दिल्ली वेब डेस्क / देश में सैकड़ों साल पुराने कानून और उसकी परिभाषा को बदलने की कवायत शुरू हो गई है | दरअसल इन कानूनों में अपराधों की जो परिभाषा तय की गई है, वो कई मामलों में मौजूदा दौर में प्रासांगिक नज़र नहीं आ रही है | लिहाजा केंद्र सरकार कई ऐसे अपराधों की परिभाषा को वर्तमान समय के हिसाब से बदलने की तैयारी की है। जानकारी के मुताबिक वैवाहिक दुष्कर्म, इच्छामृत्यु, यौन अपराधों और देशद्रोह से संबंधित कई अपराधों की परिभाषा पर फिर से विचार करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से एक समिति का गठन किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसके लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है।
यह समिति वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण, यौन अपराधों को लिंग तटस्थ बनाने, इच्छामृत्यु को वैध बनाने और राजद्रोह की परिभाषा पर पुनर्विचार करने के लिए अलग -अलग बैठक करेगी | समिति ने 49 तरह के अपराधों को पुनर्विचार के लिए चुना है। अब इनकी कानूनन परिभाषा भी नए सिरे से सामने आएगी |
कानून के जानकर बताते है कि धारा 124ए के तहत देशद्रोह के अपराध की परिभाषा, दायरे और संज्ञान में संशोधन किए जाने की आवश्यकता है। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के कुलपति डॉक्टर रणबीर सिंह, की अध्यक्षता वाली समिति ने प्रमाणिक और प्रक्रियात्मक आपराधिक कानून और साक्ष्य कानून पर ऑनलाइन सार्वजनिक और विशेषज्ञों की सलाह मांगी है। रणबीर सिंह समिति ने सुझाव माँगा हैं कि क्या अपराध करने के लिए आपराधिक जिम्मेदारी की न्यूनतम उम्र को भी बदलने की आवश्यकता है। दरअसल 2015 में, कानून में 16 साल से अधिक उम्र के किशोर के साथ जघन्य अपराधों के मामलों में वयस्क के तौर पर व्यवहार करने और आजीवन कारावास या मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया था।
यह समिति समय समय पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के साथ कानूनों का सामंजस्य स्थापित करना चाहती है | ताकि शीर्ष अदालत के फैसलों और नजीरों को कानून का दर्जा दिया जाये | खासतौर पर जिनमें इच्छा मृत्यु और अपनी नाबालिग पत्नी के साथ पति के शारीरिक संबंध बनाने के मामले शामिल हैं। 2017 में एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि यद्यपि वैवाहिक दुष्कर्म कोई आपराधिक अपराध नहीं है लेकिन अपनी नाबालिग पत्नी के साथ किसी व्यक्ति के यौन संबंध को दुष्कर्म माना जाएगा। इस दौरान कानून के जानकारों और समाज सेवियों ने अदालत के इस निर्देश को कड़े कानून में तब्दील करने की मांग की थी |
यह समिति हिंसक घटनाओं के लिए विशेष कानूनों की पैरवी पर भी विचार कर रही है। इसमें भीड़ द्वारा हिंसा और ‘ऑनर किलिंग’ जैसे अपराध शामिल है। हालाँकि दिसंबर 2019 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद को पहले ही इस बारे में सूचित किया था | संसद में उन्होंने कहा था कि सरकार भीड़ जुटाने से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए आईपीसी और सीआरपीसी में आवश्यक संशोधन करने पर विचार कर रही है | इस दौरान कई संसद सदस्यों ने इसपर अंकुश लगाने के लिए अलग कानून बनाने की मांग की थी |
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बताया जाता है कि ब्रिटिश काल के कानूनों को संशोधित करने के लिए सरकार ने संकल्प लिया है | दरअसल आईपीसी और सीआरपीसी में बदलावों की सिफारिश सबसे पहले 2003 में मलीमठ समिति ने किया था | इस समिति का गठन तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने किया था।