रायपुर: छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती जोगी सरकार के कार्यकाल में वन विभाग में अंजाम दिए गए आरा मिल घोटाले में अब जा कर बड़ी कार्यवाही के आसार जाहिर किये जा रहे है। दरअसल, मामले की उच्च स्तरीय जांच के बाद वैधानिक कार्यवाही को लेकर राज्य सरकार को कई तथ्यों से अवगत कराया गया है। जांच कमेटी ने सरकारी रकम के हेरफेर और अफरा-तफरी को सरकारी राजस्व में हाथ साफ करने वाला प्रकरण बताया है।इसमें पूर्व चीफ सेक्रेटरी सुनील कुमार द्वारा की गई जांच के कई बिंदुओं पर सवाल भी उठाये गए है। उच्च स्तरीय जांच कमेटी ने मामले को लिपिकीय त्रुटि मानने से साफ़ इंकार करते हुए बताया है कि यह विशुद्ध रूप से वित्तीय गबन का मामला है। इसे सुनियोजित रूप से अंजाम दिया गया था।
फ़िलहाल, क़ानूनी कार्यवाही के लिए प्रकरण छत्तीसगढ़ सरकार को सौंप दिया गया है। सूत्र तस्दीक कर रहे है कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय कार्यवाही को लेकर जल्द ही कोई बड़ा फैसला ले सकते है। दरअसल, बीजेपी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति के दायरे में इस प्रकरण को पुख्ता बताया जाता है। इस प्रकरण में चर्चित और कार्यवाही के दायरें में बताये जा रहे, श्रीनिवास राव पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और पूर्व वन मंत्री अकबर के करीबी बताये जाते है। ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि राजनैतिक रूप से उपकृत इस दागी अधिकारी को उसके अपराधों से बचाने और संरक्षण देने के प्रयास अभी भी जोर-शोर से जारी है। जानकारी के मुताबिक पूर्ववर्ती जोगी सरकार के कार्यकाल में शुरू हुए आरा मिल घोटाले ने पूर्ववर्ती रमन सरकार के पहले कार्यकाल में खूब सुर्खियां बटोरी थी। इस मामले के प्रकाश में आने के बाद पहले मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजित जोगी ने सदन में साफ तौर पर ऐलान किया था कि दोषी बख्शे नहीं जायेंगे।
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हालांकि जोगी सरकार सत्ता से हाथ धो बैठी। आरोपियों के खिलाफ दो करोड़ 29 लाख रूपए के घोटाले की पुष्टि तो हुई थी। लेकिन क़ानूनी कार्यवाही को लेकर तत्कालीन सरकार ने अपने हाथ उस समय पीछे खींच लिए थे, जब मुख्य सचिव ने एक जांच के बाद प्रकरण को लिपिकीय त्रुटि के दायरे में बताया था। लेकिन अब 20 साल पहले घटित आरा मशीन घोटाला केस की फाईल एक बार फिर खुल गई है। दिलचस्प बात यह है कि इस घोटाले में शामिल दर्जनभर आईएफएस अधिकारियों में मौजूदा वन एवं जलवायु विभाग के प्रमुख श्रीनिवास राव का भी नाम शामिल है। उस दौरान वे डीएफओ के पद पर कार्यरत थे। जानकारी के मुताबिक इस घोटाले में राजनैतिक रूप से कई अफसरों को उपकृत भी किया गया था। नतीजतन मामले की जांच में कई अफसरों की संलिप्तता सामने आने के बावजूद वे सस्ते में छूटते रहे। आखिरकार भ्रष्टाचार के इस प्रकरण में सभी दागी एक के बाद एक छूटते चले गए।
घोटाले की रकम डीएफओ के हस्ताक्षर से जारी हुई थी, इसलिए उनसे रिकवरी भी होना था। यही नहीं घोटाले का ठीकरा कई निर्दोष अफसरों पर फोड़ दिया गया था। बताया जाता है कि वन विभाग के मौजूदा हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी. श्रीनिवास राव उस वक्त इस घोटाले में सीधे तौर पर संलिप्त थे। कई सरकारी चेक वी.श्रीनिवास राव द्वारा जारी किये गए थे। इस तरह से आरा मिल घोटाले को अंजाम दिया गया था। आरा मिल घोटाले के अभियुक्त रहे वी.श्रीनिवास राव को कांग्रेस शासन काल में उनकी इसी योग्यता-अहर्ता को देखते हुए लगभग 9 आईएफएस अधिकारियों की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स के पद पर नवाज़ा गया था। इस मामले में उठा विवाद अब तक थम नहीं पाया है। बताया जाता है कि इस कथित गैर-क़ानूनी पदोन्नति के खिलाफ जबलपुर कैट में दायर एक याचिका में अदालत को कई ऐसे तथ्यों से अवगत कराया गया है, जिसके चलते विभाग में गतिरोध कायम है।
जानकारी के मुताबिक याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है। याचिकाकर्ताओं ने पदोन्नति के खिलाफ दलील दी है कि राव की इंटीग्रिटी ही संदिग्ध है, ऐसे में वो पदोन्नति के पात्र नहीं हो सकते। कैट में विधानसभा की लोकलेखा समिति के दस्तावेज भी पेश किए गए है। इसमें समिति ने भी सरकार से पूछा है कि घोटाले की रकम की वसूली के लिए क्या कार्रवाई की गई है? हालांकि इससे जुड़े अन्य प्रकरणों की भी सुनवाई कैट में जारी है। राज्य में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद भी इन याचिकाओं पर सरकार द्वारा अब तक जवाब दाखिल नहीं किया गया है। इसका विपरीत असर प्रकरण पर पड़ रहा है।
बताया जाता है कि भूपे राज में कई विभागों के प्रमुखों के लिए अधिकारियों को मोटी रकम राजनैतिक नुमाईंदों को सौंपनी होती थी। इस मामले में विवादित आईएफएस श्रीनिवास राव का नाम अव्वल नंबर पर बताया जाता है। यह भी बताया जाता है कि भूपे सरकार ने आधा दर्जन सीनियर आईएफएस को नजरअंदाज कर उनकी तुलना में 1990 बैच के जूनियर वी. श्रीनिवास राव को पहले पीसीसीएफ और फिर चंद माह में ही हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बना दिया था। इस फैसले के खिलाफ सीनियर आईएफएस सुधीर अग्रवाल, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू ने जबलपुर कैट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की थी। इन प्रकरणों की सुनवाई अभी भी जारी है। इस बीच आरा मिल घोटाले की असलियत सामने आने से महकमे में गहमा-गहमी है।