भविष्य के लिए संरक्षित करें अपनी परंपरा और संस्कृति – आचार्य जितेंद्र नाथ | 

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गेंदलाल शुक्ला / 

कोरबा। प्रसिद्ध संत श्री जनार्दन स्वामी जी की परंपरा के संवाहक सुरजी अंजनगांव विदर्भ स्थित श्री देवनाथ मठ के पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी जितेंद्र नाथ महाराज ने कहा कि भारत की संस्कृति और परंपरा पूरे विश्व में सबसे विशिष्ट है। इसके साथ लोगों का जुड़ाव सनातन काल से रहा है। हमारी परंपरा संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने की जिम्मेदारी वर्तमान पीढ़ी की है  वे अपने परिवार में कुछ ऐसा वातावरण विकसित करें जिससे कि जीवन मूल्य और परंपराओं की जड़ें और भी मजबूत हो।
 

नाथ परंपरा के 18 वे पीठाधीश्वर आचार्य जितेंद्र नाथ ने रविवार की शाम कोरबा के महर्षि वाल्मीकि आश्रम परिसर में आयोजित व्याख्यानमाला में यह विचार व्यक्त किए । वे मेरी मातृभूमि मेरा मंदिर है, विषय पर लोगों को संबोधित कर रहे थे।  धर्म जागरण समन्वय कोरबा जिला ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया। विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आचार्य जितेंद्र नाथ महाराज ने इस अवसर पर कहां की हमारी परंपराओं और संस्कृति का अर्वाचीन इतिहास रहा है। अनेक मौकों पर हमारी संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने के बहुतेरे प्रयास हुए। इसके बावजूद हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प शीलता का परिणाम है कि हम इतने वर्षों बाद भी अपनी संस्कृति को जीवित बनाए हुए हैं। उन्होंने इससे संबंधित तत्वों और कारकों को विस्तार से समझाया।

दो परंपरा का सम्मिलन :

आचार्य जितेंद्र नाथ जी महाराज ने कहां की भारत ने अनेक अवसरों पर विजयश्री प्राप्त की लेकिन इसके कुछ अंतराल बाद ही उसे परास्त भी होना पड़ा। हमारे कई प्रतीकों पर आक्रमण हुए और उनकी संरचना प्रभावित हुई । इन सब परिस्थितियों के बावजूद छत्रपति शिवाजी महाराज ने अदम्य साहस और सामूहिक सहकार के दम पर हिंदवी साम्राज्य की स्थापना की। 400 वर्ष तक इसकी जड़े कायम रही। कालांतर में क्या हुआ, इतिहास इसका साक्षी है। हाल के वर्षों में कई ऐसे  बदलाव हमारे सामने आए हैं। अब नए सिरे से प्रेरणा देने और प्रेरणा लेने पर काम हुआ। इस तरह दो परंपराओं का सम्मिलन हुआ, परिणाम हमारे आसपास हैं । जब भी सकारात्मक दृष्टिकोण से काम होता है तो चित्र भी हमारे अनुकूल निर्मित होते हैं और यह हमारी संतुष्टि के परम कारक होते हैं।

 विघटनकारी तत्वों से रहे सावधान :

आचार्य जितेंद्र नाथ ने सभा को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि अनेक कारणों से विघटनकारी तत्व सक्रिय हो रहे हैं, वह भारत की हिंदू संस्कृति को बाधित करने के लिए प्रयत्नशील हैं । पूर्व में घटित कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने इशारा किया कि अब भगवान की जाति पूछने का दुस्साहस किया जा रहा है । क्या इससे पहले कभी पूजा पद्धति अपनाने वालों ने ऐसी कल्पना भी की थी क्या उनके भगवान किस वर्ण से आते हैं। आचार्य ने कहां की 10000 किलोमीटर दूर से आए अंग्रेजों ने देश में रह रहे लोगों के बीच खाई निर्मित करने का काम किया। जाति पाती और ऊंच-नीच के नाम पर लोगों को एक दूसरे के सामने खड़ा किया। आचार्य ने कहा कि हिंदुस्तान सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो और लगातार स्थिति में रहे, इसके लिए जरूरी है कि हम सामाजिक सद्भाव के ताना-बाना को सुदृढ़ बनाए रखें । उन्होंने कहा कि किसी भी महल के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जरूरी शर्त होती है कि उसमें जिस मसाले का उपयोग किया गया है उसकी गुणवत्ता कितनी बेहतर है।

नारी शक्ति का करें सम्मान :

जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में किए जा रहे कार्यों में नारी शक्ति की भूमिका को उन्होंने विशेष रूप से रेखांकित किया कहां गया कि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जहां देश की महिलाओं का योगदान किसी से कमतर हो आचार्य जितेंद्र नाथ ने इसके साथ ही कुछ और तथ्यों को जोड़ा उन्होंने कहां की घर परिवार और इसके बाहर के परिवेश में जो कुछ बेहतर होता है उसकी आधारशिला कुल मिलाकर माताओं के द्वारा रखी जाती है। गुरु गोविंद सिंह के तीन बेटे की शहादत से जुड़े घटनाक्रम का वर्णन करने के साथ कहा गया कि धर्मांतरण की शर्त को सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने खुद को न्योछावर करना तय किया। इससे पहले कई भ्रांतियां पैदा की गई लेकिन गुरु गोविंद सिंह को अपने संस्कार पर विश्वास था। जीजामाता के पुत्र शिवाजी सहित कई ऐसे चरित्रों का उल्लेख आचार्य ने अपने व्याख्यान में किया। इसके माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया गया कि संतति को जो संस्कार माताओं के माध्यम से अपने घरों में प्राप्त होते हैं वह स्थाई रूप से टिकाऊ होते हैं और इन्हीं सबसे संस्कृति की जड़ें काफी गहराई तक अपना स्थान बनाती हैं।  उन्होंने कहा कि देश की आंतरिक और बाय सुरक्षा करने के लिए देश के जवान अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं उनके योगदान के बल पर ही देश और यहां का नागरिक सुरक्षित है यह जवान जिन संस्कारों में पले बड़े हुए हैं । वे कुल मिलाकर असाधारण क्षमता के धनी है। यह बात सर्वसम्मति और स्वीकार योग्य है।

की गई भारत माता की आरती : 

व्याख्यानमाला का शुभारंभ आचार्य जितेंद्र नाथ महाराज और अन्य अतिथियों द्वारा भारत माता के पट चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन और माल्यार्पण कर किया गया। इससे पूर्व आचार्य का स्वागत सत्कार आयोजकों की ओर से हुआ। कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल पुरस्कृत शिक्षक पंडित शिवराज शर्मा ने देशभक्ति गीतों और भजनों की प्रस्तुति दी। विश्व मांगल्य सभा की पदाधिकारी पूजा पाठक ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में परिवारों के बीच किए जा रहे  संस्कृति और मूल्यों से संबंधित कार्यों की जानकारी दी। समापन से पहले सभी ने मिलकर भारत माता की आरती प्रस्तुत की।  प्रसाद वितरण के साथ इस आयोजन का समापन हुआ । काफी संख्या में लोगों की उपस्थिति ने आयोजकों का उत्साह बढ़ाया।