छत्तीसगढ़ में समानांतर पुलिस मुख्यालय, साय सरकार में ट्रांसफर-पोस्टिंग का नया पॉवर सेंटर, रिटायर डीजी का PHQ- ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट सुर्ख़ियों में…

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रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी में नवा रायपुर स्थित पुलिस मुख्यालय प्रदेश की आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था को सुचारु ढंग से संचालित कर रहा है। लेकिन उसके समानांतर एक अन्य पुलिस मुख्यालय भी स्थापित हो गया है। यहाँ से पुलिस कर्मियों के ऐसे ट्रांसफर-पोस्टिंग आर्डर जारी हो रहे है, जिसे देख-सुनकर प्रदेश का प्रशासनिक गलियारा हैरत में है। ताज्जुब की बात यह है कि नव स्थापित इस पुलिस मुख्यालय (ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट) से उन अफसरों की पिछले दरवाजे से ट्रांसफर-पोस्टिंग हो रही है, जिसे अंजाम देने में कायदे-कानून आढ़े आ रहे है। यही नहीं ऐसे फरमान छत्तीसगढ़ शासन के बैनर तले जारी होने से नए पुलिस मुख्यालय के प्रति उन कर्मियों का विश्वाश बढ़ा है, जो मनचाहे ट्रांसफर-पोस्टिंग की आस लगाए बैठे है।

सूत्र तस्दीक कर रहे है कि नया पुलिस मुख्यालय शहर की ही एक पॉश कॉलोनी ‘हस्ताक्षर होम’ के बंगला नंबर D-501 से संचालित किया जा रहा है। यहाँ चौबीसो घंटे जरूरतमंदों का तांता लगा हुआ है। ‘रिटायर डीजी’ की कृपा प्राप्त करने के लिए कई आईपीएस अधिकारियों के अलावा कबाड़-कोल माफिया, ब्याज का धंधा करने वाले लोग, अवैध शराब और होटलों में संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त कारोबारियों के अलावा पुलिस की मार झेल रहे पीड़ित-आरोपी भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहे है।

इस नए पुलिस मुख्यालय के मुखिया रिटायर डीजी का दावा इन दिनों पुलिस और प्रशासनिक महकमे में कई अफसरों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सचिवालय को मुट्ठी में करने का दम्भ भरने वाले पूर्व डीजी का दावा है कि यहाँ सिक्का जमा चुके भगत जी भी उनके चेले है, उनके निर्देशों के पालन में कायदे-कानूनों को दरकिनार कर भगत जी मनमाफिक ट्रांसफर-पोस्टिंग का आर्डर जारी करवाने में पीछे नहीं रहते। इसकी बानगी के रूप में वे उस ट्रांसफर- पोस्टिंग आर्डर का हवाला भी दे रहे है, जिसमे रेलवे पुलिस अधीक्षक (आईपीएस संवर्ग के लिए आरक्षित) एक मात्र पद पर किसी योग्य आईपीएस अहर्ता प्राप्त शख्स के बजाय ASP स्तर की (NON IPS) जूनियर महिला अधिकारी की पोस्टिंग कर दी गई है।

बताते है कि यह पोस्टिंग आर्डर सीएम सचिवालय की फाइलों से गुजरता हुआ गृह विभाग और पुलिस मुख्यालय का सफर तय कर लाभार्थी और रिटायर डीजी के हाथों में पहुंचा था। यह आर्डर अब ऑफिस ऑफ़ प्रॉफिट में ग्राहकों के अवलोकनार्थ पटल पर रखा गया है। बताते है कि इस तरह के अजीबों गरीब सरकारी फरमानों की यहाँ प्रदर्शनी लगाई गई है। ताकि ग्राहक पूर्व डीजी के रसूख का अंदाजा लगा सके। जानकारों के मुताबिक पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल में इस तरह के फरमान आम बात थी, लेकिन राज्य में बीजेपी और विष्णुदेव साय सरकार इस तरह की कुरीतियों पर पाबंदी का दावा कर रही है। उनके मुताबिक भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के पालन पर राज्य सरकार के जोर जैसे दावों को यह ट्रांसफर-पोस्टिंग का मामला मुँह चिढ़ा रहा है।

सूत्र तस्दीक करते है कि रिटायर डीजी ने एक बार फिर सत्ता पर काबू पाने के लिए कई नेताओं, पत्रकारों और उद्योगपतियों की फ़ोन टेपिंग का फरमान जारी किया है। उनका यह फरमान भविष्य में कितना कारगर साबित होगा यह तो वक़्त ही बताएगा। लेकिन लीक से हट कर जारी होने वाले पुलिस अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग आदेश सरकार के दावों और जमीनी हकीकत को बयां कर रहे है। राज्य में नए डीजीपी और सुलझे हुए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की सहभागिता के बावजूद नित नए जारी होने वाले फरमान चर्चा में है।

जानकारी के मुताबिक पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में खदेड़े गए एक रिटायर डीजी का राजधानी रायपुर में नए कारोबार के साथ अवतरण हुआ है। उनका ठिकाना इन दिनों पुलिस महकमे के लिए नई चुनौती बन गया है। प्रदेश में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद पूर्व डीजी इन दिनों वर्दीधारी कई पुलिस अधिकारियों के प्रेरणा श्रोत के रूप में सामने आये है। उनसे मेल-मिलाव करने वाले तस्दीक करते है कि रिटायर डीजी नया वर्जन, पुराने वर्जन की तुलना में कुछ अपग्रेडेड और उदारवादी जरूर है, लेकिन धूर्तता और बदमाशी जस की तस बरक़रार है। आल इंडिया सर्विस के आईपीएस संवर्ग में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ कैडर में कार्यरत अधिकारियों के बीच रिटायर डीजी की कार्यप्रणाली हमेशा विवादों से घिरी रही है। उनके द्वारा पेश अधिकारों और पद के दुरुपयोग की कई मिसाले शिकायतों के रूप में असली और वैधानिक पुलिस मुख्यालय से लेकर अदालत में आज भी लंबित है।

राजनीति और प्रशासनिक मामलों के जानकार तस्दीक करते है कि पूर्व डीजी की कार्यप्रणाली रामायण कालीन भस्मासुर से कम घातक नहीं रही। जब वे प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजित जोगी के पैर लगे तो उनके हाथों सत्ता चले गई। यही नहीं जग्गी हत्याकांड में बतौर पुलिस अधीक्षक कई गैर-क़ानूनी कृत्यों को अंजाम दिया गया। नतीजतन, लगभग 10 पुलिस कर्मियों को नौकरी से हाथ धोने के बावजूद जेल की यातना झेलनी पड़ी। इसकी पुर्नावृति पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के तीसरे कार्यकाल वर्ष 2015 में उस वक़्त सामने आई जब इस अधिकारी ने षड्यंत्र कर नान घोटाले में कई निर्दोषो को फंसा दिया। उनके नेतृत्व में EOW में कई ऐसे फर्जी साक्ष्य गढ़े गए, जिसके चलते वर्ष 2018 में बतौर इंकम्बेंसी पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार की साख पर गहरा धक्का लगा और विपक्ष को सीधा फायदा हुआ था।

जानकार तस्दीक करते है कि इसी डीजी की कार्यप्रणाली के कारण तत्कालीन बीजेपी सरकार की अचानक विदाई सुनिश्चित हो गई थी। उनके मुताबिक अब मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कानून का राज स्थापित करने के लिए एड़ी-चोटी एक किये हुए है। पूर्ववर्ती भूपे कुप्रवर्तियों पर लगाम लगाने के लिए साय सरकार कृत संकल्पित नजर आ रही है, इस घड़ी में कायदे-कानूनों को दरकिनार कर मनमाफिक जारी होने वाले सरकारी फरमानों को लेकर बीजेपी की भद्द पिट रही है। बहरहाल, समानांतर पुलिस मुख्यालय और उसके हस्तक्षेप से जारी होने वाले ट्रांसफर-पोस्टिंग आदेश साय सरकार की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा रहे है।