
भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाना कोई आसान काम नहीं है। संविधान ने इसके लिए एक बेहद कठोर प्रक्रिया निर्धारित की है, ताकि चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष बना रहे। कांग्रेस और कई विपक्षी दल पिछले दिनों चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। अब विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त महाभियोग लाने पर विचार कर रहा है।
संवैधानिक रूप से, राष्ट्रपति केवल तभी मुख्य चुनाव आयुक्त को हटा सकते हैं जब संसद के दोनों सदन—लोकसभा और राज्यसभा—विशेष बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव पारित करें। इसके लिए कम से कम दो-तिहाई सदस्यों की उपस्थिति और मतदान अनिवार्य है। उदाहरण के तौर पर, 543 सदस्यीय लोकसभा में लगभग 364 और 240 सदस्यीय राज्यसभा में लगभग 160 वोट जरूरी होंगे। हटाने का आधार केवल “सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता” तक सीमित है, वही मानक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए भी लागू होता है।
मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है। अन्य चुनाव आयुक्तों की तुलना में, केवल मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया महाभियोग के माध्यम से ही संभव है। यह सुनिश्चित करता है कि चुनाव आयोग राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षित रहे और एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था बनी रहे।
वर्तमान में, बिहार में मतदाता सूची संशोधन को लेकर पक्षपात और विवाद की घटनाओं के कारण सीईसी ज्ञानेश कुमार पर महाभियोग की चर्चा तेज हुई है। हालांकि, इंडिया ब्लॉक के पास लोकसभा और राज्यसभा में आवश्यक दो-तिहाई बहुमत नहीं है। सत्तारूढ़ गठबंधन के पास बहुमत होने के कारण महाभियोग प्रस्ताव पास कर पाना विपक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त महाभियोग की यह प्रक्रिया न केवल संवैधानिक सुरक्षा देती है, बल्कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को भी बनाए रखती है।