
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले शुरू हुआ मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अब एक बड़े सियासी विवाद में बदल चुका है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने इस कवायद को संविधान के मूल ढांचे पर हमला बताया है और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि वह इस प्रक्रिया के ज़रिए NRC जैसी प्रणाली को पिछले दरवाजे से लागू कर रहा है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि SIR केवल मतदाता सूची को अद्यतन और शुद्ध करने की कानूनी प्रक्रिया है, जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत वैध है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने स्पष्ट किया कि यह कदम लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी है।
हालांकि, विपक्ष ने समय पर सवाल उठाए हैं। 2003 में भी यह प्रक्रिया हुई थी, लेकिन वह विधानसभा चुनाव से दो साल पहले की गई थी। इस बार SIR ऐसे समय में हो रही है जब चुनाव महज चार महीने दूर हैं, जिससे राजनीतिक मंशा पर संदेह बढ़ गया है।
इस बार मतदाताओं से उनके निवास के प्रमाण मांगे जा रहे हैं, और हैरानी की बात यह है कि आधार कार्ड को इस प्रक्रिया के लिए मान्य दस्तावेज़ नहीं माना गया है। इससे लाखों गरीब और प्रवासी मतदाताओं के वोट कटने की आशंका जताई जा रही है।
विपक्षी दलों ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। वहीं, बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि यह पूरी प्रक्रिया 24 जून 2025 के चुनाव आयोग के आदेश के तहत हो रही है और मतदाताओं को दस्तावेज़ जमा करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा।