही है। ऐसे में निष्पक्ष जांच के लिए राज्य सरकार क्या कदम उठाती है, इस ओर लोगो की निगाहे लगी हुई है। इस मामले को लेकर न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने दुर्ग रेंज के आईजी और डीजीपी से भी प्रतिक्रिया लेनी चाही, लेकिन कोई प्रतिउत्तर प्राप्त नहीं हुआ।