
दिल्ली : – बिहार में ”SIR” के मुद्दे पर चुनाव आयोग से दो – चार हो रही कांग्रेस को लगातार एक के बाद एक झटके लगाने के मामले में नया मोड़ आ गया है। इस बार NCERT ने चुनाव आयोग की तर्ज पर तगड़ा झटका दिया है। उसने भारत पाक विभाजन के लिए ऐतिहासिक प्रमाणों की झड़ी लगाते हुए एक नए पाठ्यक्रम को मंजूरी दी है। अब स्कूली बच्चे ऐतिहासिक भूलो और उसके कुप्रभाव से वाकिफ हो सकेंगे। लाल क़िले की प्राचीर से आरएसएस की तारीफों के पुल बांधने के बाद PM मोदी के एक ओर कदम बढ़ाते हुए NCERT के नए पाठ्यक्रम को हरी झंडी दे दी है, उनके इस कदम से कांग्रेस भड़की हुई है।आरएसएस की गौरवगाथा से आहत कांग्रेस अभी इस मुद्दे से उभर ही नहीं पाई थी कि उसे NCERT ने तगड़ा झटका दे दिया है।

NCERT के नए पाठ्यक्रम से जहाँ कांग्रेस आग – बबूला है, वही इस मुद्दे से देश की राजनीति गरमाने के लिए पार्टी का एक गलियारा सक्रिय हो गया है। नए पाठ्यक्रम में साफ़ किया गया है कि जिन्ना, कांग्रेस और माउंटबेटन ने देश का किया बंटवारा किया था, भारत – पाक विभाजन के यही तीनों जिम्मेदार है। दरअसल, भारत सरकार ने 14 अगस्त को Partition Horrors Remembrance Day घोषित किया है। इसका उद्देश्य छात्रों और समाज को यह याद दिलाना है कि भारत-पाकिस्तान के बंटवारे (1947) ने लाखों लोगों की जिंदगियों पर कितना गहरा असर डाला था। एनसीईआरटी द्वारा विभाजन की विभीषिका, स्मृति दिवस पर विशेष मॉड्यूल, कक्षा 6-8 के मध्य और माध्यमिक कक्षाओं के लिए तैयार किया गया है। भारतीय राजनीति और उसके फैसलों से देश को हुए नुकसान से छात्रों को अवगत कराया जाएगा। उन्हें यह भी समझाया जायेगा कि आजादी के समय 1947 में हुए बंटवारे से आम लोगों को कितनी मुश्किलों और दुखों का सामना करना पड़ा, और हमें ऐसी घटनाओं से क्या सीख लेनी चाहिए ?

भारत सरकार से मंजूरी मिलने के बाद NCERT ने 14 अगस्त, ‘Partition Horrors Remembrance Day’ के लिए एक खास मॉड्यूल बनाया है। यह मॉड्यूल कक्षा 6 से 8 और सेकेंडरी स्कूल के बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। अब शिक्षक गुण दोष के साथ छात्रों को बताया जाएगा कि 1947 में भारत के बंटवारे के समय पीड़ितों को कितनी मुश्किलों और दर्द का सामना करना पड़ा था। इस पाठ्यक्रम को लेकर शिक्षक और अभिभावक रचनात्मक बता रहे है। उनके मुताबिक इतिहास भूल सुधार का दस्तावेज है। इसलिए हकीकत से रूबरू होने में कोई एतराज नहीं है। वे कहते है कि यदि शिक्षक बच्चों को यह समझाया जाएगा कि हमें उस दुखद घटना से क्या सीख लेनी चाहिए ? इसमें बुराई क्या है ?

NCERT के इस मॉड्यूल में साफ़ किया गया है कि भारत को गुलाम रखने के लिए आखिर क्या चाहती थी ब्रिटिश सरकार ? मॉड्यूल के अनुसार, भारत का विभाजन गलत सोच की वजह से हुआ था। पाठ्यक्रम में बताया गया है कि मुस्लिम लीग ने 1940 में लाहौर में एक बैठक की थी, वहां जिन्ना ने कहा था कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग धर्म, रीति-रिवाज़, साहित्य और नायकों वाले समुदाय हैं। ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि भारत आजाद तो हो, लेकिन बंटे नहीं. उन्होंने एक योजना बनाई थी, जिसमें भारत को डोमिनियन स्टेटस देने की बात की गई थी। अर्थात ब्रिटिश राजा केवल नाम के लिए भारत का प्रमुख रहता, लेकिन देश का असली प्रशासन भारतीयों के हाथ में होता इसके साथ ही, अलग-अलग प्रांतों को यह विकल्प दिया गया था कि वे इस डोमिनियन का हिस्सा बनें या न बनें. लेकिन कांग्रेस ने यह योजना और ब्रिटिश पेशकश ठुकरा दी थी।

पाठ्यक्रम में भारत के बटवारे नेताओं के आधिकारिक विचार और उसके नतीजों से छात्रों को रूबरू कराया गया है। एनसीईआरटी के इस खास मॉड्यूल में बताया गया है कि आजादी के समय देश के बड़े नेताओं के पास बंटवारे को लेकर अलग-अलग राय थी. सरदार वल्लभभाई पटेल शुरू में बंटवारे के पक्ष में नहीं थे. लेकिन बाद में उन्होंने इसे ज़बरदस्ती ली जाने वाली दवा की तरह स्वीकार किया था। इसके मुताबिक जुलाई 1947 में बॉम्बे की एक सभा में उन्होंने कहा था- “देश युद्ध का मैदान बन चुका है, दोनों समुदाय अब शांति से साथ नहीं रह सकते। गृहयुद्ध से अच्छा है कि बंटवारा कर दिया जाए.”

ऐतिहासिक दस्तावेजों से प्राप्त तथ्यों से पाठ्यक्रम को मजबूती दी गई है। इसमें कहा गया है कि लॉर्ड माउंटबेटन, जो भारत के अंतिम वायसराय थे, उन्होंने कहा था – “भारत का बंटवारा मैंने नहीं किया. यह भारतीय नेताओं ने खुद मंज़ूर किया. मेरा काम केवल इसे शांति से लागू करना था. जल्दबाजी की गलती मेरी थी, लेकिन इसके बाद हुई हिंसा की ज़िम्मेदारी भारतीयों की थी.” महात्मा गांधी बंटवारे के खिलाफ थे. उन्होंने 9 जून 1947 को प्रार्थना सभा में कहा था – “अगर कांग्रेस बंटवारे को मानती है, तो यह मेरी सलाह के खिलाफ होगा. लेकिन मैं इसका विरोध हिंसा या गुस्से से नहीं करूंगा.” इसके बावजूद भी देश की नब्ज और हालात को देखते हुए नेहरू और पटेल ने गृहयुद्ध के डर से भारत – पाक बंटवारे को स्वीकार कर लिया था। जबकि महात्मा गांधी ने भी अपनी आपत्ति छोड़ दी थी। 14 जून 1947 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में बाकी शेष नेता भी बंटवारे के लिए तैयार हो गए थे।

माउंटबेटन की देश विभाजन की जल्दबाजी और उसके नतीजों से छात्रों को वाकिफ कराने के मॉड्यूल के अनुसार, लॉर्ड माउंटबेटन ने एक बड़ी गलती की. उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख जून 1948 से घटाकर अगस्त 1947 कर दिया था। इससे स्वतंत्रता की नीव रखने के पूरे काम के लिए मात्र 5 हफ्ते मिले थे। यही नहीं विभाजन की सीमाओं का बंटवारा भी जल्दबाजी में किया गया था। हालत ये थे कि 15 अगस्त 1947 के दो दिन बाद तक पंजाब प्रान्त में निवासरत लाखों लोगों को यह पता ही नहीं था कि वे विभाजन के बाद भारत में हैं या पाकिस्तान में ? इतिहासकारों ने इसे जल्दबाजी के साथ – साथ बहुत बड़ी लापरवाही माना है। देश विभाजन के बाद की सबसे बड़ी समस्या बनकर कश्मीर भी उभरा था। बंटवारे के बाद भी हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत खत्म नहीं हुई थी।

नतीजतन इसी समय कश्मीर का मुद्दा उठ खड़ा हुआ था, जो आजादी से पहले कभी नहीं था। पाठ्यक्रम में इसे भारत की विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया है। इसके मुताबिक कई देश कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान का साथ देकर भारत पर दबाव बनाने में लगे रहे थे। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस PM मोदी की देन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “Partition Horror Remembrance Day” मनाने का ऐलान किया है। उनके इस कदम की सराहना करने वालो की कोई कमी नहीं थी। PM ने कहा –“विभाजन का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता. लाखों बहन-भाई बेघर हो गए और कई लोगों ने अपनी जान गंवाई. हमारे लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में हर साल 14 अगस्त को यह दिवस मनाया जाएगा.”

उधर, इस पाठ्यक्रम को लेकर कांग्रेस ने आपत्ति दर्ज की है। उसका दावा है कि एनसीईआरटी के मॉड्यूल में सच्चाई पूरी तरह नहीं बताई गई है। प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि अगर इसमें सिर्फ कांग्रेस और जिन्ना को ही विभाजन का जिम्मेदार ठहराया गया है, तो यह अधूरी कहानी है. उन्होंने कहा कि हिंदू महासभा और आरएसएस भी 2 नेशन थ्योरी का समर्थन करते थे. सावरकर ने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया है. वास्तव में 1938 में हिंदू महासभा ने सबसे पहले बंटवारे का विचार रखा था, जिसे जिन्ना ने 1940 में दोहराया. इसलिए सिर्फ कांग्रेस और जिन्ना को जिम्मेदार ठहराना गलत है. विभाजन के लिए हिंदू महासभा और आरएसएस को भी उतनी ही जिम्मेदारी लेनी होगी। फ़िलहाल, लोकसभा का मानसून सत्र जारी है, इस बीच कांग्रेस को नया पाठ्यक्रम जरा भी रास नहीं आ रहा है, जबकि देश की हकीकत सामने लाने के प्रयासों से बीजेपी गदगद है।