Jammu and Kashmir : पीर पंजाल घाटी बना आतंकवादियों का नया ठिकाना, YSMS तकनीक से दे रहे चकमा

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श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर की पीर पंजाल घाटी में सुरक्षा एजेंसियों को मात देने और ‘अफगानिस्तान के पहाड़ों की तरह कठोर’ क्षेत्र में लंबे समय तक जीवित रहने के लिए आतंकवादी अपना रास्ता बदल रहे हैं. घाटी में राजौरी और पुंछ के जुड़वां जिले शामिल है. इसके साथ ही नियंत्रण रेखा (एलओसी) और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) सहित 225 किमी का क्षेत्र पीर पंजाल घाटी के अंतर्गत आता है, जहां आतंकवादी वाईएसएमएस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इसी वजह से इन आतंकवादियों का पता लगाना और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि ये इन्क्रिप्टेड संदेश अपने पीछे कोई डिजिटल सुराग नहीं छोड़ते हैं और इसे ‘लगभग अभेद्य’ बनाते हैं. सूत्रों के मुताबिक, ‘पीर पंजाल घाटी में ऐसे पॉकेट हैं, जहां पाकिस्तान से सेलुलर सेवाएं सक्रिय हैं और फोन पर भी इसका पता लगाया जा सकता है.’

प्रौद्योगिकी का एक अन्य उपयोग ऑफ़लाइन सिम-रहित फोन सक्रियण है, जहां संचार के लिए ब्लूटूथ का इस्तेमाल किया जाता है और फोन पर ऑफ़लाइन एप्लिकेशन पर प्री-फेड स्थानों को फॉलो किया जाता है. 1 जनवरी को डांगरी और 20 अप्रैल को बुट्टा डूरियन के हमलावरों ने पूर्व-पोषित मार्गों पर हमले के बाद बचने के लिए ‘अल्पाइन’ जैसे ऑफ़लाइन सिस्टम का सबसे अधिक इस्तेमाल किया है.

पीर पंजाल के दक्षिण का क्षेत्र का पहाड़ी इलाका जो जम्मू क्षेत्र से कश्मीर घाटी को विभाजित करता है – ने ऐसी चुनौतियाँ पेश की हैं जो कहीं अधिक कठिन और जटिल हैं. 1990 से 2007 तक, जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर हिंसा देखी गई, जिनमें से लगभग 35 प्रतिशत ऐसी घटनाएं पीर पंजाल के दक्षिण में क्षेत्रों में हुईं.

पीर पंजाल के दक्षिण में इसकी सीमा जम्मू-सांबा-कठुआ मैदानों से पहाड़ी क्षेत्र राजौरी-पुंछ तक मैदान के रूप में फैली हुई है. यह अखनूर क्षेत्र आगे लगभग 198 किलोमीटर की अंतर्राष्ट्रीय सीमा करीब 740 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा (एलओसी) के लिए रास्ता बनाती है. जटिल भौगोलिक स्थितियों की वजह से इन इलाकों में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाने में काफी दिक्कतें पेश आती हैं.