रेलवे का निजीकरण फायदे का धंधा, 30 हज़ार करोड़ के निवेश की उम्मीद, 23 कंपनियों ने दिखाई रुचि, निजी हाथों में जाने से ट्रेनों के संचालन और सुविधाओं में बढ़ोत्तरी का दावा

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दिल्ली / भले ही रेलवे की कुछ ट्रेनों के निजीकरण का विरोध हो रहा हो, लेकिन यह सरकार के लिए जहाँ फायदे का धंधा है, वही सुस्त कर्मचारियों के लिए खतरे की घंटी | दरअसल निजी हाथों में जाने के बाद सरकारी और गैर सरकारी रेल सुविधाओं और उसकी गुणवक्ता का आंकलन भी शुरू हो जायेगा | आम यात्रियों से पूरी किराये की रकम वसूलने के बावजूद अक्सर ट्रेनों में सुविधाओं का टोटा होता है | ऐसे में निजी कंपनियों के माध्यम से ट्रेनें चलाने की योजनाए रफ्तार पकड़ने लगी है। रेल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्री-बिड बैठक में 23 कंपनियों ने हिस्सा लिया।

रेलवे को इस योजना में निजी कंपनियों की ओर से 30 हजार करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है। उनके मुताबिक पहली प्राइवेट ट्रेन अप्रैल 2023 तक पटरी पर दौड़ाने की योजना है। प्राप्त जानकारी के अनुसार निजी ट्रेन चलाने के लिए जिन 23 कंपनियों ने टेंडर दस्तावेज खरीदे हैं, उनमें भारत फोर्ज, आईआरसीटीसी, बॉम्बार्डियर, सिमेंस, जीएमआर, भेल, गेटवे-रेल, आरके एसोसिएट्स, मेधा ग्रुप, स्टरलाइट पावर, टीटागढ़ वैगंस आदि शामिल हैं। रेलवे इन कंपनियों के सवालों का 21 अगस्त को जवाब देगा।

रेलवे का 109 रूट पर 151 हाई स्पीड ट्रेनों का प्रस्ताव चर्चा विषय बना हुआ है | रेलवे ने 12 क्लस्टर में 109 रूट पर 151 हाई स्पीड ट्रेन चलाने के प्रस्ताव मांगे हैं। रेल विभाग 8 नवंबर को निजी कंपनियों की सूची जारी करेगा। 2022-23 में 12 ट्रेन शुरू हो सकती है। इसी तरह 2023-2024 में 45 और 2025-26 में 50 निजी ट्रेन चलाने की योजना है। देश में रेलवे के निजीकरण की योजना जोर पकड़ती है तो इससे अर्थव्यवस्था में भी काफी सुधार के आसार है | निजीकरण से जहाँ रेलवे की श्रम -शक्ति का सदुपयोग होगा वहीँ बड़े घाटों से निजात मिलेगी | इसके निजीकरण से रेलवे को घाटा कम और फायदा भरपूर नजर आ रहा है | 

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