भारत का दक्षिणी पड़ोसी देश श्रीलंका अपनी आजादी के बाद से अब तक का सबसे गंभीर आर्थिक संकट झेल रहा है। महंगाई दर 17% के पार पहुंच चुकी है। लोग पेट्रोल, रसोई गैस, केरोसिन खरीदने के लिए घंटों लाइनों में लगने को मजबूर हैं और दम तोड़ रहे हैं। भारत पर भी इसका दबाव बढ़ रहा है। इस बदहाली के लिए वहां के लोग सरकार की भ्रष्ट नीतियों को जिम्मेदार मान रहे हैं। लोगों का कहना है कि दो साल के भीतर हालात बिगड़े हैं।
बेटे की नौकरी गई, मेरी सेविंग की वैल्यू नहीं रही
रमेश मारिया (बदला हुआ नाम) रिटायर्ड हैं और श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के एक पॉश इलाके में रहते हैं।
श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक हालात ने उनके लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। उनकी दवाएं आसानी से नहीं मिल रही हैं, जो मिल भी रही हैं, उनकी कीमत दोगुनी से ज्यादा हो गई है।
मारिया कहते हैं, “मेरे बेटे की नौकरी छूट गई है। जो मेरी सेविंग थी उसकी कोई वैल्यू नहीं रह गई है। हर चीज के दाम चार गुना तक बढ़ गए हैं। मैं नहीं जानता कि इन हालात में हम कब तक अपना घर चला सकेंगे।”
श्रीलंका इस समय अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। यहां खाने-पीने की चीजों के दाम आसमान पर हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक उनके लिए एक कप चाय तक पीना मुश्किल हो गया है।
ईंधन के संकट से घंटों का पावर कट
श्रीलंका एक आईलैंड नेशन (द्वीप) है जिसकी अर्थव्यवस्था पर्यटन और विदेश में काम कर रहे लोगों के पैसे भेजने पर निर्भर रहती है। कोविड महामारी ने इन दोनों ही क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया, लिहाजा श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई।
श्रीलंका के पास इस समय विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है। ऐसे में वह न तो ईंधन खरीद पा रहा है, न ही खाद्य पदार्थ और न ही दवाएं। विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए श्रीलंका ने मार्च 2020 में चीजों के आयात पर रोक लगा दी थी। अब हालात ये है कि महंगाई दर 17.5% तक पहुंच गई है। थर्मल पावर प्लांट्स के पास ईंधन नहीं है जिसकी वजह से रोजाना पांच-पांच घंटे तक बिजली काटी जा रही है।
श्रीलंका के ऊपर 51 अरब डॉलर का कर्ज है और क्रेडिट एजेंसियों का अनुमान है कि ये देश इस कर्ज को चुकाने में असमर्थ हो सकता है। श्रीलंका ने चीन से भी मोटा कर्ज लिया है और अब ये देश चाहता है कि इस कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग की जाए।
करप्शन ने आग में घी का काम किया
मारिया कहते हैं, “अभी जो मुश्किल हालात हम देख रहे हैं ये अचानक पैदा नहीं हुए हैं। श्रीलंका में जो भ्रष्टाचार लंबे समय से हो रहा है, उसका असर अब दिख रहा है। ये सरकार की भ्रष्ट नीतियों का नतीजा है। चंद राजनीतिक घरानों के हाथ में देश की पूरी अर्थव्यवस्था आ गई है। आम लोगों के पास पैसा नहीं है। जो पैसा है, उसकी अब कोई वैल्यू नहीं है।”
भारत के एक रुपए में श्रीलंका के 3.81 रुपए आते हैं। श्रीलंका में इस समय आधा किलो मिल्क पाउडर 800 स्थानीय रुपए में मिल रहा है। मारिया कहते हैं, “सबसे अधिक दाम दूध और सब्जियों के बढ़ रहे हैं और इसकी वजह से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके लिए खाना मुहैया कर पाना मुश्किल हो गया है।”
सरकार दमन की नीति अपना रही है
कोलंबो में काम करने वाले एक स्थानीय पत्रकार अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि सरकार उन लोगों को निशाना बना रही है जो सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं। वो बताते हैं, “सरकार पर प्रदर्शनों का कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। सरकार इस तरफ तवज्जो ही नहीं दे रही है। सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं है।”
ये पत्रकार बताते हैं, “एक-दो साल पहले श्रीलंका में आम जीवन बहुत मुश्किल नहीं था। लोग अपने खर्च चला पा रहे थे, लेकिन जब से ये सरकार सत्ता में आई है, लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। अब घर का खर्च चलाना आसान नहीं है।”
श्रीलंका में इस समय सबसे बड़ा संकट बिजली का है। थर्मल प्लांट्स के पास ईंधन की कमी है और इस वजह से पर्याप्त बिजली नहीं बन पा रही है। स्थानीय पत्रकार बताते हैं, “हमारे घर में हर दिन पावर कट होता है, ये कट एक या दो घंटे का नहीं होता है बल्कि पांच-छह घंटे तक का होता है। घर में तीन अलग-अलग समय पर बिजली कटती है। अभी जब मैं आपसे बात कर रहा हूं, हमारी बिजली कटी हुई है। सुबह बिजली कटती है और शाम को आती है। लोग अपना काम तक नहीं कर पाते हैं।”
घंटों लाइन में खड़े लोग बेहोश हो रहे
वे बताते हैं, “जब हम घर से बाहर निकलते हैं तो जाम मिलता है। इसकी वजह वाहनों की भारी संख्या नहीं है। या ऐसा नहीं है कि बहुत अधिक तादाद में लोग बाहर निकल रहे हैं। इसकी वजह ये है कि वाहनों को तेल लेने के लिए लाइन लगानी पड़ रही है। ये लाइनें हर जगह हैं। पेट्रोल और डीजल खत्म होने की वजह से वाहन बंद हो जाते हैं। जो लोग गैस सिलेंडर नहीं खरीद पा रहे हैं, वो खाना बनाने के लिए केरोसिन लेने की लाइन में लगे हैं। गैस सिलेंडर लेने के लिए भी लाइनें लगी हैं। हालात इतने मुश्किल हैं कि लोग लाइनों में बेहोश होकर मर रहे हैं। छह-सात घंटे तक लोगों को लाइन में लगना पड़ रहा है। लाइन में लगे-लगे ही लोग थक जाते हैं।”
“एक महीने पहले मैं सूप बनाने के लिए सामान लेने गया था। ये मुझे 300 श्रीलंकाई रुपए में मिला था। एक सप्ताह पहले जब मैं वही सामान लेने गया तो ये एक हजार रुपए का मिला। एक महीने के भीतर ही चार गुना दाम बढ़ गए हैं। सब्जियों, फलों और दूसरी हर चीज के दाम बढ़ रहे हैं।”
सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ा, प्रदर्शन हो रहे
श्रीलंका में लोगों ने महंगाई के खिलाफ जनता विरोध भी कर रही है। कई जगह बड़े विरोध प्रदर्शन हुए हैं। मुख्य विपक्षी दल भी विरोध कर रहा है। कई हजार लोग सड़कों पर बाहर निकल रहे हैं। विरोध प्रदर्शन में शामिल आम लोग ये कहते हैं कि वो विपक्ष के समर्थन में नहीं आए हैं बल्कि सरकार के विरोध में आए हैं।
“एक खामोश प्रदर्शन भी चल रहा है। जहां चर्चों, मंदिरों, मस्जिदों से जुड़े लोग बाहर निकल रहे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं। बिजली कटने के दौरान लोग मोमबत्ती लेकर शांति से सड़कों के किनारे खड़े होते हैं। वो तख्तियां लिए होते हैं जिन पर लिखा होता है कि हमें बिजली चाहिए, हमारे बच्चों को दूध चाहिए।”
दिक्कतों के चलते पर्यटकों ने भी किया किनारा
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है। मौजूदा संकट ने पर्यटन क्षेत्र के लिए भी मुश्किलें पैदा कर दी हैं। यहां होटलों में भी बिजली कट रही है जिसकी वजह से पर्यटकों का रुकना भी मुश्किल हो रहा है। पर्यटक भी हालात की वजह से निराश होकर लौट रहे हैं। एक स्थानीय होटल कारोबारी नाम न जाहिर करते हुए कहते हैं, “इसका हमारे पर्यटन उद्योग पर और भी गहरा असर हो सकता है।”
सरकार सिर्फ नाटक कर रही है
सवाल ये भी है कि आखिर इन हालात से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है? स्थानीय पत्रकार बताते हैं, “सरकार लगातार प्रेस वार्ताएं कर रही है, सर्वदलीय बैठकें कर रही है और कई तरह के वादे कर रही है, लेकिन जनता को ये लग रहा है कि सरकार सिर्फ बोल रही है, कुछ कर नहीं रही है। अब तक दाम कम नहीं हुए हैं बल्कि बढ़ते ही जा रहे हैं।”
“सरकार ने मौजूदा संकट के बीच ऊर्जा मंत्री और तेल मंत्री को पद से हटाया गया है। अब वो दोनों ही सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं और तथ्य लोगों के सामने रख रहे हैं। उनका आरोप है कि सत्ताधारी दल भ्रष्ट है। सरकार ये कहती है कि तेल और गैस लेकर टैंकर देश पहुंचे हैं। ये सच है कि टैंकर आए हैं, लेकिन देश के पास डॉलर नहीं है। टैंकर बंदरगाह पर हैं, लेकिन तेल को देश में लाने के लिए डॉलर चाहिए जो श्रीलंका के पास नहीं हैं।”
ज्यादा नोट छाप दिए, वैल्यू गिर गई
श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट को एक साल से अधिक हो गया है। अब लोगों को ये लग रहा है कि सरकार समितियां तो बना रही है, लेकिन कुछ ठोस नहीं कर रही है। सरकार ने कई सलाहकार समितियां बनाई हैं, समितियों के नीचे समितियां बनाई हैं, लेकिन हालात बदलते नहीं दिख रहे हैं। इस सबसे लोगों में निराशा और आक्रोश बढ़ रहा है।
भास्कर से बात करने वाले स्थानीय पत्रकार बताते हैं, “श्रीलंका की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती ही जा रही है। इसकी एक वजह ये है कि बहुत अधिक नोट छाप दिए गए हैं। ब्याज दर बढ़ गई है। दूसरे देशों और वित्तीय संस्थानों का कर्ज बढ़ता जा रहा है। कर्ज चुकाने के लिए भी श्रीलंका लगातार कर्ज लेता जा रहा है। ये कर्ज अर्थव्यवस्था पर बहुत भारी पड़ रहा है।”