Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गर्भपात पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जिसमें कोर्ट ने कहा कि हर महिला को अधिकार है कि वह गर्भवती होना चाहती है या नहीं। HC ने कहा कि भ्रूण में असामान्यताएं दिखाई देने पर गर्भावस्था की अवधि कोई मायने नहीं रखती है। अगर किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे को गंभीर समस्या है तो उसका गर्भपात कराया जा सकता है। यह पूरी तरह से उसका फैसला होगा ना कि मेडिकल बोर्ड का।
दरअसल, इस मामले में मेडिकल बोर्ड की ओर से कहा गया था कि भले ही भ्रूण में असामान्यताएं हैं लेकिन इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि गर्भावस्था लगभग अपने अंतिम चरण में है. HC ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि भ्रूण में असामान्यता दिख रही हैं तो गर्भावस्था की अवधि कोई मायने नहीं रखती. ऐसी स्थिति में गर्भ रखना है या नहीं ये चुनने का अधिकार सिर्फ याचिकाकर्ता महिला का है.
याचिकाकर्ता महिला को सोनोग्राफी के बाद पता चला था कि भ्रूण में गंभीर विसंगतियां हैं और शिशु शारीरिक एवं मानसिक अक्षमताओं के साथ पैदा होगा, जिसके बाद महिला ने अपना गर्भपात कराने के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी थी. अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘भ्रूण में गंभीर विसंगतियों के मद्देनजर गर्भधारण की अवधि मायने नहीं रखती. याचिकाकर्ता ने सोच-समझकर फैसला किया है. यह आसान निर्णय नहीं है, लेकिन यह फैसला उसका (याचिकाकर्ता का), केवल उसका है. यह चयन करने का अधिकार केवल याचिकाकर्ता को है. यह चिकित्सकीय बोर्ड का अधिकार नहीं है.’