नई दिल्ली। मालेगांव बम धमाका मामले में एनआईए की विशेष अदालत के फैसले ने जहां एक ओर 17 साल पुराने केस पर कानूनी विराम लगाया है, वहीं सियासी हलचल भी तेज कर दी है। अदालत ने सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। इस पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने गहरी नाराजगी जताते हुए केंद्र सरकार और जांच एजेंसियों को कटघरे में खड़ा कर दिया।
ओवैसी ने कहा कि 2008 में हुए विस्फोट में छह नमाजी मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए थे। उनका आरोप है कि इस हमले में लोगों को उनके धर्म के कारण निशाना बनाया गया और सरकार की कथित मंशा के चलते जांच को जानबूझकर कमजोर किया गया। उन्होंने इसे ‘न्याय का मजाक’ बताते हुए पूछा कि क्या केंद्र और महाराष्ट्र की सरकार इस फैसले को चुनौती देंगी, जैसा उन्होंने मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट मामले में किया था?
ओवैसी के 5 तीखे सवाल:
- क्या 6 नमाजियों की हत्या का कोई जवाबदेह है?
- क्या सरकार फैसले को चुनौती देगी?
- क्या धर्मनिरपेक्ष दल इस फैसले पर जवाबदेही की मांग करेंगे?
- 2016 में विशेष अभियोजक रोहिणी सालियान के आरोपों पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
- क्या एनआईए/ATS की जांच में जानबूझकर की गई लापरवाही पर अधिकारियों की जवाबदेही तय होगी?
ओवैसी ने एनआईए की उस कथित रणनीति की भी आलोचना की, जिसमें उन्होंने साध्वी प्रज्ञा को 2017 में क्लीन चिट देने की कोशिश की थी। उन्होंने याद दिलाया कि यही साध्वी 2019 में भाजपा से सांसद बनीं। साथ ही उन्होंने 26/11 के हीरो हेमंत करकरे का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने मालेगांव साजिश को उजागर किया था, लेकिन उनकी मौत को बाद में ‘श्राप’ से जोड़ा गया—जो दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है।
अदालत का पक्ष:
दूसरी ओर कोर्ट ने साफ किया कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। विस्फोटक मोटरसाइकिल में आरडीएक्स की पुष्टि नहीं हुई, और न ही कोई स्पष्ट साजिश का प्रमाण मिल सका। कोर्ट ने मामले को सबूतों के अभाव में समाप्त किया।
