छत्तीसगढ़ में स्टील कारोबारियों का प्री-पेड नजराना विवादों में, 32 करोड़ की वसूली का मुद्दा बैठक में छाया, बिजली सब्सिडी और छूट कों लेकर फिर सौदेबाजी आई सामने, सुर्ख़ियों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल…… 

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में स्टील करोबारियों के तमाम एसोसिएशन की आवक और जावक के साथ – साथ ब्लैक मनी के आवागमन के मामले सुर्ख़ियों में है। इन मामलों को लेकर एसोसिएशन की बैठकों में खास उद्योगपतियों के बीच जमकर माथा पच्ची और तू तू – मैं मैं हो रही है। मामला बिजली सब्सिडी पाने के लिए 32 करोड़ के नगद भुगतान से जुड़ा बताया जाता है। सूत्रों के मुताबिक महीने भर पहले किसी शख्स को एसोसिएशन के संयुक्त मोर्चे ने यह मोटी रकम सौंपी थी। इस दौरान पूर्व की तरह जारी बिजली सब्सिडी को यथावत जारी रखने का वादा भी किया गया था। लेकिन दांव उल्टा पड़ गया है।

बताते है कि राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की स्टील उद्योग को सालाना 300 करोड़ की दी जा रही बिजली सब्सिडी पर अचानक रोक लगा दी। कहा जा रहा है कि स्टील कारोबारियों के समीकरण फिट होने से पहले बिखर जाने से 32 करोड़ के डूबने की आशंका है। लिहाजा पीड़ित उद्योगपति रकम की सुरक्षित वापसी के लिए एड़ी – चोटी का जोर लगा रहे है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर वो कौन शख्स है, जो आपदा में अवसर तलाशने की सटीक क्षमता रखता है? रायपुर की पांच सितारा होटलों में स्टील उद्योगपतियों की बैठके इन दिनों प्रदेशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। 

सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की बिजली सब्सिडी योजना का सीधा फायदा तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे बघेल और उनकी टोली को मिल रहा था। स्टील कारोबारियों को सालाना पैकेज के तहत सरकारी तिजोरी से 300 करोड़ की माफ़ी दी जा रही थी। जबकि इसका ठीक आधा 150 करोड़, विभिन्न एसोसिएशन के माध्यम से लोकल वसूली कर नेता जी के कारिंदों को सौंप दिया जाता था। यह भी बताया जाता है कि सरकारी नियमों को ताक में रखकर वर्ष 2018 से लेकर 2023 तक के इन 5 वर्षों में स्टील कारोबारियों को 1500 करोड़ से ज्यादा की सब्सिडी प्रदान की जा चुकी है।

सरकारी तिजोरी पर पड़ने वाले सालाना इस भार में कमी लाने का कोई प्रयास तत्कालीन सरकार ने नहीं किया था। लेकिन बीजेपी की अगुवाई वाली मौजूदा साय सरकार ने एक ही झटके में बिजली सब्सिडी पर ब्रेक लगा दिया है। उधर स्टील कारोबारियों को जारी बिजली सब्सिडी में ब्रेक लगते ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपे बघेल के सब्र का बांध टूट गया था। उन्होंने आनन – फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राज्य की विष्णुदेव साय सरकार के इस फैसले को मूर्खतापूर्ण निर्णय करार दिया था।

पूर्व मुख्यमंत्री का यह बयान स्टील कारोबारियों से उनकी मुलाकात के बाद सामने आया था। राजनीति के जानकार तस्दीक करते है कि बघेल ने राज्य की विष्णुदेव साय सरकार के लिए इसके पूर्व कभी भी ऐसी तल्ख़ टिप्पणी नहीं की थी। जो उन्होंने स्टील कारोबारियों को मुफ्त में मिल रही रेवड़ी को लेकर की है।

कांग्रेस भी लगातार सब्सिडी यथावत जारी रखने की मांग कर विष्णुदेव साय सरकार को आड़े हाथों ले रही है। हालांकि राज्य सरकार और हड़ताली उद्योगपतियों के बीच बातचीत का दौर जारी है। स्टील कारोबारियों के एसोसिएशन के मुताबिक उद्योगपतियों से मेल मुलाकात के बाद मामले का सर्वमान्य हल निकालने का भरोसा दिलाया गया है। छत्तीसगढ़ में साल दर साल जारी बिजली सब्सिडी को यथावत जारी रखने के लिए स्टील उद्योगपतियों ने अपने कारखानों पर ताले लटका दिए है।

उनकी गैर -क़ानूनी हड़ताल के चलते हज़ारों मजदूरों के सामने जानबूझ कर रोजी -रोटी का संकट पैदा किया जा रहा है, ताकि मुफ्त की रेवड़ी पाने के लिए सरकार को दबाव में लाया जा सके। इस मुश्किल दौर में श्रम विभाग भी पीड़ित मजदूरों की सुध नहीं ले रहा है।

बताते है कि राजनैतिक रस्साकसी के चलते श्रम विभाग की गतिविधियां हासिये पर है। स्टील कारोबारियों की गैर-क़ानूनी हड़ताल से होने वाले नुकसान की जिम्मेदारी भी तय करने की मांग हो रही है। पीड़ित मजदूर तस्दीक कर रहे है कि स्टील उद्योगों में उनका शोषण कोई नहीं बात नहीं है, लेकिन ऐसी गैर-क़ानूनी हड़ताल से होने वाले नुकसान से उन्हें बचाना चाहिए।

उन्हें श्रम कानून के तहत सुविधा भी मुहैया करानी चाहिए।यही नहीं विभिन्न जिलों से स्टील एसोसिएशन के पदाधिकारियों को फंड इकट्ठा करने की नई जिम्मेदारी भी सौंपी जा रही है। सूत्र तस्दीक करते है कि बिजली सब्सिडी यथावत जारी रखने के लिए एसोसिएशन मोटा नजराना पेश करने की तैयारी में भी था। लेकिन अचानक बाजी पलट गई, सरकार का फैसला ठीक स्टील कारोबारियों की उम्मीदों के विपरीत आया।

यह भी बताया जाता है कि फैसले की खबर कारोबारियों को इस बार कानो – कान नहीं मिल पाई। उन्हें भनक भी नहीं लगी और पूरी गोपनीयता से सरकारी फैसला जनता के बीच आ गया। बताया जाता है कि आमतौर पर भूपे राज में सब्सिडी से जुड़े संभावित सरकारी फैसले पूर्व निर्धारित होते थे। उद्योगपति ऐसी नीतियों को अपने फायदे के लिए निर्धारित करते थे। लेकिन इस बार उनके अरमानों पर से पानी फिरता नजर आ रहा है।

हालांकि इसकी पहली क़िस्त पर ही संकट के बादल मंडराने से कई कारोबारियों ने आंदोलन के भारी भरकम खर्चों को लेकर अपने हाथ खड़े करना भी शुरू कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक रायगढ़, कोरबा और बिलासपुर के कई बड़े उद्योगपतियों ने फंड के बेजा इस्तेमाल को लेकर स्टील एसोसिएशन को जमकर खरीखोटी सुनाई है। उसने 32 करोड़ की सुपारी लेने वाले शख्स का नाम जाहिर करने की भी चेतावनी दी है। प्री – पेड नजराने को लेकर विवाद की स्थिति निर्मित होने से संभावना जताई जा रही है कि आने वाले दिनों विभिन्न स्टील एसोसिएशन का लेखा – जोखा पुलिस थानों में रखा नजर आ सकता है।