डेढ़ करोड़ की भेड़, बोली लगी 70 लाख रुपये, मन मुताबिक दाम नहीं मिलने से मालिक ने किया बेचने से इनकार, इस वजह से भेड़ की कीमत पहुंची आसमान पर

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पुणे / आमतौर पर विभिन्न नस्लों की भेड़ 10 से 15 हज़ार में मिल जाती है। सामान्य भेड़ तो दो से पांच हज़ार में उपलब्ध होती है। लेकिन अपने अनोखे रूप और अच्छी गुणवत्ता वाले मांस के लिए प्रसिद्ध ‘मेडगयाल’ नस्ल की भेड़ के दाम आसमान छूने लगे है। इस नस्ल की कुछ खास भेड़ की कीमत तो डेढ़ करोड़ तक पहुँच गई है। महाराष्ट्र के सांगली जिले में मेडगायल नस्ल की भेड़ को 70 लाख रुपये में खरीदने की पेशकश हुई लेकिन भेड़ के मालिक ने इसे बेचने से इंकार कर दिया। वो इसकी कीमत 1.5 करोड़ रुपये मांग रहा था। सांगली के अतपडी तहसील के भेड़पालक बाबू मेटकरी के पास 200 भेड़ें हैं | इनमे से एक भेड़ को 70 लाख रुपये में खरीदने की पेशकश एक खरीदार ने की थी। लेकिन ऊंचे दाम के बावजूद उन्होंने इसे नहीं बेचा। 

भेड़ पालक बाबू मेटकरी अक्सर मेलों और पशु प्रदर्शनीय में अपनी भेड़ों को नुमाईश के लिए ले जाते है। भेड़ के एक बच्चे से सालाना उनके परिवार की मोटी कमाई होती है। मेटकरी ने बताया कि 70 लाख रुपये की पेशकश करनेवाले खरीदार को उन्होंने इसे बेचने से इनकार कर दिया | लेकिन जब वह जोर देने लगा तो उन्होंने इसकी कीमत 1.50 करोड़ रुपये बताई क्योंकि वे जानते है कि भेड़ के लिए कोई इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं करेगा। उन्होंने दावा किया, हम दो-तीन पीढ़ियों से पशुपालन के कारोबार में हैं लेकिन पिछले दो वर्षों से हमें सरजा की वजह से फायदा हुआ। इस भेड़ के बच्चे पांच लाख से 10 लाख रुपये के बीच बिकते हैं। 

दरअसल मेडगयाल नस्ल की भेड़ सांगली के जाट तहसील में पाई जाती हैं | अन्य नस्लों के मुकाबले इनका आकार बड़ा होता है। बेहद खूबियों वाली इस नस्ल की मांग भेड़ ब्रीडर में ज्यादा है। ऊंचे दाम के बावजूद इसके मालिक ने 70 लाख की बोली लगने के बावजूद उसे रद्द कर दिया। उधर एक अधिकारी ने बताया कि राज्य का पशुपालन विभाग भी लगातार मेडगयाल नस्ल की संख्या इसके मूल स्थान से इतर भी बढ़ाने के प्रयास में लगा हुआ है। इस नस्ल का नाम जाट तहसील के मेडगयाल गांव पर रखा गया है। विशेष गुणों और सूखाग्रस्त जलवायु में संतुलन बिठाने की वजह से पशुपालन विभाग ने इस नस्ल की संख्या को बढ़ाने का निर्णय लिया है। 

इस भेड़ का नाम ‘मोदी’ है। इसके मालिक मेटकरी ने बताया कि इस भेड़ का असली नाम सरजा है। लोग इसकी तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करने लगे इसलिए इसका नाम ‘मोदी’ पड़ गया। लोगों का कहना है कि जिस तरह से मोदी सभी चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनें, उसी तरह से सरजा को जिस भी मेले या बाजार में ले जाया गया, वहां इसका जलवा रहा। मेटकरी ने कहा कि सरजा उनके और उनके परिवार के लिए ‘शुभ’ है इसलिए वह इसे बेचना नहीं चाहते हैं।

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